तेलंगाना में कांग्रेस को रोकने के लिए भाजपा ने केसीआर के लिए मैदान छोड़ा!

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कोई छह महीने पहले भारतीय जनता पार्टी तेलंगाना में बेहद सक्रिय थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा थोड़े-थोड़े अंतराल पर राज्य के दौरे कर रहे थे और अपने भाषणों में मुख्यमंत्री केसीआर यानी के. चंद्रशेखर राव पर हमला करते हुए राज्य में अगली बार भाजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे थे। कांग्रेस और केसीआर की पार्टी के नेताओं का पाला बदल कर भाजपा में शामिल होने का सिलसिला चल रहा था। ऐसा लग रहा था कि राज्य विधानसभा का चुनाव केसीआर की भारत राष्ट्र समिति बनाम भाजपा होगा और कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी हो जाएगी। लेकिन अचानक तस्वीर बदल गई।

चार महीने पहले हुए कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की धमाकेदार जीत और उसके बाद इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस यानी इंडिया के नाम से विपक्षी दलों के एकजुट होने की घटना ने तेलंगाना का राजनीतिक परिदृश्य बदल दिया है। इन दोनों महत्वपूर्ण घटनाओं ने तेलंगाना में सत्तारूढ़ बीआरएस के सुप्रीमो और राज्य के मुख्यमंत्री केसीआर के साथ-साथ भाजपा की भी चिंता बढ़ा दी है।

तेलंगाना में अगले महीने विधानसभा के चुनाव होना है। मुख्यमंत्री केसीआर को जहां अपना किला बचाने की चिंता है, वहीं भाजपा की चिंता कांग्रेस को रोकने को लेकर है। भाजपा चाहती है कि कांग्रेस किसी भी सूरत में कर्नाटक जैसा प्रदर्शन तेलंगाना में न दोहरा सके। इसलिए उसने मुख्यमंत्री केसीआर और उनकी पार्टी के खिलाफ अपना रूख नरम कर लिया है।

गौरतलब है कि कर्नाटक के चुनाव से पहले तक केसीआर भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ क्षेत्रीय दलों का संघीय मोर्चा बनाने के प्रयास करते हुए राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका तलाश रहे थे। इस सिलसिले में उन्होंने बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली आदि राज्यों के दौरे भी किए थे, लेकिन कर्नाटक के नतीजों के बाद उन्होंने अपने कदम पीछे खींचते हुए अपने को तेलंगाना तक सीमित कर लिया है। इसीलिए उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के खिलाफ बने विपक्षी गठबंधन से भी अपने को दूर रखा है।

केसीआर कर्नाटक चुनाव के पहले तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बहुत आक्रामक तेवर के साथ सक्रिय थे। पिछले करीब एक साल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी तीन मर्तबा तेलंगाना के दौरे पर गए लेकिन केसीआर ने एक बार भी न तो हवाई अड्डे पर उनकी आगवानी का शिष्टाचार दिखाया और न ही उनके किसी कार्यक्रम में शरीक हुए।

लेकिन कर्नाटक चुनाव के बाद उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को अपना बेस्ट फ्रेंड बताना शुरू कर दिया। वे पिछले चार महीनों के दौरान कई बार दिल्ली आकर अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मुलाकात कर चुके हैं। ऐसा लग रहा है कि तेलंगाना में कांग्रेस को रोकने के लिए और लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए भाजपा को केसीआर की जरूरत महसूस हो रही है। इसलिए दोनों में अंदरखाने कुछ सहमति बनने की चर्चा है।

पहले भाजपा राज्य में सत्ता विरोधी माहौल का फायदा उठाना चाहती थी। उसने जिस तरह से तेलंगाना में अपने अभियान को हाइप दी थी, उससे लग रहा था कि वह केसीआर की सरकार को सत्ता से बेदखल करने या सूबे की मुख्य विपक्षी पार्टी बनने के इरादे से चुनाव में उतरेगी। गौरतलब है कि तेलंगाना में पिछली बार भाजपा 117 में से सिर्फ तीन विधानसभा सीट जीती थीं लेकिन उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 17 में से चार सीट जीत गई।

उसके बाद से ही भाजपा तेलंगाना में मेहनत कर रही थी और अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद लगाए थी। उसके अभियान से बने माहौल को देख कर दूसरी पार्टियों के नेता भी भाजपा में शामिल होने लगे थे लेकिन पड़ोसी राज्य कर्नाटक में मिली करारी हार के बाद एक तरफ तो उसका अभियान ठंडा पड़ गया, वहीं दूसरी ओर उसके प्रादेशिक नेताओं के आपसी मतभेद भी सतह पर आ गए, जिन्हें अमित शाह और जेपी नड्डा तमाम कोशिशों के बावजूद पूरी तरह खत्म नहीं करा पाए हैं।

पिछले दिनों तेलंगाना के दो भाजपा नेता एटेला राजेंदर और के. राजगोपाल रेड्डी दिल्ली आकर शाह व नड्डा से मुलाकात की थी। दोनों नेताओं ने बताया था कि संगठन में बहुत गड़बड़ी है और पार्टी की चुनावी तैयारी बहुत अच्छी नहीं है, जबकि कुछ ही समय बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये दोनों नेता दूसरी पार्टियों से भाजपा में आए हैं।

इनमें एटेला राजेंदर पहले केसीआर की पार्टी में थे। उन्होंने इस्तीफा देकर हुजूराबाद सीट पर भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ा था और जीते थे, जबकि राजगोपाल रेड्डी पहले कांग्रेस में थे और उन्होंने भी विधानसभा से इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट पर उपचुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे। उनकी शिकायत के बाद इतना ही हुआ कि केंद्रीय राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और एटेला राजेंदर को चुनाव प्रबंधन समिति का अध्यक्ष बना दिया गया।

दूसरी ओर कर्नाटक की जीत से उत्साहित कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर जोर-शोर से विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटी हुई है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी को कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का करीबी माना जाता है। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने में भी शिवकुमार की अहम भूमिका रही है। सो, शिवकुमार ने भी चुनाव के मद्देनजर तेलंगाना में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। राज्य में बीआरएस की केसीआर सरकार के खिलाफ 10 साल का सत्ता विरोधी माहौल है। कर्नाटक की जीत और राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को मिले समर्थन से उत्साहित कांग्रेस को उम्मीद है कि उसे सत्ता विरोधी माहौल का लाभ मिल सकता है।

इसी बीच एक नए राजनीतिक घटनाक्रम के तहत आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला की भी कांग्रेस से नजदीकी बढ़ी है। शर्मिला ने वाईएसआर तेलंगाना पार्टी के नाम से अपनी नई पार्टी बना कर राज्य में राजनीति शुरू की है। उनकी पार्टी और कांग्रेस के बीच तालमेल की बात हो रही है। सो, कांग्रेस की उम्मीदों में उछाल आया है। उसके जो नेता पाला बदल कर भाजपा या बीआरएस में जाना चाहते थे, उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं।

बीआरएस छोड़ कर जो नेता भाजपा में जाना चाहते थे वे कांग्रेस में शामिल होने लगे हैं। स्थिति में आए इस बदलाव से बीआरएस के साथ-साथ भाजपा की भी चिंता बढ़ी है, जिस पर पिछले दिनों भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अपने प्रादेशिक नेताओं को दिल्ली बुला कर बात की है।

बीआरएस के नेता और खम्मम के पूर्व सांसद पी. श्रीनिवास रेड्डी और राज्य सरकार के पूर्व मंत्री जे. कृष्णा राव पहले भाजपा में जाने वाले थे लेकिन अब वे कांग्रेस में चले गए हैं। दोनों नेता तेलंगाना के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल हुए। कांग्रेस के सर्वोच्च नेता राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने दिल्ली में इनका स्वागत किया। एक साल पहले भाजपा में शामिल हुए एटेला राजेंदर और राजगोपाल रेड्डी ने इन नेताओं को भाजपा में लाने का वादा किया था। अब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अपने इन दोनों नेताओं से नाराज हैं।

उधर भाजपा अपने बारे में कांग्रेस की ओर से हो रहे इस प्रचार से भी चिंतित है कि भाजपा ने कांग्रेस को हराने के लिए केसीआर से हाथ मिला लिया है। इस प्रचार की काट के लिए उसने सूबे में फिर से अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। बताया जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने अपने सभी दिग्गज नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहने को कहा है। राज्य के चारों सांसदों को भी विधानसभा चुनाव लड़ाने की चर्चा है। सांसदों को चुनाव लड़ा कर भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि उसने केसीआर के मैदान छोड़ा नहीं है और वह पूरी गंभीरता से चुनावी लड़ाई में उतर रही है।

मुख्यमंत्री केसीआर से अंदरखाने हाथ मिलाने की खबरों का असर कम करने के लिए केसीआर के बेटे केटी रामाराव के खिलाफ करीमनगर सीट पर पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और हाल ही में राष्ट्रीय महामंत्री बनाए गए संजय कुमार को उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना है। अगर मुख्यमंत्री बेटी के. कविता चुनाव लड़ती हैं तो उनके खिलाफ सांसद डी. अरविंद कुमार को लड़ाया जा सकता है।

कुल मिला कर तेलंगाना को लेकर भाजपा बुरी तरह उलझ गई है। अब वह जैसे तैसे राज्य में केसीआर की पार्टी और कांग्रेस से लड़ते हुए दिखना चाहती है लेकिन उसके शीर्ष नेतृत्व का पूरा ध्यान मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में लगा हुआ है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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