Friday, April 19, 2024

दबंगई रोकने की कोशिश

झारखंड चुनाव के नतीजे आने के अगले दिन 24 दिसंबर 2019 को कई अखबारों में दो नक्शे छपे थे। वर्ष 2018 में भारत के अट्ठाईस में से इक्कीस राज्यों में भाजपा का शासन था, जो 2019 के आखिर तक पंद्रह राज्यों तक सिमट गया। साल 2018 में भाजपा देश की कुल आबादी के 69.2 फीसद हिस्से और देश के 76.5 फीसद इलाके पर राज कर रही थी, जो 2019 में घट कर 46.5 (आबादी) और 34.6 फीसद (इलाके) रह गया।

बड़े राज्यों (बीस या इससे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले) में सिर्फ तीन – कर्नाटक, गुजरात और उत्तर प्रदेश में ही भाजपा के मुख्यमंत्री हैं। बाकी तीन बड़े राज्यों- आंध्र प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु में एनडीए के घटक दलों की सरकारें हैं, लेकिन ये कितनी खिंच पाएंगी, कोई नहीं जानता।

सदमा और भय
मई, 2019 में लोकसभा चुनाव में भाजपा के अकेले तीन सौ तीन सीटें जीत लेने और सहयोगी दलों के साथ यह आंकड़ा तीन सौ तिरपन तक पहुंच जाने से दूसरे राजनीतिक दल सदमे और भय से ग्रस्त हो गए थे। इस तरह नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने हर तरह से भारी-भरकम कद और विजयी छवि हासिल कर ली थी और विपक्ष एक बार फिर से पूरी तरह हाशिए पर चला गया था। मोदी और शाह ने अपनी छवि बेरहम शासक की बनाने में जरा देर नहीं की। दोनों ताकत के बल पर एक के बाद एक ऐसे कदम उठाते गए, जो ये संदेश दे रहे थे कि वे उन पूर्व शासकों की तरह ही हैं जिनका लक्ष्य भी हिंदू राष्ट्र था।

पहला कदम तीन तलाक के अपराधीकरण का विधेयक था। न कांग्रेस ने और न ही दूसरी पार्टियों ने तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने का विरोध किया, बल्कि इन्होंने सिर्फ पति को जेल भेजने की धारा का ही विरोध किया, आखिरकार वे इस पर बहस से इसलिए बाहर हो लिए क्योंकि इस पर बहस में शामिल होना एक अराजक और दोषपूर्ण व्यवहार का समर्थन करने जैसा लगता। अगला क्रूर कदम असम में एनआरसी लागू करना था, जिसमें उन्नीस लाख छह हजार छह सौ सत्तावन नागरिकों को ‘गैर-नागरिक’ या ‘बिना राज्य के’ करार देते हुए बाहर कर दिया गया।

पांच अगस्त, 2019 को तो भाजपा ने भारत के संविधान पर अभूतपूर्व हमला बोलते हुए कश्मीर घाटी के पचहत्तर लाख लोगों को अनिश्चितकाल के लिए बंदी बना लिया, जम्मू-कश्मीर राज्य के टुकड़े कर दिए और तीन क्षेत्रों को दो केंद्र शासित प्रदेशों में सीमित कर दिया। भारतीय गणतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों पर आखिरी हमला नागरिक (संशोधन) विधेयक का था, जिसे बहत्तर घंटे में पास करवाकर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद अधिसूचित भी कर दिया गया।

विरोध की शुरुआत
ये लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेताओं के काम नहीं थे। ये दबंगों के काम थे। शब्दकोश में ‘बुलिंग’ शब्द का अभिप्राय बल प्रयोग, धमकाने, आक्रामक रूप से हावी होने या भयभीत करने से है। दबंग सुझावों पर ध्यान नहीं देते, वे विपक्ष की राय भी नहीं लेते, वे असहमति को बर्दाश्त नहीं करते, और वे कभी भी गलत नहीं होते। दबंग तब कामयाब होते हैं जब आप खुद उन्हें दबंगई की इजाजत देते हैं। एनडीए के दूसरे कार्यकाल के पहले छह महीनों में विपक्षी दलों का जो हश्र हुआ, उसका मुझे अफसोस है।

विरोध का पहला संकेत पश्चिम बंगाल में देखने को मिला। ममता बनर्जी ने भाजपा के साथ वैसा ही व्यवहार किया, जैसा भाजपा ने उनके साथ किया था। भाजपा को इससे भी बड़ा झटका महाराष्ट्र चुनाव में शरद पवार के नेतृत्व ने दिया। नतीजों के बाद जब पवार ने विरोध और राजनीतिक कौशल को मिला लिया तो भाजपा को जोरदार शिकस्त दी। यही वह समय था जब संसद के जरिए नागरिकता संशोधन विधेयक को जबरन पास करा लिया गया था और देश भर में छात्र इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए।

महाराष्ट्र की सफलता और नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को एकजुट करते हुए उनमें जोश भर दिया। एक पखवाड़े (12 से 24 दिसंबर) से भी कम समय में राष्ट्र को अपनी आत्मा मिल गई और दबंगों के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए।

अब यहां से देश कहां जाए? मोदी का कार्यकाल चार साल पांच महीने बचा है, इसलिए दिल्ली में सत्ता बदलने की उम्मीद करना चीजों को बहुत सरल करके देखना है। कुछ पर्यवेक्षकों के अनुसार, जो हो सकता है वह यह कि जनता के भारी विरोध को देखते हुए मोदी रास्ता बदल लें, हालांकि मुझे ऐसा लगता नहीं है।

राज्यों के चुनाव
मुझे लगता है कि 2020 और 2021 में राज्य विधान सभाओं के चुनाव नतीजे मोदी को रास्ता बदलने के लिए मजबूर करेंगे। अगले साल यानी 2020 में जनवरी-फरवरी में दिल्ली में और अक्तूबर-नवंबर में बिहार में विधानसभा चुनाव होंगे। इसके बाद 2021 में फरवरी-मार्च में जम्मू-कश्मीर, अप्रैल-मई में असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होंगे। इनमें हर राज्य में भाजपा को हराया जा सकता है।

अमित शाह ने एक मिथ यह गढ़ दिया कि भाजपा अपराजेय राजनीतिक मशीन है। भाजपा के पास अपनी ताकत है, जो धन की ताकत से और बढ़ जाती है, लेकिन दूसरे राजनीतिक दलों की तरह ही इसमें भी गुटबाजी, असंतुष्टों, बागी उम्मीदवारों और जिन राज्यों में यह सत्ता में है उनमें इसके खिलाफ सरकार विरोधी लहर जैसी बीमारियां हैं।

पिछले दो महीनों में भाजपा को हरियाणा में ठोकर लगी, महाराष्ट्र में उसे नकार दिया गया और झारखंड में हार गई। जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें अगर गैर-भाजपा दल मजबूत होकर उभर जाएं तो इस कामयाबी को आगे बढ़ाया जा सकता है। इसका मतलब यह होगा, उदाहरण के लिए, असम, केरल और पुडुचेरी में कांग्रेस और तमिलनाडु में द्रमुक। बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए राज्यों के हिसाब से विशेष बंदोबस्त करने होंगे और योजना बनानी होंगी। जो आज हालात हैं, उनमें इनमें से किसी भी राज्य में भाजपा पक्के तौर पर नहीं जीत सकती।

कुल मिलाकर लक्ष्य 2024 का लोकसभा चुनाव है। 2024 के पहले ही हिंदू राष्ट्र परियोजना को रोक दिया जाना चाहिए, और 2024 तक भारत के संविधान को बचाए रखना होगा, जैसा कि 1865 में अमरीका में अब्राहम लिंकन ने किया था।

पी चिदंबरम
[इंडियन एक्सप्रेस में ‘अक्रॉस द आइल’ नाम से छपने वाला, पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता, पी चिदंबरम का साप्ताहिक कॉलम। जनसत्ता में यह ‘दूसरी नजर’ नाम से छपता है। हिन्दी अनुवाद जनसत्ता से साभार पर संपादित/ संशोधित।]

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