बढ़ते एजेंसियों के छापों और राज्य आतंक के साथ ही बढ़ रहा है प्रतिरोध का जज्बा

इस वर्ष 59 दिनों तक चले सावन मास के दरमियान लाखों युवाओं को कांवर ढोते हुए जलाभिषेक के लिए लंबी-लंबी दूरी की यात्राओं पर जाते हुए देखकर यह लगता था कि चंद्रयान-3 के युग में भारत का बहुसंख्यक युवा अभी भी मध्यकालीन दौर से गुजर रहा है। पूंजी की क्रूर हृदयहीन सभ्यता ने जब इंसान के जीवन में सुकून के लिए कुछ पल भी न छोड़ा हो। वह जीवन संघर्षों में इस कदर उलझा हो कि अपने दोस्तों-रिश्तेदारों के लिए थोड़ा सा समय न दे पा रहा हो। ऐसे समय में लाखों-करोड़ों उत्तर भारतीय युवा महीनों अनुत्पादक कार्रवाइयों में संलग्न रहे। तो क्या आप इस दौर में भी युवाओं में सामाजिक सरोकारों के जिंदा रहने की परिकल्पना कर सकते हैं।

दूसरी बात- जब दिल्ली में राज्य प्रायोजित दंगाई तांडव मचाने में लगे थे। तो उस समय शांति के लिए दंगे के विरोध में खड़े नौजवान लड़के-लड़कियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को बिना किसी गुनाह किए ही वर्षों जेलों में कैद रखते हुए जमानत के मौलिक अधिकार से भी वंचित कर दिया गया। तो राज्य आतंक के इस दौर में आप अभी भी परिकल्पना कर सकते हैं कि लूट, अन्याय, अत्याचार, गैर बराबरी, नाइंसाफी के खिलाफ बोलने का हौसला युवाओं में बचा होगा?

जिस दौर में उच्च शिक्षा केन्द्रों में पढ़ने की ख्वाहिश लिए युवा सुदूर झारखंड, बिहार या छत्तीसगढ़ के पिछड़े इलाकों से महानगरों में आकर कैरियर की मारामारी में दिन-रात कोचिंग सेंटरों से लेकर शिक्षकों, पुस्तकालयों और प्रतियोगी परीक्षा केंद्रों के बीच पेंडुलम की तरह झूल रहे हों। ऐसे समय में यह परिकल्पना करना कि कुछ छात्र पूंजी की सभ्यता की चमकती दुनिया को लात मार कर गरीब गुरबों के जीवन के बारे में चिंतित होंगे और इस सभ्यता के विकल्प की तलाश में जुटे होंगे। क्या अटपटा सा नहीं लग रहा है?

लेकिन इस समय के ठीक उलट यह तब देखने को मिला। जब राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने 6 सितंबर को एक विज्ञप्ति जारी कर कहा कि अर्बन नक्सलियों द्वारा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में छात्रों-नौजवानों को बरगलाया जा रहा है। उन्होंने पूर्वांचल के विश्वविद्यालयों और एक दर्जन से ज्यादा महाविद्यालयों में संगठन खड़ा कर लिया है। एनआईए का कहना था कि जनवरी 2023 में मिले एक इनपुट के बाद एजेंसी ने जांच शुरू किया था। तो उसे पूर्वांचल में इस तरह के संगठनों की सक्रियता के सबूत मिले हैं।

जो अलग-अलग सवालों पर छोटे-छोटे आंदोलन खड़ा कर जनता को देश के खिलाफ युद्ध के लिए भड़का रहे हैं। एनआईए ने कहा कि लंबी जांच पड़ताल के बाद 130 से ज्यादा ऐसे लोगों को चिन्हित किया गया है और उन पर नजर रखी जा रही है। इसमें छात्रों-नौजवानों के साथ विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। ऐसे लोगों ने एनजीओ, किसानों, छात्रों के बीच में जगह बना ली है। ऐसे संगठनों और व्यक्तियों को चिन्हित कर लिया गया है और उन पर कड़ी निगाह रखी जा रही है।

एनआईए की यह प्रेस विज्ञप्ति एक खास संदर्भ में जारी की गई है। 5 तारीख को सुबह 11 बजे से खबर आने लगी कि इलाहाबाद के साथ बनारस, चंदौली, आजमगढ़ और देवरिया के आठ स्थानों पर एनआईए की टीम ने छापा मारा है। छापे मुख्य रूप से इलाहाबाद में लंबे समय से कार्यरत सीमा आजाद, उनके पति विश्वविजय, भाई मनीष आजाद और एक वकील के घर पर पड़ा था।

दूसरी खबर बनारस से आई। जहां भगत सिंह छात्र मोर्चा के कार्यालय पर एनआईए ने छापा मारा और वहां मौजूद दो छात्राओं से 8 घंटे तक पूछताछ की गई। आकांक्षा आजाद और सिद्धि भगत सिंह छात्र मोर्चा की क्रमशः अध्यक्ष और उप मंत्री हैं। जो महामना कॉलोनी में किराए के कमरे में रहती हैं। यह कमरा भगत सिंह छात्र मोर्चा का कार्यालय भी है। बाद में खबर आई कि लड़कियों को 12 तारीख को एनआईए कार्यालय लखनऊ में हाजिर होने की नोटिस देकर छोड़ दिया गया।

इसके अलावा आजमगढ़ में मंदुरी एयरपोर्ट विस्तार के नाम पर किसानों की जमीन छीनने के विरोध में चल रहे खिरिया बाग में  जमीन-मकान बचाओ आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता और संयुक्त किसान मोर्चा आजमगढ़ के संयोजक देवरिया निवासी राजेश आजाद के घर देवरिया और ससुराल आजमगढ़ के तहबरपुर थाना अंतर्गत बैरमपुर गांव में तलाशी ली गई। वहां से एनआईए कुछ कागजात, किताबें और आंदोलन के पर्चे आदि जब्त कर ले गई।

6 तारीख को इसी संदर्भ में एनआईए की प्रेस विज्ञप्ति अखबारों में देखने को मिली। विज्ञप्ति का आशय यह था कि प्रतिबंधित माओवादी संगठन से संबद्ध कार्यकर्ता पूर्वी उत्तर प्रदेश में छात्रों, नौजवानों, किसानों और गरीबों को बरगला कर को राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने की तैयारी में लगे हैं। एनआईए ने जोर देकर कहा कि ये संगठन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र को केंद्र बनाकर पूर्वांचल में विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। इस प्रेस विज्ञप्ति में कुछ नाम और पहले की गई गिरफ्तारियां का भी जिक्र है।

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड तीन राज्यों की एनआईए ने संयुक्त रूप से इन जिलों में  एक साथ छापा मारा। इस घटना से पूर्वांचल में सनसनी फैल गई। बनारस सहित पूर्वांचल के अन्य जिलों में मध्यवर्गीय समाज जो बीजेपी की नीतियों के पूर्णतः फेल हो जाने के बाद उससे धीरे-धीरे विमुख हो रहाहै। ऐसा लगता है कि “काल्पनिक भय “पैदा कर संघ परिवार छीजते जन आधार को वापस लाने के लिए राष्ट्रवाद और आतंकवाद की पहेली गढ़ रहा है। उस दिन ऐसा महसूस हुआ कि एनआईए की कार्रवाई के बाद उसके एक छोटे से हिस्से में उत्तेजना देखी गई थी।

छापे के बाद भगत सिंह छात्र मोर्चा ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि वस्तुत: संघ और भाजपा जब असफल होने लगते हैं। तो  संभावित हार के डर से आतंकवाद, नक्सलवाद, माओवाद जैसे मुद्दों को उछाल कर समाज में एक तरह का भय पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके अलावा वे राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेते हुए प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र पर विशेष जोर देकर दमन के लिए तार्किक आधार गढ़ रहे हैं। छात्र और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि एनआईए भाजपा की शाखा के रूप में कम कर रही है। चूंकि भाजपा 2024 के आने वाले चुनाव में संभावित हार से डर गई है। इसलिए वह सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और बुद्धिजीवियों का दमन करने पर आमादा है।

इलाहाबाद एनआईए ने सीमा आजाद और उनके पति विश्वविजय के यहां छापा मारा। जिन्हें इसके पहले भी माओवादी के नाम पर जेल में डाला गया था। बाद में वे जेल से छूट गए थे। जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार सीमा आजाद पीयूसीएल की उत्तर प्रदेश इकाई की अध्यक्ष हैं और इलाहाबाद ‌में नागरिक अधिकारों के सवाल पर सक्रिय रहती हैं। इसके अलावा वह दस्तक नामक पत्रिका की संपादक भी हैं।

7 तारीख को सीमा आजाद का एक लंबा बयान सोशल मीडिया पर आया है। उन्होंने एनआईए द्वारा की गई छापामारी में ले जायी गई किताबें, दस्तावेजों का विस्तृत ब्यौरा देते हुए कहा कि मोदी सरकार की हताशा भरी कार्रवाई है। उन्हें भी लखनऊ में एनआईए ऑफिस में बुलाया गया है। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है।

जहां तक बनारस में भगत सिंह छात्र मोर्चा का सवाल है। उसे अक्सर विश्वविद्यालय के कैंपस तथा बाहर भी राज्य दमन के खिलाफ   जनतांत्रिक संगठनों के साथ मिलकर आवाज उठाते हुए देखा जा सकता है। अभी सर्व सेवा संघ को गिराए जाने के खिलाफ चले आंदोलन में बीएसएम सक्रिय था।

6 तारीख को भगत सिंह छात्र मोर्चा ने प्रेस वार्ता आयोजित की। प्रेस वार्ता के दौरान बीएसएम की अध्यक्ष आकांक्षा आजाद ने बताया कि वह ‘एमए एम फिल’ की छात्रा हैं तथा झारखंड के गिरिडीह जिले की रहने वाली हैं। उनके साथ सिद्धि नामक दूसरी लड़की जिससे पूछताछ की गई थी। वह बनारस में ही चौकाघाट की रहने वाली है। जो सामाजिक विज्ञान में एमए की छात्रा है। तीसरी लड़की इप्शिता दिल्ली की रहने वाली है। जो उस समय बनारस में मौजूद नहीं थी।

आकांक्षा का कहना है कि सुबह 5:30 बजे बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड की एनआईए ने भारी पुलिस फोर्स के साथ उनके कमरे को घेर लिया। जिससे मोहल्ले में दहशत का वातावरण बन गया। 5:30 बजे उसके कमरे पर दस्तक दी गई। उसने दरवाजा खोला तो एनआईए की टीम कमरे में घुस गई। सभी सामानों को तीतर बितर कर दिया गया। एक-एक किताब, कापी, डायरी, लैपटॉप, मोबाइल खंगाला गया। अंत में कुछ किताबें, डायरियां और मोबाइल, लैपटॉप जप्त कर 1 बजे के बाद एक नोटिस देकर वे लोग चले गए। नोटिस में 12 तारीख को लखनऊ में एनआईए ऑफिस में हाज़िर होने को कहा गया है।

उनसे तरह-तरह के सवाल पूछे गए। जांच टीम ने पूछा कि आप लोग इस तरह के काम में क्यों संलग्न हैं? आप झारखंड और बिहार सरकार का विरोध क्यों नहीं करते? आपका आर्थिक स्रोत क्या है? आपके संबंध किस-किस से हैं? और आपका माओवादियों के साथ क्या संबंध है?

प्रेस वार्ता में आकांक्षा ने बताया कि हमारे कमरे से कुछ पोस्टर, पर्चा या विभिन्न समय में किए गए कार्यक्रमों के कागजात भी जांच टीम ले गई है। हमें नहीं पता कि वह हमारे लैपटॉप और मोबाइल के साथ क्या करेंगे। आकांक्षा ने भीमा कोरेगांव केस में बंद बुद्धिजीवियों, लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं के लैपटॉप के साथ हुई छेड़छाड़ और उसमें डाले गए फर्जी दस्तावेजों का भी जिक्र किया और आशंका व्यक्त की कि हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है।

इसके साथ ही आकांक्षा ने जिस दिलेरी और साहस के साथ राज्य आतंक का मुकाबला किया वह काबिले तारीफ है। उसने प्रेस के सवालों के जवाब में मुस्कुराते हुए आत्मविश्वास के साथ कहा कि ‘दमन के द्वारा हमें डराया नहीं जा सकता। लोकतंत्र में जनता के सवालों को उठाने का अधिकार हर नागरिक को है। हम कैंपस के अंदर से लेकर कैंपस के बाहर तक होने वाले राज्य दमन, आतंक और गरीबों के उजाड़े जाने, उनके ऊपर होने वाले हमले का विरोध करते रहे हैं। आगे भी हम ऐसा करते रहेंगे’।

आकांक्षा ने कहा कि “मोदी-योगी की भाजपा सरकार अगर दमन के द्वारा हमें रोकना चाहती है। तो ऐसा संभव नहीं होगा। पत्रकार वार्ता में दोनों लड़कियों ने साहस के साथ अपने साथ हुए इस कृत्य की निंदा की और कहा की हमें हमारे इरादे से डिगाया नहीं जा सकता। हम जनता के हितों के प्रति प्रतिबद्ध हैं और उसके लिए लगातार शिक्षा के साथ-साथ आवाज उठाते रहेंगे’।

बाद में बनारस के नागरिक समाज और ऐपवा, माले, आइसा के कार्यकर्ता व शहर के बुद्धिजीवी, मजदूर नेता और भगत सिंह छात्र मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने राज्य दमन के खिलाफ बीएचयू गेट पर प्रोटेस्ट आयोजित किया। जहां भारी पुलिस फोर्स लगा दी गई थी। ऐसा लगता था जैसे कोई युद्ध का मोर्चा खुल गया हो। पुलिस ने आंदोलनकारियों के साथ दुर्व्यवहार किया। लेकिन विरोध करने वाले लोग अंत तक सैकड़ों हथियारबंद लोगों के बीच साहस के साथ डटे रहे। जिससे प्रशासन को पीछे हटना पडा और आधे घंटे के लिए उन्हें विरोध करने की छूट दी गई।

राज्य दमन का विरोध करते हुए वहां मौजूद लोगों ने सरकार की दमनकारी नीति की तीव्र निंदा की। सरकार विरोधी नारे लगाए और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दमन बंद करने का मांग की। आंदोलनकारियों ने लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए संघर्ष जारी रखने का संकल्प दोहराया।

सवाल भारत में विश्व लुटेरी कॉर्पोरेट पूंजी और हिंदुत्व गठजोड़ के नेतृत्व में बन रहे दो तरह के समाज का है। पूंजी की बेतहाशा लूट से एक ऐसा समाज बना है जो रोजगार, सामाजिक सम्मान, मानवीय गरिमा और लोकतांत्रिक चेतना विहीन है। यह सामाजिक श्रेणी जो उदारीकरण के बाद तेजी से फैली है। शोभा यात्राओं, दंगों और अपने से भिन्न समाजों के खिलाफ प्रयोग की जाने वाली संघ और भाजपा की पैदल सेना है।

हम देखते हैं कि यह सेना धार्मिक जलसों और राजनीतिक रैलियों और जातिवादी संघर्षों में इस्तेमाल होती है। भाजपा और संघ के सोशल इंजीनियरिंग के प्रोजेक्ट में समाज के पिछड़े, दलित, आदिवासी समाजों के साथ बेरोजगार नौजवान ऑब्जेक्ट के बतौर प्रयोग किए जाते हैं। वह इन्हीं तबकों से विध्वंसक कार्यक्रमों को लागू कराती है।

वित्तीय पूंजी के संजाल के विस्तार से दलित, पिछड़े समाजों में भी एक मध्यवर्गीय आदर्श विहीन अवसरवादी नेतृत्व पैदा हुआ है। वह भी इन्हीं तबकों को अपने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्वार्थ के लिए सड़कों पर उतारने की कोशिश करता है।

हम एक ऐसे पूंजीवादी समाज में रह रहे हैं जो खुदगर्ज, स्वार्थी, आत्म केंद्रित और भविष्य के असुरक्षा बोध से ग्रस्त समाज है। जिस कारण से हमारे समाज में आपसी एकता, सामाजिक सरोकार और लोकतांत्रिक चेतना लगातार आजादी के बाद कमजोर होती गई।जिसके स्वाभाविक परिणामस्वरूप हमारा देश कॉर्पोरेट हिंदुत्व गठजोड़ के फासीवाद के दरवाजे पर खड़ा है।

लेकिन एनआईए के छापा के आतंक के खिलाफ दृढ़ता से खड़ी छात्राएं, सामाजिक कार्यकर्ता और नौजवान दिल्ली दंगों में राज्य की भूमिका का प्रतिरोध करने वाले दिल्ली के छात्र-नौजवान और सामाजिक कार्यकर्ता तथा भारत में संविधान लोकतंत्र की रक्षा के लिए निर्मित हो रही जन एकता से लोकतंत्र की नई रोशनी की किरण फूटती हुई दिख रही है। हालिया समय में हुए महान किसान आंदोलन, शाहीन बाग में महिलाओं के प्रतिरोध के साथ मेडलिस्ट पहलवानों का संघर्ष और जगह-जगह फूट रहे जन आक्रोश के अंदर निहित ऊर्जा ही इन सामाजिक कार्यकर्ताओं की शक्ति का स्रोत है। जिससे ऊर्जा ग्रहण करते हुए सत्ता के दमन के खिलाफ सीना तानकर खड़े हैं और उसे चुनौती दे रहे हैं।

आज के समय में खड़े हो रहे साहसिक प्रतिरोध में हमें 1930-31 के भारत की झलक दिखाई दे रही है। स्पष्ट है कि भगत सिंह और उनके साथियों तथा स्वतंत्रता आंदोलन के हजारों नायकों द्वारा रोपा गया आजादी, लोकतंत्र, समानता और बंधुत्व का पौधा अभी सूखा नहीं है। आज फिर एक बार विपरीत परिस्थितियों में नई ऊर्जा के साथ अंकुरित हो कर जीवन के सभी क्षेत्र में वह सामूहिक प्रतिरोध की नई इबारत लिख रहा है। नहीं तो उच्च मध्यवर्गीय समाज जो हिंदुत्व का झंडा लिए घूम रहा है। वह अपने बच्चों को विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए भेजकर यहां के गरीब गुरुबों को दंगाई बना रहा है।

ऐसे समय में भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों से निकले छात्र-नौजवान अगर सरफरोशी की तमन्ना लिए हुए लोकतंत्र के मोर्चे पर आ डटे हैं तो निश्चित ही कहा जा सकता है कि उम्मीद जिंदा है। किसानों-मजदूरों का संयुक्त सम्मेलन और विपक्षी राजनीतिक दलों का संविधान, लोकतंत्र बचाने के लिए बन रहा मोर्चा इस बात का संकेत है कि भारत में चल रहे जन आंदोलन से भारत के लोकतंत्र की मूल अवधारणा की रक्षा की जा सकती है।

इसलिए हिंदुत्व-कॉर्पोरेट के इस अंधकार भरे दौर में भी आश्वस्त हुआ जा सकता है कि भारत के लोकतंत्र के सुंदर भविष्य की उम्मीद अभी पूरी तरह से जिंदा है।

 (जयप्रकाश नारायण किसान नेता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 

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