छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में एक बार फिर सुरक्षा बलों की ओर से ड्रोन हमले और बमबारी का मामला सामने आया है। इस बार फिर बीजापुर जिले में यह वारदात 7 अप्रैल, 2023 को हुई। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार यह बमबारी मोर्केमेट्टा पहाड़ियों में स्थित चार गांवों पर की गई थी। रिपोर्टों के मुताबिक ड्रोन से बमबारी जब्बगट्टा, मीनागट्टा, कवारगट्टा और भट्टीगुड़ा नामक गांवों पर हुई थी।
ग्रामीणों ने दावा किया कि इन गांवों में स्थित मोर्केमेट्टा पहाड़ियों पर सुबह 6 बजे बमबारी शुरू हुई। उसके बाद इन गांवों के खेतों में कई बम गिराए गए, इसके बाद 3 हेलीकॉप्टर उड़े जिसमें से भारी मशीनगन से गोलाबारी की गई। गिराए गए बमों की संख्या की पुष्टि अभी नहीं हुई है और किसी के हताहत होने की सूचना भी नहीं मिली है। हालांकि ऊपर से किए गए गोलीबारी के दौरान बचने की कोशिश में कई लोगों को चोटें आई हैं। जब्बगट्टा गांव का कलमू सुबह के समय महुआ इकट्ठा करने के लिए पास के खेतों में गया था, तभी बमबारी शुरू हुई। बमबारी और गोलीबारी के बीच जब खुद को बचाने के लिए वह अपने घर की ओर भागा तब गिरने से उसके सिर और कान में चोट लग गई।
11 जनवरी, 2023 को भी इसी तर्ज पर एक घटना को अंजाम दिया था। इसी तरह की एक घटना 2021 में भी हुई थी, और उस समय बस्तर के कुछ सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने उस मामले को उठाया था। तब कोविड प्रोटोकॉल लगने की वजह से इसमें ज्यादा कुछ नहीं हो पाया।
2022 में भी ऐसे ही एक घटना की जानकारी मिली थी। यहां 3 मार्च, 2022 को आरपीजी हमला हुआ जिसके बाद गांव में दहशत फैली गई थी। वो घटना बीजापुर-दंतेवाड़ा जिले की सीमावर्ती गांव पूम्बाड (बड्डेपारा) में हुआ था। उस समय वन क्षेत्र से घिरे हुए इस गांव के आदिवासियों ने कथित रॉकेट प्रोपेल्ड़ ग्रेनेड (आरपीजी) हमले की जांच की पुरजोर मांग की थी। पूम्बाड गांव बीजापुर जिले के बीजापुर ब्लॉक के गंगालूर तहसील के अंतर्गत पूसनार पंचायत का आश्रित गांव है। 2022 के मामले को तब जनचौक ने विस्तार से प्रकाशित किया था। 2022 की घटना का विस्तारित तथ्य-खोजी पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की राज्य इकाई ने भी की थी।
कुल मिलकर यह हमला क्रमबद्ध रीति से जारी है और तीन सालों मे चौथी वारदात है। जनवरी की घटना का तथ्य-खोजी कोऑर्डिनेशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ऑर्गनाइजेशन (सीडीआरओ) की टीम ने मार्च 2023 में की। सीडीआरओ की एक टीम इस घटना का तथ्य-खोजने जनवरी महीने में आई थी, पर उन्हें स्थानीय प्रशासन ने जाने नहीं दिया। अंत में मार्च महीने में यह दल उस इलाके का दौरा कर पाया।
इन सारे इलाकों में एक दशक से अधिक समय से माओवाद के खिलाफ सरकारी सुरक्षा बालों के द्वारा सैन्य अभियान पुरजोर से चल रहा है। सुरक्षा बलों की काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन के लिए इन इलाकों मे कई सारे कैम्प स्थापित किए हैं या फिर नए कैम्प स्थापित किए जा रहे हैं। इन सभी गांवों में लोग ऐसे कैम्प की स्थापना के विरोध में हैं। लेकिन नागरिक आबादी पर हवाई बमबारी का बार-बार उपयोग बस्तर की आदिवासी आबादी पर वर्षों से चलाए जा रहे राज्य के आतंक को एक नया आयाम देता है।
बस्तर इलाके के कांकेर, कोण्डागांव, बस्तर, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, और सुकमा जिलों के कई लोगों की माने तो सारे कैम्प का उद्देश्य वास्तव में आदिवासी लोगों को हटाकर इन सारे जंगल में निहित खनिज संपदा कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में सौपने की योजना हैं। यही कारण है कि माओवादी गुरिल्लाओं को खत्म करने के बहाने एक दशक से अधिक समय से सैन्य अभियान चल रहा है।
ताज़ा घटना को देखे तो यह स्पष्ट है कि स्थानीय ग्रामीणों को ही माओवादियों के रूप से माना जा रहा है। सीडीआरओ की टीम को एक ग्रामीण ने बताया, “हम सुबह महुआ इकट्ठा करने के लिए निकले थे कि अचानक ऊपर से एक ड्रोन आया और हम पर बम बरसने लगे। हमें समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है….” एक अन्य ग्रामीण का बयान इस तरह से है: “सरकार हमसे क्या चाहती है साहब,…. हम जंगलों में रहने वाले लोग हैं,…. सरकार हमारे साथ यह सब क्यों कर रही है? हम सबको यहां से भगाकर सरकार क्या करेगी? अब हम जंगल में जाने से डरने लगे हैं। अगर आसमान से ड्रोन हमले होने जा रहे हैं तो जंगल में कौन जाना चाहेगा? यहां गांव में रहने से भी डर लग रहा है….।”
बस्तर संभाग में विगत डेढ़ दशक से माओवाद के खात्मे के बहाने ग्रामीणों को ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है। पहले सलवा जुडूम, फिर ऑपरेशन ग्रीन हन्ट, फिर ऑपरेशन लोन वाराटु और अब ऑपरेशन समाधान प्रहार। सुरक्षा बलों के द्वारा संचालित इन सारे अभियानों में सैकड़ों आदिवासियों का फर्जी मुठभेड़ों में मौत, मार-पीट, फर्जी आरोप लगा कर जेल भेजना, घरों और खड़ी फसलों को जलाना, पालतू जानवरों को जबरन उठा ले जाना, महिलाओं और लड़कियों के साथ बलात्कार और छात्रों पर माओवादी संदेशवाहक का आरोप लगाना अक्सर की घटना रही है। डेढ़ दशक के समयकाल में ऐसी घटनाएं बहुत सामान्य सी हो गईं। अधिकतर अखबारों के लिए यह तो अब खबर भी नहीं रहा।
बावजूद इसके समय-समय पर अनेक रिपोर्ट, सीबीआई की जांच, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की जांच रिपोर्ट, ह्यूमन राइट्स संगठनों की जांच पड़ताल, संसद में हुए कई सारे बहस, और यहां तक की सुप्रीम कोर्ट में निरंतर बस्तर के मसले उछलते रहे हैं। इन सब में सुरक्षा बलों के द्वारा अराजक गोलीबारी से मौत, आगजनी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, छात्रों के साथ मार पीट इत्यादि घटना बार-बार स्पष्ट है।
सलवा जुडूम को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैरकानूनी घोषित किए जाने के बाद बंद कर दिया गया था, लेकिन आदिवासी आबादी के खिलाफ अर्धसैनिक अभियान अलग-अलग रूपों में जारी रहे हैं, जिनमें हवाई बमबारी के ये नवीनतम मामले भी शामिल हैं। स्थानीय लोगों ने आशंका जताई है की यह सब आगे भी जारी रहेगी। इस तरह के हमले से सभी निवासी डरे हुए हैं। उनका कहना है कि सरकार अपने ही नागरिकों पर हवाई हमले करवा कर साबित क्या करना चाह रही है।
उल्लेखनीय है कि मार्च 2023 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बस्तर दौरे के बाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने विज्ञप्ति जारी कर आने वाले दिनों में हवाई हमलों की आशंका जताई थी। विज्ञप्ति में कहा कि सीआरपीएफ के स्थापना दिवस में जगदलपुर पहुंचे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम में कहा था कि नक्सलियों के साथ जंग आखिरी चरण में है। उन्होंने बहुत जल्द ही माओवादियों को जड़ से मिटाने की घोषणा भी की है। इसी लिए पूरे दंडकारण्य में मुखबिर तंत्र से सूचनाएं लेकर आसमान से ड्रोन और हेलीकॉप्टर हवाई हमले की तैयारियां चल रही हैं। बीते 7 अप्रैल को जवानों की ओर से बमबारी इसी कड़ी का हिस्सा है।
बस्तर आईजी सुंदरराज पी. ने इस बयान का खंडन किया। उनके अनुसार नक्सली प्रेस नोट के माध्यम से झूठी जानकारी दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय नागरिकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आज तक इस तरह का कोई हवाई हमला बस्तर में नहीं किया गया है। नक्सली हमेशा से ही सुरक्षा बलों को बदनाम करने और उनका मनोबल गिराने के लिए इस तरह के अनर्गल आरोप लगाते आए हैं।
मध्य भारत के जंगलों में माओवादी विद्रोहियों के साथ इस संघर्ष का मूल कारण क्या है? यहां के आदिवासी जिन जंगलों में रहते हैं उस जमीन के नीचे कीमती खनिज का धरोहर है। कॉरपोरेट जगत के दिग्गज मोटे मुनाफे के लिए उन खनिजों को निकालना चाहते हैं। समस्या यह है कि आदिवासी इसमें बाधा बने हुए हैं। आदिवासियों ने अपनी पुरखों की विरासत जो जंगल और ज़मीन में निहित है, उसकी रक्षा सदियों से करते आ रहे हैं।
वास्तव में यह संघर्ष आदिवासियों और राज्य-कॉर्पोरेट के गठजोड़ के बीच है, पर सुरक्षा बल का इसमें इस्तेमाल किया जा रहा है ताकि खनन कंपनी का रास्ता सुगम बने। इसी प्रतिरोध की वजह से सैकड़ों आदिवासी फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए, हजारों को विचाराधीन कैदियों के रूप में जेल जाना पड़ा और महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के कई मामले सामने आए। ड्रोन हमला, हेलीकॉप्टर से गोलीबारी और आरपीजी इसी सिलसिले की नई कड़ी है।
(डॉ. गोल्डी एम. जॉर्ज सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखक हैं।)