Saturday, April 20, 2024

राजनीति की रोटी बन गयी हिजाब

पांच राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और वोट की रोटी सेंकने के लिए हिजाब विवाद की आंच को सुलगाया गया है। देश के अलग-अलग राज्यों में इस आंच से पैदा हुई चिनगारी फैलने लगी है। हिजाब पहनने और पहनने नहीं देने के विवाद में कर्नाटक उबल रहा है। शहरों में तनाव है। पुलिस फ्लैग मार्च कर रही है। हाईकोर्ट की बड़ी बेंच इस पर सोमवार को सुनवाई करेगी जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया है।

कॉलेज में यूनीफॉर्म कोड लागू होना चाहिए। यह कहकर क्लास में हिजाब नहीं पहनने का अनुशासन लाया गया। कॉलेज में 75 में से 6 बच्चियों ने इस अनुशासन को मानने से मना किया। उनका तर्क था कि यह उनका धार्मिक अधिकार है। यह मसला कॉलेज का आंतरिक मसला था। अगर नहीं संभलता तो धार्मिक अधिकार वाली थ्योरी पर संवैधानिक उपचार या सलाह ली जाती। मगर, यह मसला न द्विपक्षीय रहा और न ही यह प्रशासनिक रहा। मसला हिन्दू-मुसलमान का हो गया।

हिजाब विवाद में छात्र हिन्दू-मुसलमान हो गये

हिन्दूवादी संगठनों की सक्रियता के बाद कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों में कुछ अचानक हिन्दू हो गये। भगवा स्कार्फ बांधकर वे भी क्लास करने का आंदोलन कर बैठे। यहां तक भी यह मसला हिन्दू छात्र बनाम कॉलेज प्रशासन का होता। मगर, हिजाब पहनी छात्रा का विरोध करते हुए इन छात्रों ने जो कुछ किया वह वीडियो क्लिप बनकर पूरे देश की मीडिया में आ गया, छा गया। बात इस रूप में होने लगी कि अगर ‘वे’ हिजाब पहनेंगी तो ‘हम’ भगवा स्कार्फ पहनेंगे।

मामला कॉलेज प्रशासन के हाथ से निकल गया। हिन्दू और मुसलमान दो पक्ष बन गये। दोनों ओर से तर्क गढ़े जाने लगे। क्या सही, क्या गलत पर चर्चा होने लगी। जो हिजाब या बुर्के के विरोधी हुआ करते थे उन्हें भी भगवा स्कार्फ पहनकर हिजाब या बुर्के का विरोध करने का दृश्य नागवार गुजरा। उनकी प्रतिक्रियाएं उन्हें हिजाब या बुर्के का समर्थक बनाने लगीं। भगवा स्कार्फ पहनकर मुस्लिम लड़कियों का रास्ता रोकने, जय श्रीराम के नारे लगाने और उनमें हिजाब नहीं पहनने का खौफ पैदा करने की कोशिशों के तरफदार भी सामने आ गये। यह तर्क बुलंद हुआ कि स्कूल में यूनीफॉर्म ड्रेस पहना जाना चाहिए। यही अनुशासन है।

पीछे रह गयी शिक्षा की प्राथमिकता

हिजाब या बुर्के का विरोध करते रहे जावेद अख्तर, मेधा पाटेकर जैसी हस्तियां सामने आयीं। चिंता जतायी कि विधानसभा चुनावों के लिए धार्मिक सद्भावना को चोट पहुंचायी जा रही है। वहीं, बीजेपी के प्रवक्ताओं-नेताओं ने कभी भगवा पहनकर हिजाब पहनी लड़की को डराने-धमकाने की कोशिश का विरोध नहीं किया। इस जरूरत को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने उल्टे उन लोगों पर ही सवाल दागे जो ऐसे तत्वों का विरोध कर रहे थे। लड़कियों की पढ़ाई से बड़ा मुद्दा उनका पहनावा हो गया। शिक्षा की प्राथमिकता ही इस विवाद में पीछे रह गयी।

प्रियंका गांधी ने इस विवाद को महिलाओं की आजादी से जोड़ा। उन्होंने कहा कि बिकनी, हिजाब या घूंघट क्या पहनें यह महिलाएं तय करेंगी कोई और नहीं। प्रियंका ने उन तत्वों पर हमला बोला जो हिजाब नहीं पहनने की जिद पर भगवा स्कार्फ पहनकर विरोध जता रहे हैं। हालांकि प्रियंका गांधी खुद अपने बयान के लिए आलोचना के केंद्र में आ गयीं। उनके चुने हुए शब्द ‘बिकनी’ को लेकर हंगामा बरप गया।

तिरंगे तक का अपमान हुआ

कर्नाटक के मंत्री के एस ईश्वरप्पा ने भगवा झंडे को भविष्य में राष्ट्रीय ध्वज बनाने की संभावना जताकर हिजाब विवाद में सांप्रदायिकता का पुट और मजबूत कर दिया। यह नया विवाद इस संदर्भ में आया कि एक कॉलेज परिसर में छात्रों ने भगवा झंडा लहरा दिया। अगले दिन कांग्रेस के छात्र विंग एनएसयूआई ने भगवा उतारकर तिरंगा लहराया।

असदुद्दीन ओवैसी के लिए भी हिजाब विवाद प्रिय विषय हो गया। उन्होंने मुस्कान को बहादुर लड़की बताते हुए उसके माता-पिता को अच्छी परवरिश के लिए बधाई दे डाली। ऐसा करते हुए उन्होंने भी अपने चुनावी मकसद को पूरी तरह साधा और मुसलमान वोट बैंक को रिझाने का प्रयास किया।

महिला विरोध तक पहुंच गया हिजाब विरोध

हिजाब विवाद में इधर या उधर की प्रतिक्रियाओं में जो सच की आवाज़ है वो दब गयी। जावेद अख्तर जैसी शख्सियतें जब हिजाब या बुर्के का विरोध करते हैं तो वे महिलाओं के साथ होते हैं, कुप्रथाओं के खिलाफ होते हैं। वे कभी महिलाओं के लिए ख़ौफ नहीं होते। मगर, हिजाब विवाद ने उन्हें भी इधर या उधर में गिन लिया गया।

दूसरी तरफ भगवा पहनकर उद्दंडता कर रहे लोगों की ढाल बन गयी कट्टर हिन्दूवादी राजनीति। एक कट्टरता का विरोध करने के नाम पर कट्टरता थोपते हुए ये सामने दिखे। कुप्रथा का विरोध करते हुए कब वे कुप्रथा का समर्थन करने लगे, उन्हें पता ही नहीं चला। मुस्लिम लड़कियों को बुर्के से आजादी दिलाने की भावना कब मुस्लिम लड़कियों के लिए खौफ की वजह बन गयी, खुद ऐसे लोग भुला बैठे।

मुस्कान ने दिलायी द्रौपदी के चीर हरण की याद

याद कीजिए महाभारत का द्रौपदी चीर हरण। समूचा राजदरबार एक स्त्री के चीर हरण पर लज्जित होकर भी मौन था। जुए में स्त्री को दांव पर लगाना, हारी हुई स्त्री को दासी बनाना और दासी बनते ही मनुष्य होने का अधिकार खत्म मान लिया जाना उस बेशर्म मौन की वजह थी। शायद इसलिए द्रौपदी ने इनमें हर किसी को दुत्कारा लेकिन मदद नहीं मांगी। द्रौपदी ने सिर्फ श्रीकृष्ण से मदद मांगी क्योंकि वह जानती थी कि स्त्रियों का सम्मान करने की सोच केवल उनमें ही थी।

आज मुस्कान मदद मांग रही है। श्री कृष्ण की गीता की शपथ जिस न्याय के मंदिर में खायी जाती है उसी मंदिर के न्यायमूर्तियों से यह मदद की मांग है। मामला बड़ी बेंच को सुपुर्द करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक धार्मिक पोशाक पहनने पर जोर नहीं दिया जाए। अदालत ने आम लोगों पर भरोसा जताया है। आश्चर्यजनक सवाल है कि आम लोग दुसासनों को अगर रोक ही पाते तो अदालत जाने की जरूरत क्यों पड़ती?

पुरुष प्रधान समाज महिलाओँ को जबरन बंदिशों में बांधने को बेचैन रहता है। तमाम तरह की बंदिशें महिलाओं पर ही लगायी जाती हैं। पुरुषों के लिए कोई प्रतिबंध नहीं होता। इस गंभीर विषय का जिस तरह से राजनीतिकरण हुआ है उससे सबसे ज्यादा नुकसान एक बार फिर महिलाओं को ही हुआ है। एक बार फिर पुरुषवादी समाज महिलाओं के हितों की कीमत पर स्वार्थ की रोटी सेंकने में कामयाब हुआ है। इस बार यह रोटी ‘राजनीति की रोटी’ बन गयी।

(प्रेम कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)  

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