एनआरसी-सीएए-एनपीआर के खिलाफ़ विरोध का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। अब समाजसेवी, पर्यावरणविद, आर्टिस्ट और नागरिक समाज के लोग एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं।
जामिया निवासी समाज सेविका टीएन भारती हाथों में महात्मा बुद्ध, अबुल कलाम आजाद, अंबेडकर और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की तस्वीरें लेकर प्रोटेस्ट कर रही हैं। पूछने पर वो कहती हैं, “मेरा एक ही नारा है कि बिना मुसलमानों के मेरा देश विकलांग है। टीएन भारती कहती हैं, जो मोदी सरकार राफेल फाइल नहीं सम्हाल सकी और उनके ऑफिस से राफेल की फाइल गुम हो गई वो लोगों से उनके बाप-दादाओं की नागरिकता साबित करने वाले कागज मांग रहे हैं। मोदी अपनी अम्मा की जन्मपत्री दिखाएं।
टीएन भारती आगे बताती हैं कि असम में पांच लाख लोगों को स्लो-प्वाइजन दिया जा रहा है। वो लोग धीरे-धीरे मर रहे हैं। हमारे लिए तो सभी धर्म बराबर हैं। मुगलों ने हमारे देश में 350 साल शासन किया। उस समय हमारा देश सोने की चिड़िया थी, लेकिन आज ये सब कुछ लूटने और बेंचने पर अमादा हैं अब इनकी चौकीदारी नहीं चलेगी।
टीएन भारती आगे कहती हैं, “13 दिसंबर को 100 नंबर पर कॉल करके मैंने ही पुलिस को बुलाया था। वहां उस समय बाहर से आए कुछ लोग उपद्रव कर रहे थे और शांतिपूर्ण मार्च में व्यवधान डाल रहे थे, लेकिन बलवाइयों को रोकने पकड़ने को कौन कहे पुलिस ने उल्टा जामिया के बच्चों पर ही बर्बरतापूर्ण कार्रवाई शुरु कर दी।”

नोएडा निवासी पंकज पर्यावरण कार्यकर्ता हैं और वो जंतर मंतर पर एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ धरना दे रहे हैं। वो देश भर में घूम-घूम कर जल संरक्षण, ध्वनि और वायु प्रदूषण तथा वृक्षारोपण के लिए लोगों को जागरुक करते हैं। पंकज कहते हैं, “मुझसे मेरी नागरिकता साबित करने के कागज दिखाने को कोई कहे ही क्यों?
वो कहते हैं कि अगर कोई मुझसे ये कहता है कि आप अपनी नागरिकता के कागज दिखाओ तो इसका अर्थ है कि वो मुझे संदिग्ध मान रहा है, और जब तक हम उसको कागज नहीं दिखाते तब तक इस व्यवस्था में अपराधी की तरह संदिग्ध रहेंगे। क्या हमने उन्हें इसलिए चौकीदार बनाया कि वो हमारे ऊपर शक करें। हमसे हमारे बाप-दादाओं की नागरिकता साबित करने को कहें, कागज मांगे।”
आर्टिस्ट अनीता दूबे कहती हैं कि निक्कर से फुल पैंट पहन लेने पर आरएसएस का चेहरा सरकार के पीछे नहीं छुप सकता। आरएसएस सिर्फ़ मुस्लिम विरोधी ही नहीं दलित और महिला विरोधी है। आज ये मुसलमानों की नागरिकता छीनेंगे कल दलितों की भी छीनेंगे। उसके बाद उनके निशाने पर महिलाएं होंगी। वो कहती हैं कि देश की 70 प्रतिशत महिला आबादी के पास नागरिकता साबित करने वाले कागज नहीं होंगे। असम में भी सबसे ज़्यादा 62 प्रतिशत महिलाएं इसकी शिकार हुई हैं। इस सरकार को बदले बिना अब हम चैन से नहीं बैठने वाले।
जम्मू निवासी प्रशांत पेशे से शिक्षक हैं। वो एनआरसी-सीएए को खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रशांत कहते हैं कि जम्मू निवासी होने के कारण मैं आरएसएस की जाहिलियत को बचपन से देखते आ रहा हूं। ये फासीवादी लोग हैं। पैरामिलिट्री फोर्सेस को इन्होंने कम्युनलाइज कर दिया है, जिसको सुधारने में बीसों साल लग जाएंगे। इन्हें बिग कैपिटल्सिटों ने आगे बढ़ाया है ये लोग उन्हीं के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। जो काम वे कांग्रेस से नहीं करवा पा रहे थे वो इनसे करवाने के लिए उन्होंने इनको सत्ता दिलवाई है। जो काम कांग्रेस 60 साल में नहीं कर सकी उसको इन्होंने साढ़े पांच साल में कर दिया।
इंद्र दीप कहते हैं, “जो लोग इसे सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए आफत मानकर खुशी मना रहे हैं वो जब लाइन में लगेंगे तब मालूम चलेगा। जब कागज बनवाने के लिए घूस देना पड़ेगा तब पता चलेगा। पेपर तो सबको बनवाना पड़ेगा न। जिस गरीब के पास घूस देने के पैसे नहीं होंगे वो कागज नहीं बनवा पाएगा। पैसा नहीं होगा तो वो एनआरसी से बाहर हो जाएगा। साइकोरिलिजन को जब सत्ता मिलती है तो वो सबको लाइन में खड़ा करता है। हमें अब इस धर्म के खेल से बाहर आना ही होगा। हम अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। हम नेहरू, गांधी, अंबेडकर की विरासत बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।”

शीतल मोदी-शाह को मोहब्बत वाली झप्पी देना चाहती हैं। शीतल कहती हैं कि वो हमें धर्म, वर्ग, जाति में बांट रहे हैं और हम मोहब्बत वाली, मिलने मिलाने वाली, लोगों के दिलों को जोड़ने वाली जादू की झप्पी दे रहे हैं। बिना किसी भेदभाव के हम जंतर-मंतर आने वाले हर शख्स को हग कर रहे हैं। हम नरेंद्र मोदी और अमित शाह को भी मोहब्बत वाली झप्पी देना चाहते हैं। हम उनको हग करके कहेंगे की प्लीज हमें हमारा लोकतंत्र लौटा दीजिए।
शीतल के साथ तरुण भी सबको हग करके मोहबब्त बांट रहे हैं। वो जंतर मंतर पर चाय पिलाने वाले को भी हग दे रहे हैं और नेता, अभिनेता से लेकर पुलिस वालों तक को। हम नफ़रत को प्यार में बदलना चाहते हैं।
एनआरसी सीएए के विरोध में बैनर उठाए रंगकर्मी आजाद कहते हैं, “हम इसलिए एनआरसी-सीएए का विरोध कर रहे हैं कि सरकार हमारे पैसे को हमारे विकास में खर्च करने के बजाय फालतू के कामों में खर्च कर रही है। 1600 करोड़ रुपये उन्होंने सिर्फ़ असम एनआरसी में ख़र्च कर दिए। तो अनुमान लगाइए कि पूरे देश की एनआरसी में कितने रुपये खर्चे होंगे और इतने रुपये खर्च करने के बाद उससे देश समाज को क्या लाभ होगा। इन पैसों को सरकार कंपनियों, शिक्षण संस्थानों, अस्पतालों को बनाने में खर्च करती तो उससे समाज और देश का विकास होता।
उन्होंने कहा कि एक ओर वो लगातार स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मदों के फंड में कटौती कर रहे हैं और उसे फिजूल के मुद्दों पर उड़ा रहे हैं। नई कंपनियां और कारखाने खड़े करने को कौन कहे उलटे वो तो पहले से बनी सरकारी कंपनियों को भी औने-पौने बेच रहे हैं। आखिर हमारे बच्चे कल क्या करेंगे। कल-कारखाने नहीं होंगे तो हमारे बच्चे क्या करेंगे। काम नहीं मिलेगा तो वो कटोरा लेकर भीख मांगेंगे, चोरी डकैती करेंगे। अपराधी बनेंगे। हम अपने पैसे इस सरकार को यूं तो बर्बाद नहीं करने देंगे। इसीलिए हम एनआरसी-सीएए के खिलाफ़ खड़े हैं। वो हमारे पैसे को एनआरसी जैसी फिजूल की चीजों में बर्बाद नहीं कर सकती। न हम उसे ऐसा करने देंगे।”
सुशील मानव
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