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ज़रूरी ख़बर संस्कृति-समाज

किताबें मत जलाइए, ऐसा इंतज़ाम कीजिए कि लोग उन्हें पढ़ ही न पाएं!

‘आप भले मेरी किताबें और यूरोप के सबसे उन्नत मस्तिष्कों की किताबें जला देंगे, लेकिन उन विचारों का क्या जो उन किताबों में समाई थीं [more…]

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लेखक संस्कृति-समाज

पुण्यतिथिः मुंशी प्रेमचंद मानते थे- किसानों को स्वराज की सबसे ज्यादा जरूरत

हिंदी-उर्दू साहित्य में कथाकार मुंशी प्रेमचंद का शुमार, एक ऐसे रचनाकार के तौर पर होता है, जिन्होंने साहित्य की पूरी धारा ही बदल कर रख [more…]

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ज़रूरी ख़बर

इलेक्टोरल बांड का रिटर्न गिफ्ट है निजीकरण

देश की अर्थव्यवस्था में हो रही गिरावट को समझने के लिए अर्थ सूचकांकों के अध्ययन करने की बहुत आवश्यकता नहीं है। बाजार और इंडस्ट्रियल एरिया [more…]

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बीच बहस

तानाशाही पूंजीवादी लोकतंत्र की तार्किक परिणति है!

23 अप्रैल 2020 के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपे अपने लेख ‘Lenin is not a figure to look up to…’ में प्रो. अपूर्वानन्द एक तीर से [more…]

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बीच बहस

घर लौटते मजदूरों की पदचापों में हैं पूंजीवाद विरोधी सुर

आज से बीस वर्ष पहले 31 दिसंबर 2000 व 1 जनवरी 2001 को  देश के किसान एवं मजदूर नेताओं, सोशलिस्ट नेताओं तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों [more…]

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बीच बहस

पूंजीवाद के इंजन को हमेशा के लिए बंद करना ही हमारा काम: अरुंधति रॉय

कोरोनावायरस की महामारी ने पूंजीवाद के इंजन को रोक दिया है। परन्तु यह एक अस्थाई स्थिति है। आज जब पूरी मनुष्य जाति कुछ समय के [more…]

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बीच बहस

अंडरस्टैंडिंग मार्क्स भाग-3: किसान को वर्किंग क्लास समझा जाए या बिजनेसमैन?

(अमेरिकी अर्थशास्त्री रिचर्ड डी वुल्फ के यूट्यूब पर उपलब्ध वीडियो से तीसरी किस्त। अपनी किताब `अंडरस्टैंडिंग मार्क्स` के संदर्भ में अपलोड किए गए इस वीडियो के जरिये [more…]

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ज़रूरी ख़बर

कोरोनोत्तरकाल: क्या हम नए वर्ल्ड आर्डर के लिये तैयार हैं?

सरकारी कर्मचारियों के महंगाई भत्तों तथा अन्य भत्तों पर जो कटौती केंद्र सरकार द्वारा की गयी है उसका कारण कोरोना जन्य आर्थिक संकट बताया जा [more…]

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संस्कृति-समाज

साम्यवाद ही क्यों? : राहुल सांकृत्यायन

आज दुनिया एक वैश्विक महामारी का सामना कर रही है। पूरी दुनिया के सभी संसाधनों पर क़ब्जा करने के लिए लार टपका रही और अपने [more…]

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बीच बहस

कोरोना महामारी : अमीर इंडिया बनाम गरीब भारत

भारत में बीसवीं सदी का अंतिम दशक ख़त्म होते-होते समस्त मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों, मंचों और माध्यमों से गरीबी की चर्चा समाप्त हो गई। देश [more…]