Sunday, April 28, 2024

झारखंड: राजभवन पर मनरेगा कर्मियों का धरना, नियमितीकरण की मांग

एक तरफ जहां झारखंड में मनरेगा योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है, वहीं राज्य में मनरेगा कर्मी पन्द्रह वर्षों से काफी कम मानदेय पर काम कर रहे हैं, बावजूद इसके अभी तक सरकार ने न तो जॉब सिक्योरिटी दी है, ना ही सम्मानजनक वेतन। छोटी-छोटी गलतियों पर मनरेगा कर्मियों को बर्खास्त कर दिया जाता है, जबकि उसी गलती के लिए सरकारी कर्मियों को एक-दो माह के लिए मात्र निलंबित किया जाता है।

सरकार की इसी नीति के खिलाफ 2 फरवरी को झारखण्ड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ की रांची जिला इकाई द्वारा पांच सूत्री मांगों को लेकर राजभवन के समक्ष एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया गया।

इस मौके पर हुई सभा को संबोधित करते हुए कर्मचारी संघ के जिला अध्यक्ष संजय प्रमाणिक ने कहा कि सरकार की दोहरी नीतियां मनरेगा कर्मियों के साथ बहुत बड़ा अन्याय हैं। सरकार मनरेगा कर्मियों की विवशता का फायदा उठाकर आर्थिक शोषण कर रही है। झारखण्ड के मनरेगा कर्मी अब सरकार के अन्याय को नहीं सहेंगे, अपने हक-अधिकार के लिए धारदार आंदोलन करेंगे।

इस अवसर पर कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष जॉन पीटर बागे ने कहा कि मनरेगा कर्मियों का जॉब नेचर ऐसा है कि वो 24 घंटे डर के साए में नौकरी करते हैं। हर दिन नौकरी चले जाने का डर लगा रहता है। नौकरी का डर दिखाकर उच्च अधिकारियों द्वारा किसी भी काम में लगा दिया जाता है, चाहे वह कितना भी जोखिम भरा हो। जबकि मनरेगा कर्मियों को किसी प्रकार का कोई सर्विस बेनिफिट नहीं मिलता।

जॉन पीटर बागे ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी की काम के दौरान मौत हो जाती है तो सरकार की ओर से उसके परिवार को फूटी कौड़ी भी नहीं दी जाती है, और तो और दो मिनट की शोक-सभा भी आयोजित नहीं की जाती है। मनरेगा कर्मियों के प्रति सरकार और अधिकारी काफी असंवेदनशील हैं।

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चुनावी घोषणा-पत्र में कहा था कि सरकार बनते ही संविदा की जंजीर तोड़कर नियमितीकरण किया जाएगा, लेकिन तीन वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बाद भी मनरेगा कर्मियों के हित में कोई निर्णय नहीं लिया गया।

धरनास्थल पर उपस्थित जिले के मनरेगा कर्मियों ने कहा कि वो गूंगी-बहरी सरकार को जगाने का काम करेंगे। अधिक दिनों तक सरकार हमें हमारे अधिकारों से वंचित नहीं रख सकती।

राजभवन पर मनरेगा कर्मियों का धरना

संघ की महिला नेत्री ममता कुमारी ने कहा कि सारे मनरेगाकर्मी विशुद्ध रूप से झारखण्डी हैं और झारखण्ड के अस्सी प्रतिशत आईएएस अधिकारी गैर झारखण्डी हैं। यही कारण है कि अब तक मनरेगा कर्मी नियमित नहीं हो पाए हैं। हमारी सरकारों को यह बातें समझनी चाहिए और जितना जल्दी हो सके मनरेगा कर्मियों को स्थाई करना चाहिए।

बीपीओ इम्तियाज ने कहा कि उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्णय है कि दस वर्षों से अधिक समय तक सेवा दे चुके संविदा कर्मियों को स्थाई किया जाए, लेकिन तानाशाह सरकार व अधिकारी न्यायालय की मंशा के अनुरूप कार्य ना कर, कम मानदेय पर मनरेगा कर्मियों से काम ले रहे हैं। यह अमानवीय भी है और प्राकृतिक न्याय के खिलाफ भी।

उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में केंद्र सरकार द्वारा ईपीएफ कटौती का आदेश पारित किया गया था, लेकिन पांच वर्ष बाद भी इसे लागू नहीं किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके विपरीत मनरेगा कर्मियों से कोई काम कराना हो तो आदेश कुछ ही मिनटों और घंटों में लागू कर दिया जाता है। स्पष्ट है कि सरकार और अधिकारी मनरेगा कर्मियों को नौकरी खोने का भय दिखाकर धड़ल्ले से आर्थिक शोषण कर रहे हैं।

संघ के जिला कोषाध्यक्ष मृत्युंजय महतो ने कहा कि मनरेगा कर्मी हमेशा पदाधिकारियों का कोप भाजन बने रहे हैं। यदि पदाधिकारियों की मंशा के अनुकूल मनरेगाकर्मी काम करें तो ठीक है, नहीं तो मत्स्य न्याय के सिद्धांत के तहत बड़ी मछली छोटी मछली को तत्क्षण निगल जाती है। सरकार द्वारा वर्ष 2007 में बनाई गई सेवा-शर्त एवं कर्तव्य नियमावली मनरेगा कर्मियों के लिए कतई हितकरी नहीं है, मनरेगा कर्मी सरकार से नई सेवा शर्त नियमावली बनाने की मांग करते हैं।

धरने के बाद उपायुक्त व उप विकास आयुक्त के जरिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को संबोधित ज्ञापन भेजा गया।

ज्ञापन सौंपते मनरेगा कर्मी

धरना-प्रदर्शन में रांची जिला के सभी प्रखंडों के बीपीओ, ऐई, जेई, कंप्यूटर सहायक, लेखा सहायक एवं ग्राम रोजगार सेवक सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए।

धरना-प्रदर्शन कार्यक्रम की अध्यक्षता संघ के रांची जिला अध्यक्ष संजय प्रमाणिक और संचालन मनोज कुमार महतो ने किया।

झारखण्ड राज्य मनरेगा कर्मचारी संघ की मांगो में- सेवा शर्त नियमावली में संशोधन, स्थायीकरण, वेतनमान, सामाजिक सुरक्षा, बर्खास्तगी पर रोक एवं बर्खास्त मनरेगा कर्मियों की सेवा वापसी शामिल हैं।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट)

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