सोचिये लेकिन, आप सोचते ही कहां हो!

अगर दुनिया से
समाप्त हो जाता धर्म
सब तरह का धर्म
मेरा भी, आपका भी
तो कैसी होती दुनिया

न होती तलवार की धार
तेज़ और लंबी
न बनती बंदूके
नहीं बेवक्त मरते यमन
में बच्चे
रोहंगिया आज अपने
समुद्र में पकड़ रहे होते
मछलियां
ईरान आज भी अपने
समोसे के लिये याद
किया जाता
सऊदी में लोकतंत्र होता
भारत में लोग
यूं नफ़रतों की दीवार
पर चढ़े न होते
पाकिस्तान न बनता
तो फिर बंगलादेश
भी क्यों बनता

सर्बिया में दो लाख
बच्चे यतीम न होते
करोड़ो बच्चे मध्य पूर्व में
आज कब्र में बेवक्त
दफ्न न होते
श्रीलंका यूँ कभी
जला न होता

ओसामा न होता, बगदादी न होता
न होता कभी भिंडरवाला
नाथूराम भी क्यों होता
न होती ये सत्ताधारी
ताकतें, महफूज़

1984 न होता
न ही 1991 होता
2002 न होता
दिल्ली और अब बेंगलोर
भी क्यों होता

जातियां न होती
इंसान, इंसान का
गुलाम न होता

सोचिये
ये धर्म न होता तो
तो फिर क्या होता
मांग पर किसी विवाहिता के
गुलामी का प्रतीक
सिंदूर न होता
बुर्का भी कहाँ होता
घरों में औरतों का निर्माण
नहीं होता
सबसे पवित्र
माहवारी में किसी स्त्री
को यूँ जलील न किया
जाता
मर्दवादी धर्म की गुलाम
उसकी माँ
ही उसे गुलामी का पहला पाठ
न पढ़ाती

सोचिये
तब दुनिया कितनी
हरीभरी होती
कितनी रंगीन होती
कोई सीमा न होती
रिमझिम बारिश में
सब भीग रहे होते
गुलामी न होती
भूख से तड़प कर मौत
न होती
जब भगवान न होता तो
बस आप और हम होते

सोचिये तो
लेकिन,
आप सोचते ही कहाँ हो…

(मनमीत पत्रकार हैं और कई अखबारों के वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं। आजकल आप देहरादून में रहते हैं।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments