Sunday, April 28, 2024

झारखंड: पेसा नियमावली लागू करने की मांग को लेकर आदिवासियों ने निकाली जागरूकता यात्रा

लातेहार। पेसा नियमावली लागू करने की मांग को लेकर झारखंड के लातेहार जिले के आदिवासी समुदाय ने झारखंड ग्रामसभा जागरूकता यात्रा शुरू की है। 27 अक्टूबर को जिले के भंडरिया प्रखंड अंतर्गत अड्डा महुआ में स्थित शहीद नीलाम्बर-पीताम्बर के मूर्ति स्थल से यात्रा प्रारंभ की गई।

यह यात्रा बड़गढ़ प्रखंड की ग्राम सभाओं, महुआडांड़ नेतरहाट फिल्ड फ़ायरिंग रेंज और लातेहार के ओरसापाठ बाक्साइट खदान क्षेत्र के संघर्षरत लोगों से मिलते हुए, बेतला व्याघ्र परियोजना से प्रभावित ग्राम सभाओं की पीड़ाओं को झेलने वालों से मिलते हुए 2 नवंबर को जिले का मनिका प्रखंड पहुंची। जहां स्थानीय हाईस्कूल से एक रैली निकाली गई जो प्रखंड परिसर पहुंचकर नुक्कड़ सभा में तब्दील हो गई।

यात्रा में शामिल लोग- ‘लोकसभा न विधानसभा, सबसे ऊंची ग्रामसभा’; ‘दुनिया वालों सुन लो आज, हमारे गांव में हमारा राज’; ‘जल, जंगल और जमीन, ये हो ग्रामसभा के अधीन’; ‘पेसा नियमावली 2022 अधिसूचित करो; ‘जल, जंगल और जमीन की लूट, नहीं किसी को इसकी छूट’; ‘वनाधिकार कानून 2006 लागू करो’; ‘दुनिया के आदिवासियों एक हो’, ‘एक तीर, एक कमान, आदिवासी-मूलवासी एक समान’ आदि नारे लगाते हुए प्रखंड मुख्यालय पहुंचे और अपनी बातें रखीं।

3 नवंबर को जागरूकता यात्रा जिले के हेरहंज प्रखंड पहुंची और वहां स्थित पड़हा भवन से एक विशाल रैली निकाली गई। इस रैली में बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं और पुरुष शामिल हुए। रैली हेरहंज पंचायत भवन में एक जनसभा में परिवर्तित हो गई।

जागरूकता यात्रा के संयोजक व जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि ‘पेसा कानून के 27 सालों बाद भी पेसा नियमावली का अधिसूचित नहीं होना 5वीं अनुसूची वाले इलाकों के साथ संवैधानिक अन्याय है। इससे राज्य के 13 जिले पूर्णत: और 3 प्रखंडों का स्थानीय पारम्परिक स्वशासन व्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इन इलाकों में अफसर और बिचौलिये मिलकर बेतहाशा आर्थिक शोषण व उत्पीड़न कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियों और पंचायत ने ग्राम सभाओं को तोड़ने व बिखेरने का काम किया है।’

जेम्स ने कहा कि ‘देश के 10 राज्य अनुसूचित इलाके के अंतर्गत आते हैं। इनमें से 8 राज्यों ने अपने राज्य की पेसा नियमावली अधिसूचित कर ग्राम सभाओं को संवैधानिक अधिकार सौंपे हैं। सिर्फ झारखंड और उड़ीसा ही दो ऐसे राज्य हैं जहां पेसा नियमावली को अधिसूचित नहीं किया गया है। इससे ग्राम सभाओं को प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने में कठिनाइयां पैदा होती रही हैं।’

उन्होंने कहा कि झारखंड सरकार को राज्य के स्थापना दिवस- बिरसा मुंडा जयंती के ऐतिहासिक मौके पर आदिवासियों को पेसा नियमावली के रूप में सौगात देने की घोषणा करनी चाहिए। यदि झारखंड सरकार पेसा नियमावली को अधिसूचित नहीं करती है, तो तमाम आदिवासियों को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में हेमंत सरकार को वोट देने के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा।’

जेम्स हेरेंज ने वन विभाग के आतंक पर बोलते हुए कहा कि ‘विभाग के अफसरों व कर्मियों के आतंक का आलम यह है कि पूरे लातेहार जिला सहित हेरहंज प्रखंड के ग्रामीण इनके मनमाने पन से आतंकित हैं। विभाग के अधिकारी पहले वन माफियाओं से मिलकर इमारती लकड़ियों की चोरी छिपे तस्करी करवाते हैं। और जब वन भूमि का छीजन हो जाता है, तब वनरोपण के नाम पर ग्राम सभाओं को पूर्णत: दरकिनार करते हुए ऐसे घटिया किस्म के वृक्षारोपण करते हैं, जिसका ग्रामीणों की जीविकोपार्जन से कोई वास्ता नहीं होता है।’

उन्होंने कहा कि ‘जब ग्रामीण इस तरह की योजनाओं का विरोध करते हैं, तो विभागीय अधिकारी सरकारी काम में बाधा डालने का आरोप लगाकर निर्दोष ग्रामीणों पर मुक़दमा दर्ज करते हैं। जिसके बाद ग्रामीण साल दर साल अदालत का चक्कर लगा लगाकर आर्थिक दोहन का शिकार होते हैं।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए क्रांतिकारी किसान मजदूर यूनियन के पलामू जिलाध्यक्ष बृजनंदन मेहता ने कहा कि ‘भारत के विभिन्न राज्यों में करीब 730 जनजातियां हैं, जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अधिसूचित किया गया है। 2022 के आकलन के अनुसार करीब 12 करोड़ आदिवासी निवास करते हैं।

एक अन्य आंकड़े के अनुसार आजाद भारत के 75 सालों में विभिन्न परियोजनाओं से करीब 6 करोड़ आदिवासी विस्थापित हो चुके हैं। हाल में भारत की संसद में पारित वन संरक्षण (संशोधन) के लागू होने से जंगल की कटाई से आदिवासियों का विस्थापन और बढ़ेगा, पर्यावरण असंतुलन बढेगा तथा कई तरह की पारिस्थिकीय समस्याएं पैदा होंगी।’ 

जन सभा को संबोधित करते हुए भारतीय सामुदायिक कार्यकर्त्ता मंच दिल्ली के प्रकाश कुमार ने मोदी सरकार और उनकी कार्पोरेट परस्त नीतियों की तीखी आलोचना की। उन्होंने औरंगा बांध के विरुद्ध संघर्ष और उसकी जीत की दास्तां बयां की और कहा कि यात्रा के दौरान निर्धारित पड़ावों में जिस ऊर्जा के साथ यात्रा का स्वागत किया गया और उसे समर्थन मिल रहा है, इससे यात्रा दल में शामिल सदस्य मंजिल पाने को बेहद आश्वस्त हैं।

जन सभा को उत्तर प्रदेश के अरविन्द मूर्ति एवं हेरहंज पंचायत के उपमुखिया राजबली यादव ने भी संबोधित किया।

सभा का संचालन क्रांतिकारी किसान मजदूर यूनियन गढवा के जिलाध्यक्ष अशोक पाल ने किया। यात्रा दल में अफसाना खातून, एडवोकेट बीआर रावत, जिला परिषद कन्हाई सिंह, मनराखन सिंह, चिंता देवी, लाजरुस तिर्की, नरेन्द्र नगेसिया, लालबिहारी सिंह, सोमवती देवी, नागेन्द्र उरांव, निरंजन ठाकुर सहित हजारों लोग शामिल थे।

झारखंड ग्राम सभा जागरूकता यात्रा के जरिए झारखंड के राज्यपाल से मांग

  • राज्यपाल अपने संविधानिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए जल्द से जल्द झारखंड पंचायत उपबंध नियमावली 2022 को अधिसूचित करें।
  • झारखंड के सभी 5वीं अनुसूची क्षेत्र के 16,781 से अधिक ग्राम सभायें प्रस्तावित ड्राफ्ट नियमावली में निहित प्रावधानों के आलोक में प्रशासन और नियंत्रण के दायित्वों का निर्वहन नियमित तरीके से संचालित करें।
  • सभी ग्राम सभाओं का अपना ग्राम सभा सचिवालय हो, इस दिशा में सामूहिक पहल प्रारंभ की जाए।

क्या है पेसा अधिनियम?

पेसा कानून का पूरा नाम है- पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज एक्ट (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act)। 1986 में पंचायती राज व्यवस्था में अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार करते हुए पेसा कानून की शुरुआत हुई।

  • आसान भाषा में समझें तो इस कानून की तीन प्रमुख बाते हैं- जल, जंगल और जमीन का अधिकार। इस कानून के जरिए जमीन के अधिकार को सशक्त बनाया गया है। भूमि के इस अधिकार के तहत आदिवासियों को मजबूत बनाने की बात कही गई है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य है ग्राम सभा को शक्तियां देकर जनजाति वर्ग को सशक्त बनाना। ग्राम सभा इन शक्तियों का इस्तेमाल आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले जनजातियों के विकास के लिए करें और उनके हक की रक्षा कर सकें।
  • आदिवासी क्षेत्रों में जनजातियों के स्वशासन के अधिकारों का स्पष्टीकरण करना, जिनका उल्लंघन अथवा जिनमें हस्तक्षेप करने की ताकत राज्यों के पास भी न हो।
  • ग्राम सभाओं (ग्राम विधानसभाओं) को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाने का प्रयास करना। उच्च स्तर की पंचायतों को निचले स्तर की ग्राम सभा अथवा ग्राम विधानसभा की ताकत एवं उनके अधिकारों को छीनने से रोकना।
  • पेसा के नियमों में जल-जंगल-जमीन, श्रमिक और संस्कृति संरक्षण को भी शामिल किया गया है।

2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की कुल आबादी 32,988,134 है, जिसमें एक चौथाई से अधिक आबादी (26.2 प्रतिशत) यानी 8,642,891 लाख आदिवासी हैं। इनमें से आधे से अधिक लोग 12,164 गांवों में रहते हैं। झारखंड के 24 जिलों में से 14 जिले पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं जिसमें 79.3 प्रतिशत यानी 6,860,000 लाख से अधिक आदिवासी वहां रहते हैं।

2023 में झारखंड की अनुमानित जनसंख्या 40,100,376 है, जिसके आधार पर आदिवासियों की आबादी 10,506,298 है। यानी 14 जिले जो पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं, में अनुमानित 8,331,494 आदिवासी रहते हैं।

(झारखंड से विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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