राजीव गांधी: वक़्त की तहज़ीब को मानी देने वाला नाम

कुछ लोग तारीख़ बनाते हैं, और कुछ लोग तारीख़ बन जाते हैं। राजीव गांधी उन चंद शख़्सियतों में से थे जो न सिर्फ़ वक़्त के साथ चले, बल्कि वक़्त से आगे निकलकर उसे नया चेहरा दिया। उनकी ज़िंदगी एक किताब नहीं, बल्कि एक ज़िंदा क़ौमी इंक़लाब थी- जिसके हर सफ़्हे पर एक नई सुबह की किरन थी, और हर लफ़्ज़ में एक बेहतर भारत का वादा।

राजीव गांधी की शख़्सियत में शोर नहीं था, मगर असर था। वो भाषणों से ज़्यादा अपने खामोश यक़ीन से बोलते थे। ना सियासत के सौदागर थे, ना सत्ता के भूखे, बल्कि एक ऐसा नौजवान जो मुल्क की तक़दीर में उजालों की स्याही भरने के लिए सियासत में आया था। एक ऐसा फ़रिश्ता जो इत्तिफ़ाक़ से नहीं, ज़रूरत से इस मुल्क की क़ियादत में आया-और अपनी मासूमियत से उम्मीदों को बुनता चला गया।

मैं जवान हूं, और मेरा भी एक सपना है…

जब राजीव गांधी ने ये अल्फ़ाज़ कहे-“भारत एक प्राचीन देश है, लेकिन एक युवा राष्ट्र है। मैं जवान हूं और मेरा भी एक सपना है, भारत को मज़बूत, स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और प्रथम राष्ट्र बनाना”-तो ये सिर्फ़ जुमले नहीं थे। ये उस दौर में बोई गईं वो बीज थीं, जिनकी शाखें आज के डिजिटल इंडिया में फली-फूली दिखाई देती हैं।

ये सपना किसी फ़िज़ूल आदर्शवाद की उपज नहीं था, बल्कि एक रणनीतिक सोच थी-जिसमें भारत को तकनीक, शिक्षा, स्वावलंबन और लोकतंत्र की सच्ची बुनियाद पर खड़ा करने का इरादा था। वो जानते थे कि इतिहास के धागे में सिर्फ़ बीते कल को नहीं, आने वाले कल की तैयारी को भी बुनना होता है।

जब ख़्वाबों को कंप्यूटर की ज़बान मिली

वो दौर था जब कंप्यूटर का नाम सुनकर लोग डर जाते थे। उन्हें लगता था कि मशीनें रोज़गार खा जाएंगी। मगर राजीव गांधी ने न सिर्फ़ इस डर को तोड़ा, बल्कि कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी को भारत की नई पहचान बना दिया।

उन्होंने देश में सूचना क्रांति की नींव रखी-टेलीकॉम और आईटी सेक्टर में वो बीज बोए जिनकी हरियाली आज वैश्विक मंच पर भारत की टेक्नोलॉजी सुपरपावर की हैसियत बन चुकी है।

उनकी दूरदर्शिता ने 21वीं सदी के भारत की नींव रखी, जबकि ज़माना अभी 20वीं सदी की बंद गलियों में टहल रहा था। आज जो स्टार्टअप कल्चर, डिजिटल पेमेंट्स, ऑनलाइन एजुकेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बातें होती हैं-उसका पहला नक़्शा राजीव गांधी ने ही खींचा था।

लोकतंत्र की जड़ों तक रौशनी पहुंचाई

राजीव गांधी ने लोकतंत्र को सिर्फ़ संसद और सत्ता तक सीमित नहीं रहने दिया, बल्कि उसकी रौशनी को गांव की गलियों और पंचायतों तक पहुंचाया। पंचायती राज को मज़बूती देकर उन्होंने लोकतंत्र को ज़मीन से जोड़ा।

उन्होंने 18 साल की उम्र में युवाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाया। महिलाओं को स्थानीय निकायों में आरक्षण देकर सियासत को जननी के आंचल से जोड़ दिया। उनका यक़ीन था कि अगर भारत को सच्चे मायनों में बदलना है, तो उसकी आवाज़ सबसे नीचे से उठनी चाहिए।

नीतियों में इंसानियत, इरादों में मोहब्बत

राजीव गांधी की राजनीति सिर्फ़ घोषणाओं की सियासत नहीं थी, वो नीति में इंसानियत और इरादों में मोहब्बत लेकर चले।

उनकी बनाई नई शिक्षा नीति ने ग़रीब और पिछड़े तबक़ों के बच्चों को उम्मीद दी। Technology Missions के ज़रिए स्वास्थ्य, आवास, पीने का पानी, टीकाकरण, तेल, बाढ़ नियंत्रण और दुग्ध उत्पादन जैसे मुद्दों को सुलझाने के लिए एक नर्मदिल मगर संजीदा सोच सामने रखी।

उनकी हर योजना में ‘इंसान’ केंद्र में था-न कि आंकड़े। वो जानते थे कि आंकड़े चाहे जितने भी सुनहरे हों, अगर आदमी दुखी है तो तरक़्क़ी सिर्फ़ छलावा है। यही वजह थी कि उनकी हर योजना में एक आम हिंदुस्तानी की ज़रूरत को सबसे पहले रखा गया।

शांति के परचम को उठाकर चलने वाला एक सच्चा नेता

राजीव गांधी ने हिंसा की आग में झुलसते भारत को शांति की छांव देने की कोशिश की। असम, मिज़ोरम, पंजाब जैसे इलाक़े, जहां बारूद की गंध ज़िंदगी का हिस्सा बन चुकी थी, वहां उन्होंने संवाद और समझौते की राह चुनी।

उनका मानना था कि सत्ता की सबसे ख़ूबसूरत तस्वीर तब बनती है जब वो तलवार नहीं, तिजारत नहीं, बल्कि तअल्लुक़ बन जाए। वो तअल्लुक़ जो जख़्मों को सीता है, और दिलों को जोड़ता है। उन्होंने दिखाया कि समझौता कमजोरी नहीं, बल्कि बौद्धिक साहस की अलामत है।

एक वक्त, एक वादा और एक वज्रघात 

21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक बम धमाके ने सिर्फ़ एक नेता की जान नहीं ली, बल्कि एक ख़्वाब को ख़ामोश कर दिया। वो सिर्फ़ एक इंसान की मौत नहीं थी, बल्कि सियासत की सेवा की एक नज़ीर का अंजाम था।

वो नौजवान जो राजनीति में मजबूरी में आया था, और फिर उसे मोहब्बत की तरह निभाया था-उसकी जान एक आतंकवादी हमले में ले ली गई। मगर सवाल यह है: क्या ख्वाब मारे जा सकते हैं? क्या सोच को बम से उड़ाया जा सकता है?

राजीव गांधी: एक नज़्म, एक रौशनी

राजीव गांधी आज भी ज़िंदा हैं-हर उस कंप्यूटर स्क्रीन में, जो गांव के बच्चे की पढ़ाई का ज़रिया बन चुकी है। हर उस पंचायत में, जहां एक औरत अपना मत रख रही है। हर उस युवा की उंगली में, जिसने पहली बार वोट डाला।

उनका वजूद इस मुल्क की सोच में घुल गया है। उनकी सादगी, उनकी मुस्कान, उनका साफ़ नीयत वाला नेतृत्व आज भी मिसाल है। उन्होंने दिखाया कि ‘नेता’ होना एक ओहदा नहीं, एक जिम्मेदारी है। और सच्चा नेता वो होता है जो आने वाली नस्लों के लिए राह आसान बना जाए।

जब हम ‘विकसित भारत’ कहते हैं…

आज जब हम ‘विकसित भारत’ की बात करते हैं, तो हमें याद रखना चाहिए कि इस रास्ते का पहला नक़्शा किसने खींचा। वो रास्ता जिस पर आज की सरकारें टेक्नोलॉजी, डिजिटल क्रांति और आत्मनिर्भरता की बात करती हैं-उसका पहला पत्थर राजीव गांधी ने ही रखा था।

राजीव गांधी चले गए। मगर उनकी सोच, उनका सपना, और उनकी सियासत का सच्चा फलसफ़ा आज भी भारत की रगों में दौड़ रहा है। वो एक नाम नहीं, एक नज़्म हैं। एक ऐसा तराना जो हर दौर में गूंजता रहेगा।

एक आखिरी सलाम…

राजीव, तुम चले गए, मगर तुम्हारे क़दमों के निशान आज भी हमारी राहों में हैं। तुम्हारी आवाज़ आज भी हवा में तैरती है, और तुम्हारा ख्वाब आज भी हमारी पलकों पर ताज़ा है।

राजीव जैसा नेता मिलना शायद नामुमकिन हो, मगर तुम्हारी राह पर चलना मुमकिन है। और यही हमारे लिए तुम्हारे प्रति सबसे बड़ा सलाम होगा।

राजीव गांधी-एक नाम नहीं, एक नज़्म है।

(जौवाद हसन स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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