हिन्दुत्व की विचारधारा के हिंसक कार्यकलाप का विस्तार अब भारत के बाहर भी

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इस समय भारत में हिन्दुत्व के विचार मानने वालों का शासन है। इस विचारधारा का भारत में प्रचलित हिंदू धर्म की विचारधारा से कोई लेना देना नहीं है। हिंदू धर्म की विचारधारा तो सहिष्णुता वाली रही है, जिसका प्रमाण भारत में मौजूद बहु धर्म या सर्व धर्म सद्भाव की संस्कृति है। हिन्दुत्व की विचारधारा तो कोई सौ वर्ष पुरानी है जिसके बीज में हिंसा है। इसके प्रेरणा स्रोत हिटलर व मुसोलिनी जैसे लोग रहे हैं।

अपनी शुरुआत के कुछ ही वर्षों में इस विचारधारा को मानने वाले लोगों ने महात्मा गांधी की हत्या के प्रयास शुरू कर दिए। गांधी की तीन बातें इन्हें नापसंद थीं। पहली छुआछूत दूर करने का अभियान जिसकी परिणति जाति व्यवस्था को खत्म करने के आह्वान के रूप में हुई, दूसरी महिलाओं को पुरुषों के बराबर का दर्जा देना और तीसरी हिंदू-मुस्लिम एकता। ये तीनों बातें हिन्दुत्व की विचारधारा को स्थापित होने में बाधक थीं।

इसके अलावा गांधी अहिंसा की बात करते थे और हिन्दुत्व का हिंसा में पूरा यकीन था। इसलिए वे गांधी को अपने रास्ते का रोड़ा समझते थे। किंतु इस पर विचार करके देखें। यदि कोई भारत की आजादी के आंदोलन के सबसे बड़े नायक को आजादी मिलने के पहले ही मारने की कोशिश कर रहा हो तो हम उसे किसके साथ खड़ा मानेंगे और क्या ऐसे लोग किसी भी तरीके से राष्ट्रवादी हो सकते हैं?

फिर इस विचारधारा के लोगों ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद ध्वंस की। इसका सबसे बड़ा नुकसान देश को यह हुआ कि हमने आतंकवाद नामक समस्या को न्यौता दिया। भारत की सबसे पहली आतंकवादी दुर्घटना, जिसे हम पहले श्रृंखलाबद्ध बम धमाके कहते थे, 1993 के प्रारम्भ में बाबरी मस्जिद ध्वंस की प्रतिकिया में मुम्बई में हुए। उसके बाद से तो देश में कितनी ही ऐसी दुर्घटनाएं हुईं।

आंतकवादी दुर्घटनाओं में कुछ ऐसी भी थीं जिसमें हिन्दुत्ववादी संगठन शामिल थे। इनके खिलाफ मुकदमे अभी चल ही रहे हैं। एक आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को तो भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल से अपना सांसद भी बना लिया है। यानी इस विचारधारा को आतंकवाद से कोई दिक्कत नहीं है, सिर्फ उसको अंजाम देने वाला हिंदू होना चाहिए।

अब तो यह स्पष्ट हो गया है कि उसे अजय मिश्र टेनी व बृज भूषण शरण सिंह जैसे क्रमशः किसानों की हत्या के लिए उकसाने वाले या महिलाओं का यौन शोषण करने वालों से भी कोई दिक्कत नहीं है, यानी गैर हिन्दू हत्यारे और बलात्कारी को ही वह अपराधी मानती है और उन्हीं के यहां बुलडोजर भी चलता है। बिलकिस बानों के बलात्कारियों को सजा पूरी होने से पहले ही छोड़ने में भाजपा सरकार को कोई दिक्कत नहीं है।

2002 में नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए तीन दिनों तक गुजरात में हिंसा का तांडव हुआ जिसके लिए नरेन्द्र मोदी को सीधे जिम्मेदार मानते हुए अमरीका व यूरोप के देशों ने नौ वर्षों तक मोदी को उनके देशों में आने पर प्रतिबंध लगा रखा था।

नरेन्द्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित होने के साथ ही देश में एक नया उन्माद का वातावरण बनना शुरू हो गया। 20 अगस्त, 2013 में पुणे में तर्कवादी एवं महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक अध्यक्ष नरेन्द्र दाभोलकर की दिन दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई।

फिर कोल्हापुर में 16 फरवरी, 2015 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के गोंविंद पंसारे, धारवाड़ में 30 अगस्त, 2015 को कर्नाटक के एक विश्वविद्यालय के भूतपूर्व कुलपति प्रोफेसर एम.एम. कलबुर्गी और बेंगलुरू में 5 सितम्बर, 2017 को पत्रकार गौरी लंकेश की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। इन सभी लोगों में एक चीज समान थी और वह यह कि ये सभी हिन्दुत्व की विचारधारा व राजनीति के कटु आलोचक थे।

2015 में दादरी में मोहम्मद अखलाक की हिन्दुत्ववादियों की एक भीड़ ने इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसके फ्रिज में गाय का मांस रखे होने का शक था। 2017 में हरियाणा के पहलू खान की अलवर, राजस्थान में गोवंश तस्करी करने के शक में एक भीड़ ने हत्या कर दी। 2018 में अलवर, राजस्थान में ही रकबर खान की भी गोवंश तस्करी के शक में हत्या कर दी गई।

2018 में पुलिस इंसपेक्टर सुबोध कुमार सिंह की बुलंदशहर में हिन्दुत्ववादियों ने इसलिए हत्या कर दी क्योंकि उसने उन्हें साम्प्रदायिक हिंसा करने से रोका। हत्या आरोपी को जब जमानत मिली तो उसका फूल-मालों से स्वागत किया गया। 2019 में झारखंड में तबरेज अंसारी की चोरी करने के शक में एक भीड़ ने हत्या कर दी।

2016 में ऊना, गुजरात में चार दलित युवाओं, जिनका पारम्परिक काम मरे गोवंश की चमड़ी उतारना था, पर गोहत्या का आरोप लगा कर हिन्दुत्ववादियों द्वारा सरे आम पीटा और उसका वीडियो सार्वजनिक किया गया।

गौर करने योग्य बात यह है कि हिन्दुत्ववादियों द्वारा किए गए उपर्युक्त अपराधों में आज तक या तो किसी को सजा हुई नहीं और यदि हुई, जैसे 2002 गुजरात साम्प्रदासिक हिंसा में, तो हिन्दुत्ववादी अपराधियों को छोड़ दिया गया है। गनीमत थी कि अभी तक अपराध स्वतंत्र व्यक्ति कर रहे थे, भले ही उनको सरकार का संरक्षण प्राप्त रहा हो।

लेकिन अब मामला और संगीन होता दिखाई पड़ रहा है। अभी तक हिंसा अपने देश में अपने ही देशवासियों के खिलाफ हो रही थी और उसका नुकसान देश को उठाना पड़ा। 18 जून 2023 को कनाडाई नागरिक व खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की ब्रिटिश कोलम्बिया, कनाडा में हत्या हो गई और सितम्बर में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया कि भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि हत्या की कार्यवाही में शामिल था।

अभी यह विवाद ठंडा भी नहीं हुआ था कि अमरीका ने भारत के ऊपर आरोप लगा दिया कि भारतीय दूतावास का कोई अधिकारी निखिल गुप्ता नामक आदमी के माध्यम से किसी पेशेवर अमरीकी हत्यारे को एक लाख डॉलर देकर अमरीकी नागरिक और खालिस्तानी समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश रच रहा था।

यदि इन दोनों मामलों में थोड़ी भी सच्चाई है तो यह भारत के लोगों के लिए बड़े ही शर्म की बात है। यदि भारत सरकार इस तरह अपने विरोधियों की हत्या करवाने की साजिशें रच रही है तो हम कल्पना कर सकते हैं कि देश के अंदर जो हिन्दुत्ववादियों द्वारा अपराध किए जा रहे हैं उनको सरकार का छुपा नहीं बल्कि खुला समर्थन हासिल होगा और इसीलिए किसी अपराधी को सजा नहीं होती और यदि होती है तो उनकी सजा खत्म करा दी जाती है।

हालिया प्रकरण बृज भूषण शरण सिंह का देखा जा सकता है। महिला कुश्ती पहलवानों के आरोप के बावजूद आज तक बृज भूषण की गिरफ्तारी नहीं हुई है और उसी का प्रतिनिधि भारतीय कुश्ती फेडरेशन का अध्यक्ष बन जाता है। बहुत दबाव प़ड़ने पर सिर्फ नई समिति को भंग किया गया है।

क्या अब भी यह छुपाने की बात है कि भाजपा सरकार अपराधी बृज भूषण के साथ खड़ी है और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ या खेलो इंडिया नारों का महिलाओं की अस्मिता या खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने से कोई सम्बंध नहीं है। क्या यह भी बताने की जरूरत है कि जब सरकार खुद हिंसा का समर्थन करने लगे या अपराधियों को संरक्षण देने लगे तो उससे देश को कितना नुकसान होगा?

(संदीप पांडेय सोशलिस्ट पार्टी के उपाध्यक्ष और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता हैं।)

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