देश अपने राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन के सबसे बुरे दौर में है। मोदी सरकार के केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के साथ देश में गुणात्मक परिवर्तन शुरू हुए। आज वैश्विक पूँजी और बड़ी भारतीय पूंजी ने राज्य पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। कोविड 19 ने आर्थिक संकट को गहरा कर दिया है, आर्थिक गैर-बराबरी की खाईं और चौड़ी हो गयी है। बड़ी पूंजी ने बलात कब्जे द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के आदिम संचय एवं श्रम-शक्ति को लूट कर हमारे पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी संतुलन को भी गम्भीर क्षति पहुंचाई है। बढ़ती अधिनायकवादी प्रवृत्ति लोकतान्त्रिक अधिकारों तथा नागरिक स्वतन्त्रताओं के लिए गम्भीर खतरे के रूप में अभिव्यक्त हो रही है। लोकतान्त्रिक संस्थाओं को संकटग्रस्त कर दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय लोकतांत्रिक संस्थाओं की रक्षा कर पाने में विफल हो गया है। देश के संघीय ढांचे को नष्ट किया जा रहा है। इसका सबसे बदतरीन शिकार कश्मीर और पश्चिम बंगाल हैं।
दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक तथा महिलाएं निशाना बनायी जा रही हैं। किसान और मेहनतकश जनसमुदाय भारी मुश्किल झेल रहा है। लेकिन, प्रतिरोध भी हो रहा है। भारतीय जनता, विशेषकर किसानों का आंदोलन, देश के हाल के इतिहास में बेमिसाल है और वह एक इतिहास का निर्माण कर रहा है। यह आंदोलन कृषि तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के ऊपर साम्राज्यवादी कारपोरेट नियंत्रण को सीधी चुनौती है। लोकतान्त्रिक ताकतों को किसान आंदोलन के साथ ही विकासमान आंदोलन के राजनीतिकरण पर केंद्रित करना चाहिए तथा जनांदोलन का निर्माण करना चाहिए। ट्रेड यूनियन आंदोलन के अतिरिक्त युवा-आन्दोलन भी कुछ जगहों पर स्वतःस्फूर्त ढंग से एक संगठित रूप में उभर रहा है। इन सारे आंदोलनों को एक मंच पर लाया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार द्वारा कोविड 19 के कुप्रबन्धन ने देश में मोदी की छवि को गम्भीर क्षति पहुंचाई है और इसके अंदर भाजपा के सामाजिक व राजनीतिक समीकरण को क्षति पहुंचाने की क्षमता मौजूद है। चुनाव राजनैतिक संघर्ष का मुख्य रूप हो गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले 16 राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे। स्वाभाविक रूप से यह सवाल उठेगा कि हमारी भूमिका क्या होगी जबकि लोकतान्त्रिक शक्तियां कमजोर हैं। यहां राजनीति का प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि आरएसएस और भाजपा ने हमारे लोकतान्त्रिक गणतंत्र के वजूद के लिए ही खतरा पैदा कर दिया है, इसलिए हमारा पूरा प्रयास भाजपा और एनडीए को हराना होगा।
इसके लिए हमें सामाजिक सुरक्षा, व्यक्ति की गरिमा, रोजगार, पर्यावरण, पारिस्थितिकी संरक्षण, न्यूनतम मजदूरी, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का सुदृढ़ीकरण, किसान और मजदूर-वर्ग की समस्याओं के निदान, काले कानूनों का खात्मा, राजनीतिक बंदियों की रिहाई आदि के लिए एक जन-एजेंडा तैयार करना होगा। इन मुद्दों को लेकर हमें जिन भी ताकतों के साथ सम्भव हो, एकताबद्ध होना चाहिए। अगर हम अकेले रह जाते हैं, तो हमें स्वतन्त्र रूप से अभियान चलाना चाहिए।
(अखिलेंद्र प्रताप सिंह स्वराज अभियान के कोर कमेटी के सदस्य हैं।)
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