कोरोना संक्रमण पर एक फरवरी से 21 मार्च तक किंकर्तव्यविमूढ़ मोदी सरकार अब लॉकडाउन हटाने या और बढ़ाने को लेकर असमंजस में है। लॉक डाउन जारी रहा तो बेरोज़गार और प्रोड्क्शन चेन टूटने से अर्थव्यवस्था में गिरावट और बढ़ेगी जिससे न केवल सरकारी वित्त गम्भीरता से प्रभावित होगा बल्कि मध्य और कमज़ोर वर्गों के स्वास्थ्य और ज़िंदगी पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। टेस्ट, इलाज और अपर्याप्त चिकित्सा सेवाओं से जूझ रहे हमारे देश में आम लोगों की जान बचाने के उद्देश्य से निवारक प्रयास के रूप में लागू किया गया लॉक डाउन अंतत: आजीविका और ज़िंदगी दोनों को ही नष्ट करने की वजह बनता जा रहा है।
वास्तविकता तो यह है कि लॉक डाउन बढ़ाने से सरकार कितनी जानें बचा लेगी न सरकार के पास ये आँकड़े हैं और न ही भूख, बेरोज़गारी से कितने लोग मरेंगे इसका कोई पूर्वानुमान है। लॉक डाउन से दोनों ही स्थितियां गंभीर हैं। फ़र्क बस नजरिये का है। लॉक डाउन के खुलने पर इधर कुआं उधर खाई की स्थिति है।
दरअसल सरकार का दायित्व होता है सारे काम एक साथ करना क्योंकि उसके पास सारे मंत्रालय होते हैं और सारा तंत्र हाथ में होता है। ये नहीं हो सकता कि पहले अनन्त काल तक लॉक डाउन करके कोरोना वायरस से लोगों की जान बचाई जाए और अर्थव्यवस्था को बर्बादी के कगार पर छोड़ दिया जाए। फिर क्या आसानी से 135 करोड़ आबादी वाले देश में स्थितियां सामान्य हो सकेंगी। कोढ़ में खाज है कि मोदी सरकार के पास ना तो कोरोना संक्रमण से लड़ने के पैसे हैं और ना ही उद्योग जगत की मदद करने के लिए पैसे।
कोरोना वायरस के संक्रमण की रफ्तार थामने के लिए देशभर में लागू लॉक डाउन का 17वां दिन है। चर्चा है कि कतिपय सीमित प्रतिबंधों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के मुताबिक 14 अप्रैल को 21 दिन की मियाद पूरी होने पर 15 अप्रैल से लॉक डाउन खत्म किया जा सकता है। हालांकि, कई विशेषज्ञों समेत कुछ राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी लॉक डाउन की मियाद और बढ़ाने की सिफारिश की है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह उठता है कि क्या 15 अप्रैल को लॉक डाउन हट जायेगा?उड़ीसा में तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने लॉक डाउन 30 अप्रैल तक बढ़ा दिया है।
निर्धनता, कुपोषण और संसाधनों की कमी से शत प्रतिशत कौन कहे देश की 60 फीसद आबादी की रोग प्रतिरोधक क्षमता ऐसी नहीं है, जिसमें कोविड-19 के संक्रमण की आशंका ही नहीं रहे। इसके लिए वैक्सीन नहीं है, कोई प्रभावी दवा नहीं है । अभी शोध हो रहा है। पता नहीं कब तक सर्वसुलभ होगी। तो क्या अनन्त काल तक लॉक डाउन में भारत ही नहीं कोई विकसित और अमीर देश रह सकता है और अपनी अर्थव्यवस्था सम्भाल सकता है। इसका जवाब नकारात्मक है।
गौरतलब है कि अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट ने पिछले महीने एक रिपोर्ट जारी करते हुए चार परिस्थितियां बताई थीं, जिनमें कोई देश लॉक डाउन में ढील देने पर विचार कर सकता है। पहली परिस्थिति यह है कि 14 दिनों की पाबंदियों में कोविड-19 मरीजों की तादाद में कमी दिखने लगे। दूसरी परस्थिति यह है कि अस्पतालों की क्षमता इतनी बढ़ा दी जाए कि कोविड-19 से पीड़ित हर मरीज को बिना किसी कठिनाई के इलाज हो सके। तीसरी यह है कि उस देश में कोविड-19 के लक्षण वाले हरेक संदिग्ध की जांच संभव हो जाए और चौथी परस्थिति यह है कि जब उस देश में संक्रमित व्यक्तियों की गतिविधियों और उनके संपर्क में आने वाले लोगों की पल-पल की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। क्या हमारे देश में ये चार परिस्थितियां हैं? बिल्कुल नहीं।
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) का अध्ययन बताता है कि बड़े शहरों में कमाने-खाने वाली आबादी में से 29 फीसदी लोग दिहाड़ी मज़दूर होते हैं। उपनगरीय इलाक़ों की खाने-कमाने वाली आबादी में दिहाड़ी मज़दूर 36 फ़ीसदी हैं। गाँवों में ये आँकड़ा 47 फ़ीसदी है जिनमें से ज़्यादातर खेतिहर मज़दूर हैं। इन आँकड़ों से साफ़ जाहिर है कि देश में इतनी बड़ी आबादी को लॉक डाउन बढ़ने पर रोज़गार नहीं मिलेगा। ऐसे में उनकी परेशानी और बढ़ेगी। सरकार ने इनके लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की है लेकिन वो कितने पर्याप्त हैं, इस पर भी सवाल है।रोज़ कमा कर खाना ही दिहाड़ी मज़दूरों के लिए एकमात्र विकल्प है। इनके कामकाज का अभाव इन्हें जीते जी मार रहा है।
विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है भारत और आज भी भारत की गिनती विकासशील देशों में ही होती है ना कि विकसित देशों में। इस बीमारी से लड़ने के लिए सरकार ने 1.7 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक मदद की घोषणा की। और दूसरी तरफ़ 15000 करोड़ स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार करने के लिए। ये हमारी जीडीपी का महज़ 0.8 फ़ीसदी हिस्सा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 अप्रैल या उसके पहले यह ऐलान कर सकते हैं कि 14 अप्रैल को खत्म होने वाला राष्ट्रीय लॉक डाउन आगे बढ़ाया जाएगा या नहीं। शनिवार को मोदी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए बातचीत करेंगे। इसके बाद लॉक डाउन पर आखिरी फैसला लिया जा सकता है। ऐसे संकेत मिले हैं कि केंद्र सरकार कई राज्यों में तेजी से फैल रहे वायरस को रोकने के लिए कई राज्यों में लॉक डाउन कर सकती है। माना जा रहा है कि अगर लॉक डाउन बढ़ेगा तो उसमें कुछ क्षेत्रों को सीमित छूट मिल सकती है, क्योंकि लंबे समय तक लॉक डाउन रहने से बड़े पैमाने पर विषम आर्थिक परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। आवश्यक सेवाओं को छोड़कर अंतरराज्यीय आवाजाही प्रतिबंधित रहने की संभावना है।
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की स्वास्थ्य मंत्रालय की योजना में कहा गया है कि बुरी तरह प्रभावित इलाके में आखिरी कोविड-19 मरीज मिलने के कम-से-कम चार हफ्तों तक कोई नया मामला सामने नहीं आए तो उस इलाके को पाबंदी से छूट दी जा सकती है। इसमें यह भी कहा गया है कि इन इलाकों में पाबंदियां तभी कम की जा सकती हैं जब कोविड-19 मरीजों के संपर्क में आने वाले लोगों पर लगातार 28 दिनों तक निगरानी रखी जाए और उन्हें स्वस्थ पाया जाए।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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