काला सच साबित हुआ पीएम का चंदौली वाला ‘काला चावल’

Estimated read time 1 min read

अभी हाल ही में मोदी जी ने वाराणसी दौरे के समय अपनी सरकार द्वारा लाए कृषि कानूनों पर बात रखते हुए वाराणसी से अलग होकर बने चंदौली जिले के किसानों द्वारा काला चावल प्रजाति के धान की खेती के अनुभव बताते हुए कहा कि इसके निर्यात से चंदौली के किसान मालामाल हो गए। पीएम मोदी के दावे को जमीनी हकीकत खारिज करती है। जिस चंदौली जनपद के किसानों के विकास के कसीदे मोदी जी पढ़ रहे थे, वह जनपद नीति आयोग के अनुसार देश के सर्वाधिक पिछड़े जनपदों में एक है।

प्रदेश सरकार ने जब वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट की बात शुरू की तो चंदौली जनपद में शुगर फ्री चावल के नाम पर चाको हाओ यानि काला चावल (Black rice) की खेती शुरू करा दी गई। इस काले चावल की खेती में और विपणन और प्रचार प्रसार में सरकार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। इसके लिए एक गैर सरकारी संगठन चंदौली काला चावल समिति बनाई गई है जो इसे बेचने और पैदा करने से जुड़ी समस्याओ को हल करने में लगी है। सन् 2018 में करीब 30 किसानों ने इसकी खेती की शुरुआत की थी। उन्हें काफी महंगी दर पर बीज मिला और इन सभी किसानों ने एक से लेकर आधा एकड़ में धान लगाया।

ऐसे जमुड़ा (बरहनी ब्लॉक) और सदर ब्लॉक के दो किसानों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि कृषि विभाग के सलाह-मशवरे से मैंने खेती की। करीब बारह कुंतल धान पैदा हुआ। उसका न तो कोई बीज खरीदने वाला मिला और न चावल लेने वाला मिला। आज मेरे पास चावल है, जिसका उपयोग हम खुद कर रहे हैं। वहीं इसके विपरीत समिति के अध्यक्ष शशिकांत राय पहले साल आधे एकड़ में नौ कुंतल चावल पैदा होने और कुंभ मेला के दौरान 51 किलो चावल बिकने की बात बताते हैं।

कृषि विभाग के अनुसार 2018 में 30 किसान 10 हेक्टेयर तो सन् 2019 में 400 किसान 250 हेक्टेयर तो सन् 2020 मे 1000 किसानों ने काला चावल वाले धान की खेती की है। अनुमानतः सन् 2019 में 7500 कुंतल धान पैदा हुआ, जिसमें से मात्र 800 कुंतल धान सुखवीर एग्रो गाजीपुर ने 85 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदा है। बाकी चावल किसानों ने खुद ही उपयोग किया। जिसे निर्यातक बताया जा रहा है वह भी इस साल खरीदने में रुचि नहीं ले रहे हैं। उनके पास आज भी 6700 कुंतल धान है, जो बर्बाद हो रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी के वाराणसी दौरे के दौरान काला चावल की तारीफ के बाद अधिकारियों द्वारा बैठकों का दौर शुरू है। काले चावल के भविष्य को लेकर इसके उत्पादक बहुत आशान्वित नहीं दिख रहे हैं। वही समिति के अध्यक्ष बड़े ग्राहक न होने की बात स्वीकार करते हैं, जिसकी तलाश समिति और इसके प्रमोटर पिछले तीन सालों से कर रहे हैं। काला चावल का उत्पादन जिले में खरीददार के अभाव में कभी भी बंद हो सकता है, ऐसा इसे पैदा करने वाले किसानों का कहना है।

वैसे इसकी खासियत के तौर पर भारतीय चावल अनुसंधान हैदराबाद की रिपोर्ट के मुताबिक जिंक की मात्रा जहां सामान्य चावल में 8.5 पीपीएम होती है, वहीं काला चावल में 9.8 पीपीएम होती है। वहीं पूर्व में पैदा होने वाले काला नमक (धान की एक किस्म) में 14.3 पीपीएम तो आइरन काला चावल में 9.8 पीपीएम काला नमक में 7.7 पीपीएम पाई जाती है। कुल मिलाकर काले चावल की खेती मोदी जी के कृषि कानूनों की तरह ही महज एक सब्जबाग है, इससे ज्यादा कुछ नहीं। अमित शाह के शब्दों में कहें तो जुमला है।

  • धर्मेंद्र कुमार सिंह

(लेखक किसान हैं और चंदौली जिले में अधिवक्ता हैं। साथ ही मजदूर किसान मंच के जरिए किसानों को कॉरपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ संगठित कर रहे हैं।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments