नई दिल्ली। सफाई कर्मचारी आंदोलन (SKA )के नेतृत्व में आज जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। देश भर में जारी सीवर-सेप्टिक टैंकों में होने वाली सफाई कर्मियों की मौत व मैला ढोने की प्रथा के जारी रहने के खिलाफ सफाई कर्मियों ने गुस्से का इजहार किया। एक आंकड़े के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में 419 सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर और सेप्टिक टैंकों में हो चुकी है यानी हर चौथे दिन एक भारतीय की गटर में मौत हो रही है। नेताओं का कहना था कि यह राष्ट्रीय शर्म का मुद्दा है। देश के कई राज्यों से सैंकड़ों की तादाद में आए सफाई कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया और नारे लगाए। उनका प्रमुख नारा था-हमें मारना बंद करो, जय भीम!
SKA ने इन मुद्दों पर बड़ी लड़ाई का ऐलान किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री के लिए ज्ञापन जारी किया गया, जिसमें इन मौतों पर तुरंत रोक लगाने की मांग की गई। देश भर से शुष्क शौचालयों को तुरत खत्म करने और कानूनी प्रावधानों के अनुसार सभी मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास की मांग की गई।

सफाई कर्मचारियों के नेता और मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि हम, सफाई कर्मचारी आंदोलन, भारत में मैला ढोने की प्रथा के जारी रहने से गहरे रूप से परेशान और गुस्से में हैं। हम देशभर से एकजुट होकर सरकार की इस अमानवीय संवेदनहीनता के खिलाफ अपनी आवाज उठा रहे हैं। इसके जरिए सफाई कर्मचारियों को जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता के चक्र में फंसाया जा रहा है। उनका कहना था कि सरकार ने सफाई कर्मचारियों की ओर से मुंह मोड़ लिया है और जाति व अस्पृश्यता की ताकतों के खिलाफ हमारी इस लड़ाई को देखने से भी इनकार कर रही है।
जबकि भारत सरकार और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय लगातार इस सच्चाई से इनकार कर रहे हैं कि देश में अब भी मैला ढोने की प्रथा जारी है, सूखे शौचालय मौजूद हैं, और सीवर में सफाई कर्मचारियों की मौतें हो रही हैं। उनका कहना था कि मंत्री बार-बार संसद में यह झूठा दावा कर रहे हैं कि भारत में मैला ढोने की प्रथा समाप्त हो चुकी है। यह न केवल शर्मनाक है, बल्कि सफाई कर्मचारी समुदाय के खिलाफ एक हिंसा है।

उन्होंने कहा कि अभी पिछले हफ्ते, 16 मार्च 2025 को, दिल्ली जल बोर्ड ने नई फ्रेंड्स कॉलोनी में तीन व्यक्तियों को मैनहोल में उतरने के लिए मजबूर किया, जिसमें से एक व्यक्ति की मौत हो गई और अन्य दो अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन सरकारी तंत्र की चुप्पी बनी रही। कई राज्यों में शुष्क शौचालय प्रणाली अब भी मौजूद है और सफाई कर्मचारी महिलाओं को इन शौचालयों की सफाई के लिए मजबूर किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और जम्मू-कश्मीर के 36 जिलों में सूखे शौचालय अब भी मौजूद हैं। इन तमाम मुद्दों पर सरकार अपनी चुप्पी तोड़े, इस जातिगत अत्याचार को खत्म करे।
(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)
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