जनता के गुस्से और इरादे को देख कर घबरा गयी है बीजेपी: दीपंकर भट्टाचार्य

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सत्ता की भूखी भाजपा जिसने 2015 के भाजपा विरोधी स्पष्ट जनादेश का अपहरण करके 2017 में नीतीश कुमार के साथ साजिश कर बिहार की कुर्सी हथिया लिया था, इस बार भी उसकी मंशा कोरोना और लॉकडाउन के ज़रिए बिहार के जनादेश को चुरा लेने की थी। लेकिन ज़मीन पर नीतीश सरकार के अहंकार, घमंड व कुशासन के खिलाफ जनता के गुस्से व इरादे को देख भाजपा घबरा गई है। इसीलिए राजद-वामपंथियों-कांग्रेस के महागठबंधन व खासकर महागठबंधन में भाकपा (माले) की उपस्थिति का जनता को डर दिखा रही है।

क्यों भाजपा इतनी घबराई और मायूस नजर आ रही है? भाजपा के पास स्पष्ट रूप से इस चुनाव में जनता के मन में उठ रहे सवालों का कोई जवाब नहीं है। भाजपा ने अपनी विध्वंसकारी नीतियों, घृणा से भरी राजनीति, क्रूर और दमनकारी शासन के माध्यम से पूरे देश में जो भय का माहौल बनाया है, उससे जनता का ध्यान भटकाने के लिए वह भाकपा माले का नाम लेकर मनगढ़ंत हौआ खड़ा कर बचना चाहती है। बिहार के लोगों के पास भाजपा से भयभीत होने  के कारण हैं, क्योंकि भाजपा शासित पड़ोसी राज्य यूपी में योगी आदित्यनाथ के शासन को शांति और समृद्धि के लिए नहीं बल्कि बलात्कार, दमन, डकैती, फर्जी मुठभेड़ों और कानून के शासन के पूरी तरह से चरमरा कर खत्म हो जाने के कारण जंगलराज के रूप में जाना जा रहा है।

चुनावी मैदान में भाकपा-माले का ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है? भाकपा-माले ने 1980 के दशक के उत्तरार्ध में बिहार में अपनी छाप छोड़ी जब पार्टी ने बूथ-कैप्चरिंग का विरोध किया व भूमिहीन गरीबों और दलितों जिन्हें वोट डालने नहीं दिया जाता था, को पहली बार मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया और सफलतापूर्वक उनके मतदान की दावेदारी के संघर्ष को नेतृत्व दिया। पहली बार वोट के अधिकार का प्रयोग करने के बाद दलितों को भोजपुर में एक नरसंहार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद वे 1989 में पहली बार सांसद के रूप में कामरेड रामेश्वर प्रसाद को संसद में भेजने में सफल रहे। भाकपा-माले के एक अन्य नेता डॉ. जयंत रोंगपी को जनता ने असम के स्वायत्त जिला निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चार बार लोकसभा भेजने का काम किया।

इस बात को भी जानना चाहिए कि बिहार और झारखंड में भाकपा (माले) के विधायक कौन रहे हैं? सहार से तीन बार लगातार चुनाव जीतने वाले भोजपुर के प्रतिष्ठित कम्युनिस्ट नेता कॉमरेड राम नरेश राम, बिहार में राज्य सरकार के कर्मचारी आंदोलन के दिग्गज नेता कामरेड योगेश्वर गोप, झारखंड में जनता की सबसे बुलंद आवाज़ कामरेड महेन्द्र सिंह जिनकी 2005 के चुनावों के दौरान नामांकन के तुरन्त बाद हत्या कर दी गई। चंद्रदीप सिंह, अमरनाथ यादव, राजाराम सिंह, अरुण सिंह और सुदामा प्रसाद जैसे जाने-माने किसान नेता, सत्यदेव राम जैसे प्रसिद्ध खेतिहर मजदूरों के नेता, सीमांचल के लोकप्रिय कम्युनिस्ट नेता महबूब आलम, विनोद सिंह और राजकुमार यादव जैसे झारखंड के लोकप्रिय नेता- बिहार और झारखंड विधानसभा में भाकपा माले के प्रतिनिधि रहे हैं।

भाकपा माले के इन शानदार प्रतिनिधियों की सूची के विपरीत कई भाजपा विधायकों और सांसदों के कृत्य बेहद निंदनीय रहे हैं। उनकी पसंद रहे हैं- बलात्कार के आरोपी और सजायाफ्ता विधायक कुलदीप सेंगर, आतंकवाद की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर जो गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमामंडन करती हैं, या गिरिराज सिंह जैसे मंत्री जो कुख्यात नरसंहारी ब्रह्मेश्वर सिंह को गांधी कहते हैं, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिन्होंने अपने पद का दुरुपयोग कर खुद के खिलाफ सभी आपराधिक मामले हटवा लिए हैं। भाजपा के पास ऐसे शर्मनाक उदाहरण हैं जो इतिहास में भारत के लोकतंत्र को कलंकित करने के लिए जाने जाएंगे। 

भाजपा गरीबों और शोषितों के आवाज उठाने से डरती है। बिहार की जनता इस बात को बखूबी जानती है कि किस तरह से मान-सम्मान, लोकतंत्र और विकास की चाहत रखने वाले शोषितों-वंचितों को समाज में निचले पायदान पर बनाये रखने के लिए उनके नरसंहार करने वाले अपराधियों को भाजपा ने हमेशा संरक्षण देने और बचाने का काम किया है। आज भाजपा इस बात को पचा नहीं पा रही है कि इतना कुछ झेलने के बावजूद बिहार की गरीब जनता उनकी साजिश को विफल कर बदलाव के इस संघर्ष में मजबूती से खड़ी होकर एक ताकत के रुप में उभर रही है।

आज बिहार के ‘महागठबंधन’ में वामपंथी, समाजवादी और कांग्रेस का एक साथ आना आजादी के गौरवशाली आंदोलन की धारा की मौजूदगी के अहसास का प्रतीक है। भाजपा को वैचारिक और संगठनात्मक जामा पहनाने वाले पूर्ववर्तियों ने ब्रिटिश शासकों के साथ मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन को धोखा दिया था। भगत सिंह ने इस बात से हमें पहले ही आगाह किया था – आज वे भारत पर ‘भूरे अंग्रेजों’ की तरह शासन करने की कोशिश कर रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था को अडानी-अंबानी साम्राज्य में बदलकर एक नई कंपनी राज लागू करना और क्रूर दमनकारी कानून बनाकर असंतोष और लोकतंत्र की आवाज दबाना बिल्कुल उसी तरह से है जैसे औपनिवेशिक शासकों ने दमनकारी शासन इस देश की जनता पर थोपा था।

हमारे पास स्वतंत्रता आंदोलन और लोकतंत्र की विरासत है। हम भगत सिंह और अंबेडकर के उत्तराधिकारी हैं जिन्होंने सामाजिक समानता और जनता की मुक्ति की मशाल थामी थी। आरएसएस जो मुसोलिनी और हिटलर से प्रेरित हो मनुस्मृति को आधुनिक भारत का संविधान बनाना चाहती थी, आज भी भारत के संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक विरासत और न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा जैसे मूल्यों का विरोध करती है।

अपने अधिकारों के लिए गरीबों और दबे-कुचले लोगों की दावेदारी और लोकतंत्र व संविधान की हिफाजत के लिए जो ताकतें एकसाथ आयी हैं, उनसे भाजपा को भयभीत होने दें। बिहार 2015 के जनादेश के विश्वासघातियों, भारत की अर्थव्यवस्था को तबाह करने वालों और क्रूरतापूर्ण लॉकडाउन कर जनता को अपार संकट में डालने वाले, अपमानित करने वाले पर-पीड़कों को दंडित करने के लिए दृढ़-संकल्प है। बदलाव की निर्णायक घड़ी आ चुकी है और बिहार की जनता इस लड़ाई को लड़ने और जीतने के लिए तैयार है।

(लेखक भाकपा-माले के महासचिव हैं)

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