कुतुब मीनार के पास धार्मिक संरचनाओं के तोड़े जाने से लोगों में नाराजगी

Estimated read time 1 min read

नई दिल्ली। कुतुब मीनार के पास सदियों पुरानी धार्मिक संरचनाओं के तोड़े जाने से लोग खासे नाराज हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। लेकिन कुतुब मीनार के आस-पास के इलाके को केंद्रीय बलों ने घेर रखा है और पहले से भी अधिक तोड़-फोड़ की आशंका बनी हुई है।

30 जनवरी को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अखूंदजी मस्जिद, निकटवर्ती मदरसा बहरुल उलूम और संजय वन में एक कब्रिस्तान, कुतुब मीनार के पास एक आरक्षित वन और साथ ही महरौली में एक काली मंदिर को भी तोड़ दिया। “अतिक्रमण” हटाने के अभियान को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।

इलाके में कब्रों और एक कुएं सहित कई सूफी मंदिरों को भी तोड़ दिया गया है।

अखूंदजी मस्जिद कितना पुराना है ये किसी को नहीं पता लेकिन 1922 की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट के अनुसार इसकी मरम्मत 1853-54 में की गई थी।

इतिहासकार विलियम डेलरिम्पल ने एक्स पर मस्जिद की एक फ़ाइल फोटो पोस्ट की और लिखा कि “लेकिन बाईं ओर का मेहराब स्पष्ट रूप से सल्तनत शैली का है, और जबकि ध्वस्त संरचना का अधिकांश भाग निस्संदेह एक आधुनिक पुनर्निर्माण है, यह अत्यधिक संभावना है कि इसे सल्तनतकालीन मस्जिद/दरगाह/खानकाह के खंडहरों पर बनाया गया था, और इन संरचनाओं को सावधानीपूर्वक संरक्षित किया जाना चाहिए था, भले ही आधुनिक इमारतों को अनधिकृत अतिक्रमण के रूप में निर्धारित किया गया हो।”

केंद्रीय आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के तहत काम करने वाले डीडीए की कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब कई मुस्लिम उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में हिंदू प्रार्थनाओं के आयोजन की अनुमति देने वाली कोर्ट के खिलाफ बोल रहे हैं।

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने सोमवार को राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान यह मुद्दा उठाया। उन्होंने सदन में कहा, “जिस प्रधानमंत्री ने अबू धाबी की शेख जायद मस्जिद में मुस्कुराते हुए सेल्फी ली उन्हें महरौली में 700 साल पुरानी अखूंदजी मस्जिद को गिराए जाने की चीखें क्यों नहीं सुनाई देतीं?”

प्रतापगढ़ी ने कहा “डीडीए, जिसकी स्थापना 1957 में हुई थी, महरौली मस्जिद को अतिक्रमण बता रहा है जो उससे कई सौ साल पुरानी है। क्या विकास प्राधिकरण पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का पालन नहीं करते हैं?”

यह अधिनियम, जो स्वतंत्रता के समय पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र को संरक्षित करता है, ज्ञानवापी मामले में सवालों के घेरे में है। प्रतापगढ़ी का कई विपक्षी दलों ने समर्थन किया लेकिन बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने इस कानून को रद्द करने की मांग की।

ध्वस्त संरचनाएं एएसआई या दिल्ली पुरातत्व विभाग के तहत संरक्षित स्मारक नहीं थीं जो सामूहिक रूप से दिल्ली के 1,208 मान्यता प्राप्त स्मारकों के पांचवें हिस्से से भी कम की रक्षा करते हैं।

इतिहासकार राणा सफ़वी ने द टेलीग्राफ को बताया कि “हो सकता है कि सदियों से मौजूद स्मारक संजय वन (जिसे 1994 में आरक्षित वन घोषित किया गया था) पर अतिक्रमण नहीं हो सकते हैं। डीडीए, स्मारकों से भरे इलाके को इस तरह से नहीं तोड़ सकता।’

महरौली में पिछले साल बड़े पैमाने पर झुग्गियों को तोड़ा गया था, जिनमें से कुछ कथित तौर पर निर्दिष्ट स्मारक परिसर में अतिक्रमण कर रहे थे। हिंदुत्व समूह भी मांग कर रहे हैं कि कुतुब मीनार परिसर के अंदर मंदिर की स्थापना की जाए। संजय वन दक्षिणी दिल्ली रिज पर है जहां तेंदुए और दूसरी लुप्त होती प्रजातियां देखने को मिलती हैं।

अखूंदजी मस्जिद में सुबह-सुबह अचानक हुए तोड़फोड़ में मौलवी ज़ाकिर हुसैन का सारा सामान खो गया। उनका कहना है कि मस्जिद तोड़े जानी की कोई सूचना नहीं दी गई थी। वे अब महरौली में एक किराए के परिसर में रह रहे हैं, जहां उन्होंने द टेलिग्राफ को बताया कि “लोगों के पास अब अपने मृतकों को दफनाने के लिए कोई जगह नहीं है। मदरसे के 25 बच्चों को उस सुबह ठंड में छोड़ दिया गया था जब तक कि हम उन्हें काला महल मदरसे  में नहीं ले गए।

सीपीआईएमएल-लिबरेशन की एक फैक्ट-फाईंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि “हालांकि महरौली में समुदायों के बीच शांति और सद्भाव कायम है, लेकिन चुन-चुन कर विशेष समुदाय का इस तरह से निकाला जाना (कथित तौर पर मुस्लिम फेरीवालों का) और तोड़-फोड़ (एक मंदिर का भी) जैसी कार्रवाइयों से इलाके में ध्रुवीकरण का खतरा है। दिल्ली 22 जनवरी से उबल रही है।

विरासत संरक्षणकर्ता सोहेल हाशमी ने कहा कि “डीडीए ने गैर-देशी पेड़ लगाए हैं, एक बैडमिंटन कोर्ट बनाया है, योग कक्षाएं शुरू की हैं और संजय वन में पैराग्लाइडिंग सुविधा की योजना बनाई है। लेकिन यहां बने कूड़े के ढेरों और फार्महाउसों को नजरअंदाज कर दिया गया है। डीडीए इस जंगल को पास के वसंत कुंज के समृद्ध निवासियों के लिए एक बगीचे में बदल रहा है।

डीडीए के प्रवक्ता ने द टेलिग्राफ के कॉल और संदेशों का कोई जवाब नहीं दिया।

(‘द टेलिग्राफ’ में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments