Saturday, April 27, 2024
प्रदीप सिंह
प्रदीप सिंहhttps://www.janchowk.com
दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

हिंदू कॉलेज: सांस्थानिक हत्या के शिकार हुए एडहॉक टीचर ‘समरवीर’, शिक्षक संगठनों ने की जांच की मांग

नई दिल्ली। हिंदू कॉलेज के एडहॉक टीचर समरवीर सिंह की आत्महत्या ने दिल्ली विश्वविद्यालय में चल रहे शिक्षक नियुक्ति प्रकिया पर प्रश्न चिंह्न खड़ा कर दिया है। साल-दो साल से नहीं बल्कि दो दशक से एडहॉक पर पढ़ा रहे प्राध्यापकों को भी दो-चार मिनट के इंटरव्यू के बाद अयोग्य साबित कर दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि कॉलेज और दिल्ली विश्वविद्यालय सालों-साल से एडहॉक शिक्षकों की सेवा क्यों लेते रहे। जब वो इतने ही अयोग्य हैं तो प्रशासन उनसे शिक्षण कार्य क्यों लेता है। समरवीर सिंह की आत्महत्या को संस्थानिक हत्या बताते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र, एडहॉक और परमानेंट टीचर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रशासन अब इस मामले से मुंह मोड़ रहा है।

दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में मंगलवार (2 मई) को डूटा की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण के साथ कई शिक्षक संगठनों ने एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया। जिसमें सबने एक स्वर में समरवीर सिंह की आत्महत्या को संस्थानिक हत्या बताते हुए आत्महत्या के लिए विवश करने वालों को सजा देने और दिल्ली विश्वविद्यालय में चल रही शिक्षक नियुक्ति की जांच की मांग की है।

डूटा की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण ने दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसी एक कॉलेज नहीं बल्कि दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकांश कॉलेजों में कई वर्षों से पढ़ा रहे एडहॉक टीचरों को हटा कर आरएसएस की सिफारिश पर नियुक्ति हो रही है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि रामजस कॉलेज में फिजिक्स विभाग में 27 स्वीकृत पदों में से 18 एडहॉक टीचर पढ़ा रहे थे, जिसमें से 14 को हटा दिया गया। राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संघ समर्थक लोगों की नियुक्ति की जा रही है। सवाल यह भी है कि जिन लोगों की नियुक्ति हो रही है, वे एडहॉक शिक्षकों से योग्य नहीं बल्कि अयोग्य हैं। समरवीर को दो बार एडहॉक टीचर से हटाया गया। प्रिंसिपल ने उसे अपमानित किया। यह सीधे-सीधे संस्थानिक हत्या है। इसके जिम्मेदार कुलपति हैं। और डूटा भी अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है।

समरवीर की छात्राओं ने साझा किया दर्द

हिंदू कॉलेज में इतिहास के शिक्षक प्रो. रतन लाल कहते हैं कि समरवीर सिंह की आत्महत्या घटना नहीं बल्कि संकेत है। दिल्ली विश्वविद्यालय का जिस तरह से माहौल है उसमें आने वाले दिनों में ऐसी और भी घटनाएं सुनने को मिल सकती हैं। एडहॉक शिक्षकों को तो हटाया ही जा रहा है, परमानेंट शिक्षकों पर भी निगरानी रखी जा रही है। सरकार के विरोध में बोलने-लिखने पर प्रमोशन रोक दिया जा रहा है, सस्पेंड कर दिया जा रहा है। मैं इसका भुक्तभोगी हूं। जबकि मुझे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। उन्होंने कहा कि समरवीर सिंह की आत्महत्या की खबर ने पूरे कैंपस को झकझोर पर रख दिया, लेकिन हिंदू कॉलेज की प्रिंसिपल दुखी होने की बजाए छात्रों के एक कार्यक्रम में डांस करती हुई देखीं गईं। आज हमारे समाज के संवेदनशीलता का यह स्तर है।

उन्होंने हिंदू कॉलेज की प्रिंसिपल अंजू श्रीवास्तव की योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल विषय-विशेषज्ञों के योग्यता की जांच होनी चाहिए। पता चल जायेगा कि विषय विशेषज्ञों से एडहॉक टीचर ज्यादा योग्य हैं।

श्रद्धानंद कॉलेज के सूरज यादव ने कहा कि जिन्हें एक दिन भी पढ़ाने का अनुभव नहीं है उन्हें वर्षों से पढ़ा रहे एडहॉक टीचरों की जगह रखा जा रहा है। समरवीर सिंह की आत्महत्या बहुत दुखद है।

जाकिर हुसैन कॉलेज के तारिक अनवर ने कहा कि नियुक्ति के नाम पर प्रतिभाओं का संहार किया जा रहा है। संघ के गुर्गों को रखा जा रहा है। देशबंधु के कॉलेज के उदयवीर ने कहा कि 7 सदस्यीय नियुक्ति समिति में 4 एक विचार के लोगों को रख कर नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। इंटरव्यू के पहले ही लोगों को पता चल जा रहा है कि उसका नहीं होने वाला है। यहां तक कि कॉलेज के प्रिंसिपल महीनों पहले से एडहॉक टीचरों को हतोत्साहित करने लगते हैं कि हम आपको नहीं ले पा रहे हैं। इस तरह से एक खास तरह का संदेश दिया जा रहा है कि यह बात तो ठीक है कि तुम कई सालों से यहां पढ़ा रहे हो, लेकिन तुम्हें स्थाई नहीं किया जायेगा।

वक्ताओं ने डूटा नेतृत्व की चुप्पी पर प्रकाश डाला। यहां तक ​​कि दयाल सिंह जैसे कॉलेज में, डूटा अध्यक्ष के अपने कॉलेज में भी, बिना किसी सुगबुगाहट के विस्थापन होते रहे हैं। यह DUTA नेतृत्व की मिलीभगत या अपने राजनीतिक आकाओं के सामने खड़े होने में असमर्थता को दर्शाता है। DUTA विश्वविद्यालय की वर्तमान स्थिति के लिए भी जिम्मेदार है जिसमें बड़े पैमाने पर विस्थापन किया जा रहा है।

सत्यवती कॉलेज के शशिशेखर सिंह ने कहा कि कॉलेजों में इस तरह का भय का माहौल बना दिया गया है कि एडहॉक टीचर किसी से बात नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें डर है कि हम किसी से बात करेंगे तो सूचना ऊपर तक पहुंच जायेगी और उनकी नियुक्ति नहीं होगी। उन्होंने कहा कि इंटरव्यू के बाद जो लोग रखे गए हैं यदि कुछ लोगों का रैंडम सैंपल लेकर उनकी योग्यता जांची जाए तो पता चल जायेगा कि शिक्षा-व्यवस्था के साथ क्या किलवाड़ किया जा रहा है।

डीयू में अकादमिक काउंसिल की मेंबर डॉ. माया जॉन कहती हैं, डीयू कॉलेज में जिन पोस्ट का विज्ञापन आ रहा है, एडहॉक टीचर्स उसके एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को पूरा करते हैं। इसके बावजूद पांच मिनट के इंटरव्यू से कैंडिडेट तय किया जा रहा है।

उमा राग कहती हैं कि डीयू में योग्यता को दरकिनार कर विचार के आधार पर नियुक्ति हो रही है। अकादमिक योग्यता को वैचारिक प्रतिबद्धता से मापा जा रहा है। यह गलत है।

हंस राज कॉलेज के छात्र पुनीत और समा ने बताया कि कैसे कुछ बेहतरीन शिक्षकों को बाहर कर दिया गया। शिक्षण की गुणवत्ता में गिरावट आई थी। लोगों को पढ़ाने के लिए नहीं बल्कि वैचारिक कारणों से नियुक्त किया जा रहा है। एचआरसी में करीब 50-60 शिक्षकों की नौकरी चली गई है।

छात्रों ने कहा कि समरवीर सर के साथ जो हुआ उसे वे कभी नहीं भूलेंगे और इस जघन्य अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों को माफ नहीं करेंगे।

गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के एक 33 वर्षीय पूर्व एड-हॉक शिक्षक समरवीर सिंह ने बुधवार (28 अप्रैल) को अपने रानी बाग स्थित घर में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी। वह हिंदू कॉलेज में छह सालों से फिलॉसफी पढ़ा रहे थे। राजस्थान के बारां के रहने वाले समरवीर ने हिंदू कॉलेज में पढ़ाई की थी। उसने पीएचडी के लिए जेएनयू में दाखिला लिया था। वह अपने पीछे माता-पिता और एक छोटी बहन छोड़ गये है।

घटना के बारे में बताते हुए समरवीर के चचेरे भाई राहुल ने कहा, ‘जब यह हुआ तब मैं बाहर था। जब मैं घर वापस आया, तो मैंने देखा कि उसके दरवाजे बंद थे। मैंने उसे कई बार फोन किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया… मैंने खिड़की से झांक कर देखा तो वह लटका हुआ था।’ उसने दावा किया: “समरवीर नौकरी छूटने पर निराश था।”

दिल्ली विवि के हिंदू कॉलेज के टीचर समरवीर सिंह की खुदकुशी के मामले में टीचर्स और स्टूडेंट्स नाराज हैं। स्टूडेंट्स और टीचर्स ने डीयू के नॉर्थ कैंपस में प्रदर्शन कर मांग की कि स्थाई नियुक्ति की प्रक्रिया में एडहॉक टीचर्स को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पिछले कुछ महीने से डीयू और यूनिवर्सिटी कॉलेजों में परमानेंट टीचर्स की नियुक्ति चल रही है। जिस वजह से कई साल से काम कर रहे एडहॉक टीचर्स को नौकरी खोनी पड़ी है।

समरवीर सिंह की खुदकुशी के बाद उनकी बहन दिव्या ने अपने भाई की खुदकुशी के लिए डीयू और कॉलेज प्रशासन को जिम्मेदार बताया है। एक वीडियो में उन्होंने कहा, इतने साल से समरवीर हिंदू कॉलेज में पढ़ा रहा था। उसने दो दिन पहले आत्महत्या कर ली, इसके लिए हिंदू कॉलेज, डीयू प्रशासन जिम्मेदार है। एडहॉक टीचर्स को कॉलेजों से निकालने की जो पॉलिसी है, वो पॉलिसी मेरे भाई की मौत के लिए जिम्मेदार है। जो शख्स इतने साल से इतनी ईमानदारी से अपनी सेवाएं दे रहा है, जो काबिल है, अगर काबिल नहीं होता तो वो चुना क्यों जाता? जो अनुभवी है, …उसे एक दिन में अचानक से 4 मिनट के इंटरव्यू में निकाल दिया गया।

उन्होंने कहा है, उसके साथ सबसे ज्यादा नाइंसाफी तब हुई जब नौकरी से निकालने के बाद हिंदू कॉलेज की प्रिंसिपल उसे कॉल करके कहा कि हम आपको वापस से नौकरी देंगे। उसका हिंदू कॉलेज के साथ लगाव था, एक गर्ल्स कॉलेज में जॉब का मौका मिलने के बावजूद वो वापस गया। वो बहुत खुश था, उसे फिर से क्लासेज अलॉट हुई, मगर 15 दिन बाद उसे बताया गया कि आपको निकाला जाता है। यह किस स्तर का एक बेरोजगार युवक के साथ मजाक है। क्या ये उसके इमोशंस के साथ मजाक नहीं है! वो डूटा ऑफिस गया, प्रिंसिपल से मिला, प्रोफेसर्स और अपने साथियों से मिला।

सबने उसे यही बताया कि यहां पहले से कैंडिडेट फिक्स होते हैं, यहां धांधली चल रही है। वह बहुत नर्वस हो गया था। उसने मुझसे कहा कि इसके आगे भी कहीं मेरा सिलेक्शन नहीं होगा। उसके एक-एक स्टूडेंट्स से पूछें कि क्या वो इतना नाकाबिल था। अलग-अलग आर्थिक स्तर से काबिल बच्चे अपनी मेहनत के दम पर वहां पहुंचते हैं, जैसे मेरा भाई पहुंचा था। उसको अपना फ्लैट अपनी हर चीज छोड़नी पड़ी। वो रोता रहा, डिप्रेशन में चला गया।

डीयू में करीब 4500 से ज्यादा एडहॉक शिक्षक

वॉइस ऑफ डीयू एडहॉक टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. संत प्रकाश कहते हैं कि समरवीर अकेले नहीं हैं, जो इस मानसिक तनाव से गुज़र रहे थे, बहुत से लोग हैं जो ऐसी ही मानसिक स्थिति से गुज़र रहे हैं। हम करीब 4200 से ज्यादा एडहॉक टीचर्स कई वर्षों से हमारे हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम सबको दिलासा दे रहे थे कि हम सब मिलकर लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन उम्मीद टूटती जा रही थी, ये लोग जहां भी इंटरव्यू में जा रहे थे दो-दो मिनट का इंटरव्यू कर बाहर निकाल दिया जा रहा था, इनके पास कोई राजनीतिक कनेक्शन नहीं थे, जिनके हैं उन्हें लिया जा रहा है। ऐसे टीचर जो अपना काम बहुत ही समर्पित ढंग से करते रहे हैं। उन्हें टारगेट कर निकाला जा रहा है।

डॉ. प्रकाश कहते हैं कि हमारी मांग है कि जो शिक्षक जहां एडहॉक के रूप में पढ़ा रहा है, उसे वहीं पर स्थाई किया जाए। हमने हमेशा यहीं कहा है कि आज एडहॉक और अस्थाई शिक्षकों का जो भारी विस्थापन हो रहा है, वह एक मानवीय संकट है।

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