चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा है कि भारत की न्याय व्यवस्था औपनिवेशिक है और समय के हिसाब से अब इसमें परिवर्तन की जरूरत है। इसका भारतीयकरण जरूरी हो गया है। उन्होंने कहा कि भारतीयकरण से मेरा तात्पर्य है न्याय व्यवस्था को प्रैक्टिकल रियलिटी के साथ बदलना चाहिए और इसे स्थानीय बनाना चाहिए।
चीफ जस्टिस रमना ने शुक्रवार को कहा कि अब तक जो अंग्रेजों के जमाने की व्यवस्था चली आ रही है वह भारत की जनसंख्या के हिसाब से काम नहीं कर पाएगी। उन्होंने कहा कि कई बार आम आदमी को न्याय के लिए कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। भारत की परिस्थितियों के हिसाब से अदालतों की कार्य शैली मेल नहीं खाती है।
चीफ जस्टिस ने कहा कि समय की मांग है कि कानून व्यवस्था का भारतीयकरण किया जाए। वह कर्नाटक बार काउंसिल के एक कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीयकरण से मेरा तात्पर्य है न्याय व्यवस्था को प्रैक्टिकल रियलिटी के साथ बदलना चाहिए और इसे स्थानीय बनाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर गांवों में पारिवारिक झगड़े में उलझे लोग कोर्ट जाने में परेशानी महसूस करते हैं। वे इसे ठीक से समझ भी नहीं पाते हैं।’
चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि गांव के लोगों को कार्यवाही समझ नहीं आती है और अंग्रेजी की वजह से और भी समस्या का सामना करना पड़ता है। आज के समय में न्याय प्रणाली बहुत लंबी हो गई है। ऐसे में लोगों को बहुत पैसा भी खर्च करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिकता है कि न्याय का सरलीकरण होना चाहिए। न्याय को और पारदर्शी और सुलभ बनाना जरूरी है। कई बार कार्यवाही में आने वाली दिक्कतों की वजह से न्याय मिल ही नहीं पाता है। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि आम आदमी को कोर्ट के चक्कर न लगाने पड़ें। उसे जज और कोर्ट से भय न महसूस हो। वह कम से कम सच बोल सके।’
चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि वकील और जज को मिलकर ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि मामले से जुड़े लोगों को आसानी महसूस हो। अगर व्यवस्था में बदलाव होता है और इसका भारतीयकरण किया जाता है तो न केवल लोग लंबी चौड़ी कार्यवाही से बचेंगे बल्कि इसमें खर्च भी कम आएगा। इससे इतने सारे पेंडिंग केसों से भी निजात मिल सकेगी।
चीफ जस्टिस रमना ने न्याय वितरण का भारतीयकरण करने के लिए समय की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ग्रामीण लोगों को छोड़ दिया जाता है और वे अंग्रेजी में कार्यवाही नहीं समझते हैं। वे अधिक पैसा खर्च करते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि अदालतों को वादियों के अनुकूल होना चाहिए।
चीफ जस्टिस रमना ने कहा कि आम आदमी को न्यायाधीशों और अदालतों से डरना नहीं चाहिए। अदालतों को आराम देना चाहिए। किसी भी कानूनी प्रणाली का फोकस बिंदु वादी होता है। अदालतों को पारदर्शी और जवाबदेह होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि वैकल्पिक विवाद समाधान (एडीआर) संसाधनों को बचाने और लंबित मामलों को कम करने में मदद करेगा।
चीफ जस्टिस कर्नाटक स्टेट बार काउंसिल द्वारा दिवंगत जस्टिस एमएम शांतनगौडर को श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे, जिनका इस साल अप्रैल में अप्रत्याशित रूप से निधन हो गया था।
चीफ जस्टिस रमना ने जस्टिस शांतनगौडर को याद करते हुए कहा कि देश ने एक आम आदमी का न्यायधीश खो दिया। वह प्रैक्टिस करते समय गरीबों और वंचितों के मामलों को उठाने में रुचि रखते थे। उनके निर्णय सरल, प्रचुर, व्यावहारिक और सामान्य ज्ञान के साथ विशाल थे… वह हमेशा सुनवाई के लिए तैयार रहते थे। एक चीज जो सबसे अलग थी वह थी उनका सेंस ऑफ ह्यूमर। तमाम स्वास्थ्य कारणों के बावजूद वह हमेशा सुनवाई के लिए तत्पर रहते थे। मैंने उन्हें तनाव न लेने के लिए कहा और उन्होंने कहा कि वह घर पर नहीं बैठ सकते। वह अंतिम दिन तक सुनवाई के लिए बैठे रहे।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल इलाहाबाद में रहते हैं।)
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