वाराणसी से ग्राउंड रिपोर्ट: अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की गूंज में खो गए हैं गंजारी दलित बस्ती के बुनियादी मुद्दे

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वाराणसी। राजा तालाब तहसील में रिंग रोड के किनारे पर बाएं गंजारी और दाएं हरसोस गांव स्थित है। इन दोनों गांवों के चौराहे (रिंग रोड के अंडर ब्रिज) पर इन दिनों सुबह-शाम मेला जैसा दृश्य देखने को मिल रहा है। बुधवार को बनारस के कई हिस्सों में हल्की-फुल्की बारिश हुई। लेकिन दोपहर के बाद शाम में गंजारी और आसपास के गांवों के आसमान में बादलों ने सूरज को ढक रखा था और मौसम सुहाना था।

इस वजह से आसपास के गंगापुर, हरसोस, कोइराजपुर, बीरभानपुर, मेहदीगंज, कस्वाड़, बिहड़ा समेत रिंग रोड के सर्विस लेन से गुजरने वाले राहगीर घंटे-आधे घंटे ठहरकर खेतों में कीचड़ के बीच पंडाल लगाने की तैयारी को सुस्ताते हुए देखते हैं। स्टेडियम स्थल (जो अभी खेत की शक्ल में है) पर सैकड़ों मजदूर, जेसीबी की गुर्राहट, ट्रैक्टर-ट्रॉली की फिसलन भरी भागदौड़, अधिकारी-कर्मचारियों के दौरे की ठसक, पुलिस, ट्रैफिक पुलिस, बम निरोधक दस्ते की भीड़भाड़ और सैकड़ों छोटे-बड़े वाहनों का जमावड़ा लगा है।

हम बात कर रहे हैं गंजारी गांव में प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के बारे में। 30.60 एकड़ में बनने वाले स्टेडियम के निर्माण पर 451 करोड़ रुपये खर्च होंगे। जिसका शिलान्यास वाराणसी के सांसद व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 सितंबर को करने वाले हैं। इसी को लेकर खेतों में बारिश-पानी और कीचड़ के बीच तैयारियों को युद्धस्तर पर किया जा रहा है।

गंजारी गांव में स्टेडियम स्थल पर पंडाल की तैयारी में जुटे श्रमिक।

बेशक पूर्वांचल की आर्थिक-राजनीतिक राजधानी वाराणसी में अंतर्राष्ट्रीय मानक के क्रिकेट स्टेडियम के बनाए जाने की घोषणा सराहनीय है। लेकिन प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में शामिल गंजारी समेत आसपास के ग्रामीणों के कई और सवाल और सरोकार हैं, जिनके जवाब बरसों से नहीं मिल पा रहे हैं।

प्रस्तावित स्टेडियम स्थल से कुछ ही दूरी पर गंजारी दलित बस्ती की धरमा कहती है, “सड़क और रास्ते की समस्या से हम लोग बरसों से परेशान हैं। गांव के अन्य हिस्सों में रास्ते और अन्य व्यवस्था कुछ हद तक ठीक है, लेकिन दलित बस्ती की हालत इंसानों के रहने लायक नहीं है। आने-जाने में कीचड़ से बच्चे और बुजुर्ग फिसलकर घायल होते रहते हैं। ग्राम प्रधान से रास्ता बनवाने के लिए कहा गया, लेकिन वे कहते हैं कि बजट नहीं आया है।” मन्ना देवी का कहना है कि “उन्हें अब तक शौचालय सुविधा का लाभ नहीं दिया गया है।”

पिछले खरीफ में धान की खेती में करारा नुकसान उठाने के बाद गंजारी और हरसोस गांव में इस बार मौसम की बेरुखी से किसानों में निराशा और नाउम्मदी घर कर गई है। युवकों को उनकी योग्यता के सापेक्ष नौकरी नहीं होने से गांवों में बेरोजगारी चरम पर है। मोदी के कार्यक्रम को लेकर गांव की बदहाल सड़क के गड्ढों में डामर-गिट्टी डालकर समतल किया जा रहा है।

दलित बस्ती के कीचड़ से सने रास्ते पर कड़ी धरमा देवी।

वहीं, डबल इंजन के दावों के बीच गंजारी के दलित समाज के लोग समस्याओं के ट्रायंगल में उलझे और ठगे हुए महसूस कर रहे हैं। पिच रोड से दलित समाज की बस्ती तक जाने के लिए तकरीबन दो सौ मीटर ईंट का खड़ंजा तितर-बितर बिछा है। इसके थोड़ा आगे बढ़ने पर बस्ती से थोड़ी दूर रास्ते की ईंट गायब है। बारिश और पानी की वजह से कच्चे रास्ते पर गड्ढे बन गए हैं और चहुंओर कीचड़ फैला हुआ है।

अमरावती, मिट्टी के दीवार के सहारे टीन-तिरपाल डालकर गुजारा करने को विवश हैं। वह बताती हैं, “गर्मी के दिनों में दिन धूप से जलने लगता है, जिसकी वजह से घर में रहने का मन नहीं करता है। गर्मी और लपट से तबियत अक्सर बिगड़ जाती है। बारिश में बिस्तर, चूल्हा-राशन और कपड़े बरसात में भीग जाते हैं। कई बार तो आंधी में टीन उखड़ जाती है। पति पहले बुनकरी का काम करते थे। अब कई सालों से बीमार हैं। उनकी दवा तक के पैसे हमलोगों के पास नहीं है। कर्ज-उधारी और मजदूरी से जैसे-तैसे परिवार का नमक-रोटी चलाती हूं।”

पति के लिए आयुष्मान कार्ड के बारे में पूछने पर वह आगे कहती हैं “तकरीबन साल भर पहले बस्ती में कुछ लोग आयुष्मान कार्ड बनाने आये थे। उन लोगों ने पचास रुपये लेकर नाम, पता लिखकर चले गए। जानकारी लेने पर कहते हैं कि अब तक तुम लोगों का कार्ड बनकर नहीं आया है।”

टीन-तिरपाल की झोपड़ी में बेबश अमरावती।

कई महिलाओं ने बताया कि, बस्ती में भी हैंडपंप नहीं है। सप्लाई वाले नल लगे हैं, जिनसे धीरे-धीरे पानी तो आता है, लेकिन बिजली कटौती और खराबी होने पर दो-तीन दिन बस्ती की महिलाओं को पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसना पड़ता है। इनके घर, उनके घर भटकना पड़ता है। कुछ महिलाओं को अभी तक शौचालय नहीं मिले हैं, तो कइयों ने बताया कि चार-पांच साल से लगातार आवास के लिए आवेदन करने के बाद भी उन्हें आवास की सुविधा नहीं मिली है।

लिहाजा, वे मिट्टी-खपरैल के कच्चे मकानों पर प्लास्टिक और तिरपाल डालकर जैसे-तैसे बारिश के बचने की जुगत कर जीवन गुजार रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि नागरिकों की मूलभूत जरूरतों में शुमार आवास, स्वच्छता, जल निकासी, पक्का रास्ता, शुद्ध पेयजल आपूर्ति का स्थाई बंदोबस्त और रोजगार की व्यवस्था नहीं होने से गंजारी की दलित बस्ती मुख्यधारा से छिटकी हुई प्रतीत होती है?

हरसोस के राहुल अपने दोस्तों के साथ स्टेडियम में पंडाल की तैयारी को कौतुहल के साथ देख रहे हैं। वह “जनचौक” से कहते हैं कि स्टेडियम तो ठीक है, लेकिन हमारे गांव में बेरोजगारी की समस्या विकट है। जिस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसके चलते कम मजदूरी मिलने पर लोगों को पेट पालने और परिवार जिलाने के लिए साइकिल से 30-40 किमी दूर जाकर लेबर का काम करना पड़ रहा है।”

राहुल, कोहिनूर, हीरा, शाहिद और निखिल

बीरभानपुर के अधेड़ हो चले रामलाल को भी स्टेडियम का कौतुहल खींच लाया है। वह पंडाल के पास फुटपाथ पर अपने हम उम्र  समीप के गांवों वालों से बातचीत में मशगूल हैं। वह कहते हैं, “बीरभानपुर से लेकर ब्लॉक तक तकरीबन 3 किमी की सड़क काफी से बदहाल है। ग्रामीण, राहगीर, वाहन चालक, एम्बुलेंस और साइकिल से स्कूल-कॉलेज आने-जाने वाले छात्र-छात्राओं को काफी दिक्कत होती है। जिसकी तत्काल मरम्मत होनी चाहिए।”

मुजम्मिल हुसैन ने बताया कि “गंजारी में लगभग 14 एकड़ बंजर जमीन पर दशकों से ठाकुरों का अवैध कब्जा है। सरकार को स्टेडियम के विस्तार या फिर दलित-पसमांदा समाज को बसाने और खेती करने के लिए यह यह जमीन देनी चाहिए। बारिश की कमी से इस बार भी किसानों की हालत पस्त है और किसी नेता-मंत्री को दिखाई भी नहीं दे रहा है। सबको सिर्फ राजनीति की पड़ी है।”

वो कहते हैं कि “बेरोजगारी, महंगाई से सबसे अधिक परेशानी गांव में रहने वाले लोगों को हो रही है। सब परेशान हैं, लेकिन आखिर क्यों कहीं भी चर्चा नहीं हो रही है। स्टेडियम के शिलान्यास के जश्न का माहौल बनाया जा रहा है, लेकिन हम लोगों के गांव की समस्या पर कोई बात नहीं कर रहा है। क्या स्टेडियम से गांव का चहुंमुखी विकास हो जाएगा?”

पंडाल स्थल पर सुबह-शाम जुट रहा मजमा।

बहरहाल, यह देखना लाजमी होगा कि आगामी दिनों में स्थानीय ग्रामीणों की कई परेशानियों का समाधान किया जाता है या गंजारी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम की गूंज में इनकी पीड़ा को दरकिनार कर दिया जाएगा। 

गंजारी स्टडियम पर एक नजर

पूर्वांचल के पहले अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 सितंबर को करेंगे। इसकी तैयारियों की समीक्षा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सोमवार को कर चुके हैं। मुख्यमंत्री ने स्टेडियम स्थल को देखा और सभी तैयारियों को जल्द पूरा करने की जिम्मेदारी तय की। 30.60 एकड़ में बनने वाले स्टेडियम में एक साथ तीस हजार दर्शक बैठ सकेंगे।

पहले चरण में स्टेडियम के साथ पार्किंग व एक प्रैक्टिस पिच बनाई जा रही है। स्टेडियम निर्माण पर 451 करोड़ रुपये खर्च होंगे। राज्य सरकार ने जमीन अधिग्रहण पर 121 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। बीसीसीआई 330 करोड़ रुपये खर्च करके स्टेडियम का निर्माण कराएगी। स्टेडियम में सात पिच होंगी।

स्टेडियम को 30 महीने में तैयार कर लिया जाएगा। गंजारी स्टेडियम के शिलान्यास समारोह में सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, रवि शास्त्री, बीसीसीआई अध्यक्ष रोजर बिन्नी, उपाध्यक्ष राजीव शुक्ल भी आएंगे। साथ ही स्थानीय क्रिकेटरों व खिलाड़ियों को भी आमंत्रित किया गया है।

(यूपी के वाराणसी से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट।) 

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4Comments

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  1. 1
    बिनोद कुमार

    पवन जी आपने दलित बस्ती की समस्या को बड़ी शिद्दत के साथ उठाया है। आज जब सभी सरकार का सिर्फ महिमा मंडन करने में लगे है जैसे सिर्फ अच्छा ही अच्छा हो रहा है, ऐसे में आपकी यह साहस भरी पहल सराहनीय है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।

  2. 2
    Raj Sharma

    क्या फर्क पड़ता है जनता की समस्याओं से जहां ऐसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर का कार्य हो रहा है। वहां आप इन छोटी छोटी समस्याओं के लिए ढिंढोरा नही पीट सकते। स्टेडियम बनने के बाद गंजारी और हरसोस जैसे गांव तुरंत अंतराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनायेंगे। विकास कई गुना रफ्तार से होगा। रोजगार भी खूब मिलेंगे।

  3. 4
    Sanu

    मूल निवासियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की उपेक्षा करना काफी शर्मनाक है

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