झारखंड। एक तो बारिश की बेरुखी और ऊपर से झारखंड के 30 हजार से अधिक किसानों के धान का भुगतान नहीं होने से उनके चेहरों पर मायूसी छाई हुई है। धान खरीदारी के सात महीने बाद भी सरकार की ओर से धान की बकाया राशि लगभग 167 करोड़ रुपये अभी तक किसानों को नहीं मिल पाई है। किसान ये सोचकर बेचैन हैं कि अगर अभी भी पैसे नहीं मिले तो वे इस साल फसल के लिए जुताई-गुड़ाई कैसे करेंगे और बीज-खाद कैसे खरीदेंगे?
वित्तीय वर्ष 2022-23 में राज्य के किसानों ने करीब 17 लाख क्विंटल धान राज्य सरकार को बेचा है जिसका अब तक भुगतान नहीं हुआ है। झारखंड सरकार की ओर से राज्य के 27,485 किसानों को पहली किस्त के रूप में 149.15 करोड़ का भुगतान किया गया है। पर सात महीने से ज्यादा का समय गुजर जाने पर उन्हें दूसरी किस्त और बोनस की राशि नहीं मिली है। इससे किसानों में नाराजगी है।
गढ़वा और गुमला जिलों के किसानों ने माॅनसून की बेरुखी के बाद भी किसी तरह धान के बिचड़े तैयार कर लिये हैं। एक सप्ताह में धान की रोपाई शुरू होने की संभावना है। लेकिन साल 2022-23 में जिले के धान बेचने वाले किसानों को अभी तक पूर्व के बेचे गये धान का ही भुगतान सरकार ने नहीं किया है। इस वजह से किसानों को इस समय बुआई-जोताई और रोपाई को लेकर आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
पिछले साल सुखाड़ की स्थिति में भी गढ़वा जिले के 472 किसानों ने अक्टूबर-नवंबर में 25,132 क्विंटल धान सरकार को बेचा था और अभी तक सिर्फ 62 किसानों को ही धान का पूरा समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ है। शेष 410 किसान अभी भी भुगतान के इन्तजार में हैं। जिन 62 किसानों को पूरा समर्थन मूल्य प्राप्त हुआ है, उन्हें भी बोनस के रुपये नहीं मिले हैं। दूसरी तरफ पिछले साल सुखाड़ की स्थिति में सरकार ने बोनस की दर 1.50 रुपये प्रति किलो को घटाकर मात्र 10 पैसे प्रति किलो कर दिया था, यह रुपये भी अभी तक एक भी किसान को नहीं मिले हैं।
जिले के 24 पैक्स के माध्यम से 472 किसानों से 25,132 क्विंटल धान की खरीद की गयी थी। इसके बदले में किसानों को 20.40 रुपये प्रति किलो की दर से समर्थन मूल्य तथा 10 पैसे बोनस के भुगतान करना था। राज्य सरकार की ओर से शुरू में घोषणा की गयी थी कि धान बेचने के दो दिन के बाद ही खाते में पूरे समर्थन मूल्य का भुगतान कर दिया जायेगा, लेकिन सरकार ने एक बार पूरे रुपये भुगतान करने के बजाय उसे तीन किस्त में देने के लिए बांट दिया है। इसमें प्रथम किस्त की राशि सभी 472 किसानों को भुगतान कर दिया गया है। लेकिन दूसरे किस्त की राशि का भुगतान अभी तक सिर्फ 62 किसानों को ही किया गया है।
गढ़वा जिले के किसानों से जो धान खरीदे गये हैं, वह धान अभी भी गढ़वा जिले के पैक्स गोदाम में ही पड़ा हुआ है। खरीदे गये 25,132 क्विंटल धान में से 10 जुलाई तक मात्र 5,162 क्विंटल धान का ही उठाव हो सका है। शेष 19,970 क्विंटल धान के अभी भी उठाव का इंतजार है। जिले में 24 पैक्स हैं उनमें से एक भी पैक्स ऐसा नहीं है, जहां से शत-प्रतिशत धान का उठाव कर लिया गया हो। बताया जाता है कि धान मिलर की ओर से धान का उठाव करने में सुस्ती दिखायी जा रही है।
मिलर द्वारा धान उठाव का मामला किसानों के समर्थन मूल्य भुगतान से भी जुड़ा हुआ है। सरकार ने तय किया है कि धान खरीदने के बाद पहली किस्त की राशि तथा मिलर द्वारा धान उठाव के बाद दूसरी किस्त की राशि का भुगतान किया जाएगा। वहीं दूसरी किस्त की राशि मिलने के बाद ही बोनस के भुगतान का प्रावधान है। इसका विरोध किसान एवं इनसे जुड़े संगठन हमेशा से करते आये हैं।
किसानों का कहना है कि मिलर की गलती का खामियाजा उन्हें क्यों भुगतना पड़ता है। वहीं मिलरों के साथ भी यह शर्त जोड़ दी गयी है कि वे जब तक सीएमआर (कस्टम मिल राईस या उसना चावल) जमा नहीं करेंगे, तब तक वे धान का उठाव नहीं कर सकते हैं। यही वजह है कि मिलरों की ओर से सुस्ती दिखायी जा रही है। किसान संगठनों का आरोप है कि इसमें भ्रष्टाचार हावी है क्योंकि लेन-देन करके खास मिलरों का चयन किया जाता है।
राज्य के गुमला जिले के करीब 800 किसानों को दूसरी किस्त की राशि नहीं मिली है। जिससे किसानों के सामने इस वक्त खेती-बारी करने का संकट पैदा हो गया है। किसानों ने कहा है कि उनके पास धान के बीज, खाद और अन्य जरूरत की सामग्री खरीदने के लिए पैसे नहीं है। किसान कहते हैं कि “एक साल पहले धान बेचा था, अभी तक पैसा नहीं मिला है। अब कैसे खेती करें? क्योंकि, खेतीबाड़ी करने के लिए पैसा नहीं है।”
बता दें कि जिले के 800 किसानों ने सरकार को धान बेचा है। जिसमें सभी किसानों को प्रथम किस्त के पैसे का भुगतान कर दिया गया है। लेकिन दूसरी किस्त की राशि का भुगतान अब तक नहीं हुआ है। जबकि बारिश होते ही खेतीबाड़ी शुरू हो गयी है। बारिश होने के साथ किसानों की चिंता बढ़ गयी है।
बीते दिनों गुमला में जिला योजना समिति की एक बैठक हुई। बैठक में जिले के सभी अधिकारी सहित राज्य के खाद्य आपूर्ति और वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव भी थे। इस बैठक में भी धान बिक्री का पैसा नहीं मिलने का मुददा उठा था। परंतु किसानों को कब पैसा मिलेगा? इसकी सही जानकारी किसी ने नहीं दी। मंत्री रामेश्वर उरांव ने भी किसानों की दूसरी क़िस्त की राशि के भुगतान के मामले में गोल-मोल जवाब दिया। जबकि बैठक में एक सदस्य द्वारा किसानों के धान की राशि का भुगतान का मामला उठाया गया था।
इस बावत जिला आपूर्ति पदाधिकारी गुलाम समदानी ने बताया कि किसानों को 10-15 दिन के भीतर दूसरी किस्त की राशि मिलनी शुरू हो जायेगी। किसानों ने जो धान बेचा है, वह धान अभी भी लैंपस में रखा हुआ है। जैसे ही मिलर द्वारा धान का उठाव किया जायेगा। उसके तुरंत बाद किसानों को उनका बकाया पैसा मिल जायेगा। उन्होंने कहा कि अभी कुछ दिन पहले 25-30 किसानों को दूसरी किस्त की राशि दी गयी है।
वहीं झारखंड स्टेट फूड कॉरपोरेशन के एमडी यतींद्र प्रसाद ने बताया कि किसानों को दूसरी किस्त का भुगतान मिल में धान देने के बाद किया जाता है। मिल में इस बार धान नहीं गया है, क्योंकि केंद्र सरकार ने कह दिया था कि चावल नहीं देंगे। केंद्र सरकार का कहना था कि अब राज्य सरकार खुद से मिल से चावल लेकर पीडीएस को दे।
केंद्र सरकार ने डिसेंट्रलाइज्ड प्रोक्योरमेंट स्कीम की व्यवस्था लागू कर दी है। पहले प्रोक्योरमेंट नॉन डीसीपी मोड में होता था। डीसीपी मोड के कारण सरकार को निर्णय लेने में दो महीने का समय लग गया। इस पर करीब दो सप्ताह पहले डिसीजन हो चुका है। अब मिलों से चावल आने लगा है। जल्द ही किसानों को बोनस की राशि का भी भुगतान किया जायेगा।
जबकि झारखंड के पूर्व कृषि मंत्री और सारठ के विधायक रणधीर सिंह ने किसानोंं की लोन माफी, धान के बकाया भुगतान में देरी समेत कृषि से जुड़े कई मुद्दों को लेकर राज्य सरकार की जमकर आलोचना की। उन्होंने कृषि विभाग पर आरोप लगाते हुए कहा कि कृषि विभाग वित्तीय वर्ष 2022-23 की राशि भी खर्च नहीं कर पाया है।
उन्होंने कहा की विभाग बजट की कुल राशि का सिर्फ 55.69 फीसदी ही खर्च कर पाया है। बाकी पैसा विभाग को सरेंडर करना पड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया कि कृषि ऋण माफी के लिए कृषि मंत्रालय ने जो बजट रखा था वो बजट भी खर्च नहीं हो पाया है। वहीं एक साल बीत जाने के बाद भी सरकार किसानों को धान का बकाया भुगतान नहीं कर पाई है।
पूर्व मंत्री ने कहा कि ऋण माफी योजना का लाभ लेने के लिए विभाग के निर्देशानुसार सैकड़ों किसान प्रज्ञा केंद्र गए और एक रुपये का टोकन कटवाया, लेकिन इसके बावजूद अब वे ऋण माफी के लिए बैंकों का चक्कर लगा रहे है। विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा सदन में बताया गया था कि राज्य के किसानों को लोनमुक्त कराना सरकार की प्राथमिकता है। वहीं सरकार ने कहा था कि राज्य के किसानों को सूखा राहत का लाभ दिलाना और उनकी आय में वृद्धि कराना राज्य सरकार की प्राथमिकता है।
झारखंड में कृषि ऋण माफी योजना के तहत साढ़े चार लाख किसानों के बीच 1 हजार 7 सौ 27 करोड़ रुपये की ऋण माफी की गई है। सरकार ने बताया कि राज्य में सूखा राहत योजना के तहत 13 लाख किसानों के खाते में 3,500 रुपये प्रति किसान की दर से 461 करोड़ रुपये की राशि ट्रांसफर की गई है।
हालांकि सरकार का कहना है कि जिन किसानों को सूखा राहत योजना और ऋण माफी योजना का लाभ नहीं मिला है, उन किसानों को वित्तीय वर्ष 2023-24 में लाभ दिया जाएगा। जबकि धान के बकाए भुगतान को लेकर लैंपस में धान बेचने वाले किसान मायूस हैं।
(विशद कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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