भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था के साथ पूंजीवाद का संबंध उपनिवेश और औपनिवेशिक शक्ति के बीच के संबंध का रूप ले…
ताकि भारत न बने पाखंडी-राष्ट्र!
तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन के शुरू से ही केंद्र की भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन…
सत्ता ‘रंग-नुमाइश’ कराती है, ताकि रंगकर्म का विचार मर जाए!
रंगकर्म माध्यम है, यह सोचने या मानने वाले अधूरे हैं। वो रंगकर्म को किसी शोध विषय की तरह पढ़ते हैं…
देश को चंद गिरोहबंद पूंजीपतियों की निजी जागीर बनाने की साजिश
किसान कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन दिन प्रति दिन तेज होता जा रहा है। यह आंदोलन सरकार के खिलाफ…
किताबें मत जलाइए, ऐसा इंतज़ाम कीजिए कि लोग उन्हें पढ़ ही न पाएं!
‘आप भले मेरी किताबें और यूरोप के सबसे उन्नत मस्तिष्कों की किताबें जला देंगे, लेकिन उन विचारों का क्या जो…
पुण्यतिथिः मुंशी प्रेमचंद मानते थे- किसानों को स्वराज की सबसे ज्यादा जरूरत
हिंदी-उर्दू साहित्य में कथाकार मुंशी प्रेमचंद का शुमार, एक ऐसे रचनाकार के तौर पर होता है, जिन्होंने साहित्य की पूरी…
इलेक्टोरल बांड का रिटर्न गिफ्ट है निजीकरण
देश की अर्थव्यवस्था में हो रही गिरावट को समझने के लिए अर्थ सूचकांकों के अध्ययन करने की बहुत आवश्यकता नहीं…
तानाशाही पूंजीवादी लोकतंत्र की तार्किक परिणति है!
23 अप्रैल 2020 के ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में छपे अपने लेख ‘Lenin is not a figure to look up to…’ में…
घर लौटते मजदूरों की पदचापों में हैं पूंजीवाद विरोधी सुर
आज से बीस वर्ष पहले 31 दिसंबर 2000 व 1 जनवरी 2001 को देश के किसान एवं मजदूर नेताओं, सोशलिस्ट…
पूंजीवाद के इंजन को हमेशा के लिए बंद करना ही हमारा काम: अरुंधति रॉय
कोरोनावायरस की महामारी ने पूंजीवाद के इंजन को रोक दिया है। परन्तु यह एक अस्थाई स्थिति है। आज जब पूरी…