डिटेंशन सेंटर पर पीएम का रुख- कलम से हां, मुंह से ना

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एक सप्ताह पूर्व तमाम मीडिया, वैकल्पिक मीडिया संस्थानों में ख़बर आई थी कि उत्तर प्रदेश का पहला डिटेंशन कैम्प गाज़ियाबाद में बनकर तैयार हो चुका है और संभवतः अक्टूबर में इसका उद्घाटन हो सकता है। 

सोशलिस्ट पार्टी, लोक राजनीति मंच और लोक मोर्चा ने उत्तर प्रदेश में पहला डिटेंशन कैम्प खोले जाने की कड़ी निंदा की है। तीन पार्टियों ने एक सामूहिक निंदा प्रस्ताव पास करते हुए कहा है कि “दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के तहत राम लीला मैदान के मंच से प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश में कोई डिटेंशन कैम्प नहीं बन रहा है। ऐसा उन्होंने उस समय देश भर में चल रहे नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर व राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के खिलाफ जन आंदोलन के दबाव और चुनावी नफ़ा-नुकसान के तहत कहा था कि देश में कोई हिरासत केन्द्र या डिटेंशन सेंटर नहीं है।

फरवरी-मार्च 2020 में सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) ने प्रधान मंत्री के कथन की पुष्टि के लिए दिल्ली से ग्वालपाड़ा, असम तक एक यात्रा निकाली तो उस यात्रा को पश्चिम बंगाल-असम सीमा पर रोक दिया गया और ग्वालपाड़ा के जिलाधिकारी ने निर्माणाधीन हिरासत केन्द्र के बाहर किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर रोक लगा दिया। इससे यह तो साबित हो गया कि सरकार हिरासत केन्द्र बना रही थी”। 

प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि “फिर प्रधानमंत्री को इसे नकारने की क्या जरूरत पड़ी? उस समय हमने यह भूमिका ली कि प्रधानमंत्री की बात को सच साबित करने के लिए निर्माणाधीन हिरासत केन्द्र को विद्यालय या चिकित्सालय में तब्दील कर दिया जाए। पर, वह तो हुआ नहीं और अब मालूम हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में तो उसका उल्टा हो गया। गाजियाबाद में एक अम्बेडकर छात्रावास को हिरासत केन्द्र में तब्दील कर दिया गया है। हम सरकार के इस निर्णय की भर्त्सना करते हैं। सरकार को तो चाहिए था कि और अम्बेडकर छात्रावासों को निर्माण किया जाता।

यदि उपर्युक्त छात्रावास खाली पड़ा था तो सरकार को प्रयास करना चाहिए था कि दलित छात्राएं यहां आकर रहें। बजाय इसके कि सरकार खेद व्यक्त करे कि वह अम्बेडकर छात्रावास का उसके नियत उद्देश्य हेतु इस्तेमाल नहीं कर पा रही थी, सरकार ने दलित छात्राओं के लिए बने छात्रावास का खाली होने का बहाना बनाकर उसे हिरासत केन्द्र में तब्दील कर दिया। यह सरकार की दलित विरोधी मानसिकता का परिचायक है।”

निंदा प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि “अवैध विदेशी नागरिक अथवा जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की प्रक्रिया के बाहर रह जाएंगे उन्हें इस हिरासत केन्द्र में रखा जाएगा। यदि कोई भारतीय सरकारी नियमों के अनुसार अपनी नागरिकता सिद्ध कर पाने में असफल होता है तो हिरासत केन्द्र से निकलने के बाद उसकी नागरिकता क्या मानी जाएगी? उसे आजीवन तो हिरासत केन्द्र में रखा नहीं जा सकता क्योंकि कठोरतम सजा आजीवन कारावास भी पूरी जिंदगी के लिए नहीं होती।

सरकार की यह पहल बेतुकी है और दिखाती है कि भारतीय जनता पार्टी की सरकार समाज के हित में काम करने के बजाय एक विभाजनकारी रणनीति के तहत अपनी निरंकुश राजनीतिक शक्ति को और मजबूत करने में लगी हुई है। भले ही सरकार उन सभी मुस्लिम समाज के सदस्यों को जो अपनी नागरिकता साबित करने में असफल रहेंगे इस हिरासत केन्द्र में नहीं रखा पाएगा लेकिन मुसलमानों को भयभीत रखने के लिए इस हिरासत केन्द्र का इस्तेमाल किया जाएगा।”

देश का 12वां और यूपी का पहला डिटेंशन कैंप

साल 2011 में दलित छात्रों के लिए नंदग्राम में दो अलग-अलग अंबेडकर हॉस्टल बनाए गए थे। जहां एक साथ 408 छात्रों के रहने की व्यवस्था थी। लेकिन, पिछले कई सालों से यह हॉस्टल बंद पड़े हैं। देखरेख के अभाव में हॉस्टल जर्जर हो गया। बताया जा रहा है कि इसे डिटेंशन सेंटर में तब्दील किए जाने का प्रस्ताव योगी सरकार ने केंद्र सरकार को दिया था। केंद्र सरकार द्वारा जारी बजट पर मेरठ की एक निर्माण एजेंसी ने छात्रावास को डिटेंशन सेंटर में तब्दील कर दिया है। सभी मूलभूत सुविधाओं से युक्त इस डिटेंशन सेंटर की दीवारों पर काफी ऊंचाई तक तारबंदी की गई है।

यह देश का 12वां और उत्तर प्रदेश का पहला डिटेंशन कैंप है। नंदग्राम में बने इस डिटेंशन सेंटर में 100 लोगों को एक साथ रखने की व्यवस्था की गई है। माना जा रहा है कि यूपी में अवैध रुप से रहने वाले विदेशियों को यहां रखा जाएगा। इमारत की रंगाई-पुताई और मरम्मत का काम पूरा हो चुका है। अक्टूबर में इसका उद्घाटन हो सकता है।

क्यों बनाया जा रहा है डिटें​​​​​​शन कैंप?
डिटेंशन कैंप एक तरह का यातना शिविर होता है। जहां उन लोगों को रखा जाता है जो फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपनी नागरिकता नहीं साबित कर पाते हैं। पिछले साल असम में एनआरसी कराए जाने के बाद वहां लगभग 19 लाख 6 हजार नागरिकों की नागरिकता छीन ली गई थी। इन नागरिकता विहीन लोगों को रखने के लिए डिटेंशन कैंप बनाया जाता है। असम में सर्वाधिक छह डिटेंशन कैंप है। भारत का सबसे बड़ा डिटेंशन कैंप असम के ग्वालपाड़ा में बनाया गया है जिसकी क्षमता तीन हजार लोगों को रखने की है। वर्तमान में देश में 12 डिटेंशन सेंटर हैं। असम के अलावा दिल्ली, गोवा के म्हापसा, राजस्थान के अलवर जेल, पंजाब के अमृतसर जेल, बेंगलुरु के पास सोंडेकोप्पा में डिटेंशन कैंप हैं। 

केंद्र की आरएसएस-भाजपा सरकार की योजना पूरे देश में एनआरसी कराने की है। इसीलिए देश के हर राज्य में डिटेंशन कैम्प बनवाए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में बना डिटेंशन कैंप उसी कड़ी का हिस्सा है। किसी लोकतांत्रिक देश में डिटेंशन कैम्प बनना ही सबसे बड़ी शर्म की बात है।

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