Friday, June 2, 2023

communism

जयंती पर विशेष: पूंजीवाद के जयघोष के दौर में कार्ल मार्क्स की याद         

पूंजीवाद की जय और साम्यवाद की पराजय के उद्घोष के इस दौर में वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजविज्ञानी और पत्रकार कार्ल मार्क्स {1818 में जिनका जर्मनी में आज के ही दिन जन्म हुआ} की यादें एक बडी...

विचारधारा पर संशय व नेतृत्व का संकट

जिन लोगों को लगता है यह व्यवस्था पूंजीपतियों के लिए है और इसमें बहुसंख्यक जनता न्यूनतम जरूरतें भी पूरी नहीं कर सकती, वे इस व्यवस्था को बदलने के लिए लंबे समय से संघर्षशील रहे हैं। पिछले आठ सालों में...

विश्व मानवता के धरोहर मैक्सिम गोर्की

अल्योशा यानी अलिक्सेय मक्सिमाविच पेशकोफ यानी मैक्सिम गोर्की पीड़ा और संघर्ष की विरासत लेकर पैदा हुए। उनके बढई पिता लकड़ी के संदूक बनाया करते थे और माँ ने अपने माता-पिता की इच्छा के प्रतिकूल विवाह किया था, किंतु मैक्सिम...

पुस्तक समीक्षा: अंबेडकर का मार्क्सवाद के साथ था गहरा रिश्ता

डॉ. बीआर अम्बेडकर का साम्यवाद और मार्क्सवाद से संबंध जटिल था। अम्बेडकर वर्ग पर मार्क्सवादी जोर के आलोचक थे और उनका मानना था कि जाति वर्ग से बिल्कुल अलग उत्पीड़न और शोषण का एक रूप है। दशकों से अम्बेडकरवादियों...

अ-दीदी नि-र्ममता और बंगाल को गुजरात बनाने के “आव्हान”

ममता के पुनराभिषेक की शुरुआत जमालपुर की वामपंथी महिला नेत्री काकोली खेत्रपाल (52 वर्ष) की बलि के साथ हुयी। महिला सशक्तीकरण की स्वयंभू बड़ी अम्मा ममता की टीएमसी के शूरवीरों ने इस अकेली महिला को मारकर जश्न मनाया। काकोली...

कम वेतन पाने वाला पत्रकार अधिक खतरनाक होता है!

पत्रकारों को कम वेतन नहीं देना चाहिए। कम वेतन पाने वाला पत्रकार अधिक खतरनाक हो सकता है। कभी यह रोचक निष्कर्ष निकाला था, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने। कार्ल मार्क्स पर उनकी यह एक रोचक टिप्पणी है।...

जयंतीः सोवियत यूनियन की अहम हस्ती गफूरोफ भी थे जोय अंसारी के प्रशंसक

मुल्क में तरक्की पसंद तहरीक जब परवान चढ़ी, तो उससे कई तख्लीककार जुड़े और देखते-देखते एक कारवां बन गया, लेकिन इस तहरीक में उन तख्लीककारों और शायरों की ज्यादा अहमियत है, जो तहरीक की शुरुआत में जुड़े, उन्होंने मुल्क...

सेपियन्स : सितमगर को मसीहा बताने की हरारी की मक्कारी

युवाल नोह हरारी की बहु-प्रचारित किताब `सेपियंस` पढ़कर एक टिप्पणी।  “मध्य युग के कुलीन सोने और रेशम के रंग-बिरंगे लबादे पहनते थे और अपना ज़्यादातर समय दावतों, जश्नों और भव्य टूर्नामेंटों में बिताया करते थे। उनकी तुलना में आधुनिक युग...

साम्यवाद ही क्यों? : राहुल सांकृत्यायन

आज दुनिया एक वैश्विक महामारी का सामना कर रही है। पूरी दुनिया के सभी संसाधनों पर क़ब्जा करने के लिए लार टपका रही और अपने लोभ के कारण प्रकृति को नोच-खसोट कर पूरे भूमंडल को युद्ध और जनसंहार के...

पूंजीवादी महामारी को समाजवाद की खुराक

कोरोना संकट ने पूरे विश्व में सिर्फ और सिर्फ लाभ अर्जन की प्राथमिकता वाले पूंजीवादी ढांचे को बुरी तरीके से हिला दिया है। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं रह गया है। इस विश्वव्यापी अभूतपूर्व संकट के सामने पूंजीवादी देश पूरी...

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धर्मनिपेक्षता भारत की एकता-अखंड़ता की पहली शर्त

{साम्प्रदायिकता भारत के राजनीतिक जीवन में एक विषैला कांटा है। भारत की एकता धर्मनिरपेक्षता पर ही निर्भर है, इसके...