Sunday, April 28, 2024

महिला आंदोलन के दबाव में उत्तराखंड सरकार ने घरों में बार खोलने की योजना वापस ली

देहरादून। उत्तराखंड राज्य जनआंदोलनों की भूमि रही है। आज तक इस राज्य में जितने भी ऐतिहासिक जन आंदोलन हुए, उनमें महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। उत्तराखंड के जन आंदोलन का इतिहास इस बात की गवाही देता है कि जिस आंदोलन में महिलाएं कूदीं, वह अपने मुकाम तक पहुंचा और सत्ताएं महिलाओं के सामने नतमस्तक हुई हैं। चिपको आंदोलन से लेकर उत्तराखंड प्रथक राज्य आंदोलन तक इसके उदाहरण हैं।

इस बार महिलाओं ने एक और बड़ी लड़ाई सरकार से जीत ली। यह बात अलग है कि यह जीत पूरी तरह से खामोश जीत थी। मीडिया मैनेजमेंट के इस दौर में किसी अखबार या किसी टीवी चैनल ने इस जीत को वैसी कवरेज नहीं दी, जैसी दी जानी चाहिए थी। सोशल मीडिया पर भी आमतौर पर इस जीत को सिर्फ एक सूचना के रूप में ही जगह मिली, जबकि वास्तव में यह जीत इस राज्य की दशा और दिशा को बदतर होने से बचा ले गई है और इस तरह से महिला शक्ति की यह जीत उत्तराखंड की सफल जन आंदोलनों के इतिहास में एक बड़ी घटना के रूप में दर्ज किये जाने योग्य बन गई।

मामला एक बार फिर शराब को लेकर है। शराब को लेकर उत्तराखंड की धरती पर किये गये आंदोलनों की एक लंबी फेहरिस्त है। ठगुली देवी को उत्तराखंड के इतिहास में टिंचरी माई के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने शराबबंदी के आंदोलन में पूरे ठेके को ही आग के हवाले कर दिया था। बताते हैं कि शराबियों में टिंचरी माई के नाम का ऐसा खौफ था कि उनका नाम सुनते ही वे भाग खड़े होते थे। बाद के दौर में ‘नशा नहीं-रोजगार दो’ आंदोलन भी पहाड़ों में एक सशक्त जन आंदोलन रहा।

सरकारी शराब के ठेके खोलने के विरोध में किये गए आंदोलन बेशक सफल न हो पाये हों, लेकिन इस तरह के आंदोलन लगातार पहाड़ में होते रहे हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है। पहाड़ में छोटी-छोटी जगहों पर भी बेशक अब शराब के ठेके खोलने में सरकारें डंडे के जोर पर सफल हो गई हैं, लेकिन इसके विरोध का सिलसिला आज भी जारी है। एक तरफ आम लोग और खासकर महिलाएं शराब के ठेकों के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं तो दूसरी तरफ राज्य सरकार शराब बेचकर ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के प्रयास लगातार करती रही है।

दरअसल उत्तराखंड में सरकार से लेकर माफिया तक को शराब बेचकर मोटा लाभ मिलता है। राज्य सरकार के पास आमदनी का सबसे बड़ा स्रोत शराब ही है और माफिया तो तमाम वैध और अवैध तरीकों से शराब बेचकर मोटा पैसा कमा रहे हैं।

शराब बेचकर पहले से ज्यादा पैसा कमाने के लिए राज्य सरकार ने इस बार अपनी आबकारी नीति में एक बड़ा बदलाव किया है। सरकार ने घोषणा की कि कोई भी व्यक्ति 12 हजार रुपये देकर अपने घर में बार खोल सकता है और 50 लीटर तक शराब अपने इस बार में रख सकता है।

राज्य आबकारी नीति 2023-24 में प्रावधान किया गया कि कोई भी व्यक्ति जो 5 वर्षों से इनकम टैक्स रिटर्न भर रहा हो, वह 12 हजार रुपये देकर अपने घर में बार खोलने के लाइसेंस ले सकता है। उसे 9 लीटर भारत में बनी अंग्रेजी शराब, 18 लीटर इंपोर्टेड शराब, 9 लीटर वाइन और करीब 15 लीटर बीयर घर के बार में रखने की इजाजत दे दी गई।

कुछ औपचारिक नियम भी बनाये गये। मसलन बार वाली जगह पर 21 वर्ष से कम आयु वाले किसी व्यक्ति को जाने की इजाजत नहीं रहेगी और शराब बंदी के दिन घर का बार बंद रखना होगा। व्यक्ति इस बार का उपयोग सिर्फ अपने लिए करेगा आदि। जाहिर है ये सब कागजी बातें थीं और इनकी जांच करने के लिए सरकार या आबकारी विभाग के पास न तो संसाधन हैं और न ही कार्ययोजना।

शुरुआती दौर में इस नीति का कहीं कोई विरोध नजर नहीं आया। यहां तक कि 4 अक्टूबर को देहरादून में एक व्यक्ति को इस तरह का लाइसेंस जारी भी कर दिया गया। लेकिन महिलाएं इस नीति को लेकर अंदर ही अंदर सुलग रही थीं। आखिरकार उत्तराखंड महिला मंच देहरादून में सड़क पर उतर आया।

यहां बता दें कि उत्तराखंड महिला मंच का गठन 1994 में पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान किया गया था। राज्यभर की महिला शक्ति उत्तराखंड महिला मंच के बैनर तले सड़कों पर उतर आई थी और तमाम सरकारी ज्यादतियों के बाद भी मंच राज्य गठन तक आंदोलनरत रहा। अब भी देहरादून सहित राज्य के कई हिस्सों में उत्तराखंड महिला मंच जन आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभा रहा है।

बीते 10 अक्टूबर को उत्तराखंड महिला मंच नई शराब नीति के विरोध में देहरादून में सड़कों पर उतर आया। बड़ी संख्या में महिलाएं नारेबाजी करती हुई डीएम के ऑफिस जा पहुंची। महिलाएं डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजना चाहती थीं।

डीएम ऑफिस में उस दिन अजीबोगरीब स्थिति पैदा हो गई। डीएम उस समय किसी मामले की सुनवाई कर रही थीं। लिहाजा एडीएम को ज्ञापना लेने के लिए भेज दिया गया। लेकिन, महिलाओं ने एडीएम को ज्ञापन देने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। उनका कहना था कि यह एक बेहद संवेदनशील मामला है और वे डीएम के अलावा किसी के हाथों में ज्ञापन नहीं सौंपेंगी। महिलाएं ज्ञापन देने के साथ ही डीएम से इस सिलसिले में जरूरी बात भी करना चाहती थी।

उनकी नाराजगी इस बात को लेकर भी थी कि डीएम ने इस तरह का लाइसेंस क्यों जारी किया। दरअसल इस नीति में घर में बार लाइसेंस जारी करने का अधिकार डीएम को दिया गया है और देहरादून की डीएम लाइसेंस जारी कर चुकीं थीं। महिलाओं ने स्पष्ट रूप से चेतावनी दे डाली कि यदि डीएम उनकी बात सुनने और ज्ञापन लेने नहीं आतीं तो महिलाएं डीएम ऑफिस के बाहर रोड जाम कर देंगी।

उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत के नेतृत्व के किये जा रहे इस प्रदर्शन में मुख्य रूप से जिला संयोजक निर्मला बिष्ट, पद्मा रावत, विजय नैथानी, बीना डंगवाल, सरला रावत, किरण पुरोहित, सुशीला उनियाल, शांता नेगी, रुक्मिणी चौहान, शांति सेमवाल, भगवानी रावत, कली नेगी, दिल्ला कलोरा, पार्वती देवी, कमलेश्वरी देवी, सरोजनी चौहान, शकुंतला, सरोजिनी चमोली, सुमित्रा राणा, फूल देवी भंडारी, दीपा देवी आदि  ने हिस्सा लिया।

महिलाओं के इस आक्रोश को देखकर प्रशासन के हाथ-पांव फूल गये। डीएम को सुनवाई छोड़कर महिलाओं से मिलने के लिए आना पड़ा। तब तक महिलाएं डीएम के ऑफिस के भीतर जाकर मोर्चा संभाल चुकी थीं। डीएम ने स्थिति भांप ली। उन्होंने न सिर्फ महिलाओं की बातें सुनी, बल्कि अपने स्तर पर हर संभव प्रयास करने की बात भी कही। महिलाओं ने डीएम से कहा कि वे मुख्यमंत्री से मिलने के लिए समय लें, ताकि महिलाओं का 51 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात रख सके।

महिलाओं ने चेतावनी दी कि यदि जल्द मुख्यमंत्री ने उन्हें मिलने का समय नहीं दिया तो देहरादून ही नहीं पूरे राज्य में शराब नीति के विरोध में उग्र आंदोलन खड़ा कर दिया जाएगा। डीएम के कहने पर यह बात लिखकर दे दी गई। इसके साथ ही मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भी डीएम को सौंप दिया गया।

ज्ञापन में महिलाओं ने लिखा कि उत्तराखंड के लिए शराब हमेशा से एक अभिशाप रही है, जिसके कारण कितनी ही महिलाओं का जीवन यंत्रणामय बना तो कितने ही बच्चों का भविष्य चौपट हुआ है। इसी शराब के कारण कितने पुरुष अकाल मौत के मुंह में चले गए और कितने ही परिवार बर्बाद हुए हैं। दशकों से पहाड़ से लेकर मैदान तक की महिलाएं शराब विरोधी आंदोलन करती रही हैं।

उत्तराखंड आंदोलन में महिलाओं की मांग थी कि उत्तराखंड को शराब और नशे से मुक्त किया जाएगा। लेकिन, उत्तराखंड का दुर्भाग्य यह है कि राजस्व प्राप्त करने की खातिर किसी भी सरकार ने महिलाओं की यह मांग पूरी नहीं की। और वर्तमान सरकार तो सबसे आगे निकलकर अब घर के भीतर ही बार खोलने की मंजूरी दे रही है।

ज्ञापन में कहा गया कि उत्तराखंड महिला मंच का निर्माण ही जनता के हितों के अनुसार उत्तराखंड का निर्माण ही इस आंदोलन के फलस्वरूप हुआ था। उत्तराखंड महिला मंच का हमेशा यही नारा रहा है कि उत्तराखंड को शराब और सभी तरह के माफिया से मुक्त किया जाये। लेकिन आज यही माफिया पूरे उत्तराखंड का नाश कर रहा है। आज पूरे उत्तराखंड में तेजी से नशे का कारोबार फैल रहा है जिसमें सबसे अधिक नुकसान युवाओं का हो रहा है। देव भूमि का गुणगान करने वाले आज नशे के कारोबार को फैलाने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं।

ज्ञापन में सरकार से मांग की गई कि तत्काल इस निर्णय को निरस्त किया जाये। इसके लिए मुख्यमंत्री से मिलकर भी अपनी मांग हम रखेंगे। लेकिन यदि उत्तराखंड सरकार ने यह मन बना लिया है कि वह उत्तराखंड को घर-घर नशे में ही डुबाना ही चाहते हैं तो महिला मंच देहरादून की सभी महिलाओं को लेकर पूरे उत्तराखंड में व्यापक आंदोलन के लिए मजबूर होगा।

महिलाओं के तेवर को देखकर प्रशासन और सरकार की समझ में आ गया कि उत्तराखंड राज्य निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली मातृ शक्ति से भिड़ना आसान नहीं होगा। लिहाजा तीन दिन बाद से सरकार ने घर में बार खोलने का लाइसेंस देने की अपनी योजना का वापस ले लिया।

समाचार माध्यमों ने छोटी से खबर बनाकर अपना कर्तव्य पूरा कर लिया। लेकिन, महिलाओं के आंदोलन शराब नीति को लेकर उनके तेवर को लेकर किसी समाचार माध्यम में कुछ नहीं कहा गया। जनचौक ने इस बारे में उत्तराखंड महिला मंच की अध्यक्ष कमला पंत से बातचीत की। उन्होंने घरों में बार खोलने के लाइसेंस देने के फैसले को वापस लेने का स्वागत किया।

उन्होंने कहा कि यह उत्तराखंड में महिला शक्ति की एक और जीत है। कमला पंत के अनुसार राज्य सरकार पहले ही छोटे-छोटे कस्बों और गांवों तक में शराब के ठेके खोल चुकी है, इससे युवा पीढ़ी पहले ही बर्बाद हो चुकी है, लेकिन अब सरकार घर-घर शराब पहुंचाने के प्रयास में लगी हुई है। उनका कहना है कि ऐसे किसी भी फैसले का सड़कों पर उतरकर विरोध किया जाएगा।

(उत्तराखंड से त्रिलोचन भट्ट की रिपोर्ट।)

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