संयुक्त राष्ट्र ने भी दिया सीएए मामले में दखल, सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

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नई दिल्ली। एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में यूनाइटेड नेशन्स ह्यूमन राइट्स कमिश्नर (ओएचसीएचआर) ने सु्प्रीम कोर्ट में दायर विवादित सीएए एक्ट 2019 संबंधी मुकदमे में दखल याचिका दायर किया है। विदेश मंत्रालय ने यूएन बॉडी की इस पहल की आलोचना की है।

एमईए की ओर से जारी एक प्रेस रिलीज में मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि जेनेवा में भारत के स्थाई मिशन को ओएचसीएचआर की ओर से सोमवार को यह सूचना दी गयी कि उसके दफ्तर ने सुप्रीम कोर्ट में एक दखल याचिका दायर की है।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि नागरिकता कानून भारत का एक आंतरिक मामला है। और भारत की संसद को इस पर कानून बनाने का सार्वभौमकि अधिकार है।

प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि “हम इस बात में पूरी दृढ़ता के साथ विश्वास करते हैं कि किसी भी विदेशी पक्ष को भारत की सार्वभोमिकता के मामले में किसी भी तरह का हक नहीं है।” मिस मिशेल बैसेहेलेट जेरिया की तरफ से दायर की गयी दखल याचिका में कहा गया है कि यूएन बॉडी इसमें एमिकस क्यूरी के तौर पर हस्तक्षेप कर रही है। और यह उसे आदेश के जरिये हासिल है जिसमें कहा गया है कि “सभी तरह के मानवाधिकारों की रक्षा और उसे बढ़ावा देना और इसके लिए जरूरी वकालत भी करना……यूएन जनरल असेंबली के प्रस्ताव 48/141”

ओसीएचआर को इस बात का संज्ञान है कि सीएए से हजारों विदेशी प्रवासियों को फायदा होगा और यह कि इसका एक सराहनीय उद्देश्य है। आवेदन में इस बात को भी साफ किया गया है कि इसकी दखल को सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिकाकर्ताओं द्वारा लगाए जा रहे आरोपों का कोई समर्थन है।

इसमें कहा गया है कि सीएए ने अंतरराष्ट्रीय ह्यूमन राइट्स लॉ के कुछ मसलों पर भी सवाल उठाए हैं। और उसका आवेदन प्रवासियों और खासकर शरणार्थियों से जुड़ा हुआ है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि “अंतरराष्ट्रीय ह्यूमन राइट्स कानून के तहत राज्यों को अपने क्षेत्र के प्रवासियों का सम्मान करना चाहिए और इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि अपने इलाके या अपने अधिकार क्षेत्र या प्रभावी नियंत्रण वाली जगह में बराबरी और गैरभेद-भाव का व्यवहार हो। और यह सब कुछ बगैर उनके वैधानिक स्टैटस और दस्तावेज जो उनके पास हैं, के आधार पर होना चाहिए।”

आपको बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 140 याचिकाएं दायर की गयी हैं। इनमें सीएए कानून को चुनौती दी गयी है। 22 जनवरी को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मामले में चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है। असल याचिका केरल सरकार द्वारा दायर की गयी है।

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