देश कोरोना से लड़ रहा है और सरकार पश्चिम बंगाल में एक महिला से!

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एक तरफ रोज़ कोविड के मामले व्यापकता के साथ बढ़ रहे हैं और दूसरी ओर देश के प्रधानमंत्री और उनकी पूरी सरकार बंगाल चुनाव में भीड़ लगाके चुनाव में व्यस्त हैं एवं उनकी पार्टी की सरकार लाखों की भीड़ लगाके कुम्भ मेले का आयोजन कर रही है। यह आरोप है झारखंड जनाधिकार महासभा, झारखंड का।

महासभा का कहना है कि 2020 में कोविड के शुरुआती दिनों में केंद्र सरकार लगातार बयान देते आई है कि कोविड स्वास्थ्य महामारी नहीं है। अब फिर से उसी प्रकार कोरोना वायरस के नए प्रकारों के बढ़ती लहर के बावज़ूद शुरुआती दिनों में केंद्र सरकार इस लहर व इस बार के म्युटेंट वायरस के विषय में सार्वजानिक रूप से नहीं मान रही थी।

झारखंड समेत देश के कई अन्य राज्यों में फिर से टेस्टिंग किट की कमी, अस्पताल में ऑक्सीजन व बेड की कमी, OPD बंद कर देना, आदि जैसी समस्यां दिख रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पिछले वर्ष कोरोना महामारी के अनुभव से सरकार ने कुछ नहीं सीखा है। पिछले एक वर्ष में सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ नहीं किया गया। केंद्र सरकार के इस वर्ष के बजट में भी इस ओर खास प्रावधान नहीं था। यह भी चिंताजनक है कि वाहवाही लूटने के चक्कर में केंद्र सरकार ने देश में ही बने हुए टीका को अन्य देशों में भेजा और आज तक पूरे देश में केवल 1% आबादी को टीका लग पाया है।

झारखंड में तो स्थिति भयाभय है। हालांकि राज्य की सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली हमेशा बहुत कमज़ोर रही है, लेकिन पिछले एक साल में राज्य सरकार द्वारा इसको सुदृढ़ करने के कुछ ख़ास प्रयास नहीं दिखे हैं। वर्तमान में राज्य में हर पांच दिन में मामले दोगने हो रहे हैं।

महासभा ने कहा कि महामारी की दूसरी लहर ने फिर से भाजपा व केंद्र सरकार के हिंदुत्व बहुसंख्यकवाद के चेहरे को बेनकाब कर दिया है। पिछले वर्ष भाजपा, केंद्र सरकार व उनकी गोदी मीडिया ने तबलीगी जमात में पाए गए कोरोना के मामलों को सांप्रदायिक रंग देकर मुसलामानों को बदनाम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी। अब लाखों हिन्दू कुम्भ में भीड़ लगा रहे हैं। हरिद्वार में केसों की संख्या रोज़ बढ़ रही है। एक तरफ उत्तराखंड की भाजपा सरकार आस्था के नाम पर मेला आयोजन करवा रही है और दूसरी ओर केंद्र सरकार चुप्पी साधे बैठी है।

कोरोना की बढ़ती लहर में झारखंड समेत अन्य राज्यों ने कई प्रकार की पाबंदियां लगायी हैं। अर्थव्यवस्था और ख़राब होने की संभावना है। फिर से भुखमरी की स्थिति बढ़ेगी। दूसरी ओर सरकार के गोदामों में अब तक का सबसे अधिक अनाज (बफर मात्रा का 3.5 गुना- 772.33 लाख टन) जमा हो गया है। कई राज्यों से सूचना मिल रही है कि रोज़गार के अभाव एवं महामारी की अनिश्चितता के कारण प्रवासी मज़दूर अपने गाँव वापस आने के लिए परेशान हैं। ट्रेनों की सीमित संख्या के लिए खचा-खच भीड़ शुरू हो गयी है।

ऐसी परिस्थिति में यह आवश्यक है कि केंद्र सरकार अपना पूरा ध्यान महामारी को रोकने एवं गरीबों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में लगाए। साथ ही, केंद्र सरकार इस दौरान चुपके से किसी भी प्रकार अध्यादेश पारित न करे (जैसे पिछले वर्ष कृषि कानून में बदलाव का अध्यादेश पारित किया था)। अगर कोई नीतिगत बदलाव की आवश्यकता हो, तो विशेष संसद सत्र का आयोजन कर प्रस्ताव रखे। झारखंड जनाधिकार महासभा महामारी की दूसरी लहर से लड़ने के लिए केंद्र व झारखंड सरकार से निम्न मांग करती है-

टीकाकरण की गति को अविलंब कम-से-कम तीन गुणा किया जाए। टीका उत्पादन की वृद्धि की जाए और टीकाकरण की आवश्यकता का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए। शहरी बस्तियों में जांच, टीकाकरण व स्वास्थ्य शिविर लगाया जाए। साथ ही, व्यापक पैमाने पर आरटी पीसीआर जांच की जाए। ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ाकर आक्सीजन की पूर्ण उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। नागरिकों को ऑक्सीजन चढ़ाने की तत्काल ट्रेनिंग दी जाए।

अस्पतालों में बिस्तर की संख्या, दवाई व मेडिकल स्टाफ की युद्धस्तर पर व्यवस्था की जाए। यह सुनिश्चित किया जाए कि हर स्तर के स्वास्थ्य केन्द्रों व निजी अस्पतालों में अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के लिए OPD व्यवस्था सुचारू रहे। राज्य सरकार फिर से पंचायत-प्रखंड स्तर पर क्वारंटाइन सेंटर को सुचारु करे।

बिना विलम्ब सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए बजट आवंटित किया जाए।

राज्य सरकार पूर्ण लॉकडाउन किसी भी परिस्थिति में न लगाए। आर्थिक गतिविधियों को यथासंभव चालू रखा जाए। मुख्यमंत्री शहरी श्रमिक रोज़गार योजना के लिए पर्याप्त बजट आवंटित कर कार्यान्वित किया जाए। मनरेगा के अंतर्गत हर गाँव में तुरंत पर्याप्त संख्या में कच्ची योजनाओं को कार्यान्वित किया जाए। कृषि उत्पादों, सब्जी आदि के बिक्री के लिए आवागमन पर किसी प्रकार की रोक न लगे।

सरकार सार्वजानिक स्थानों में मास्क व आपसी दूरी सुनिश्चित करे एवं इसके आवश्यकता पर व्यापक प्रचार-प्रसार करे। वैसे सभी आयोजन, जहाँ आपसी दूरी व मास्क सुनिश्चित करना संभव न हो, उन पर रोक लगे। अगर ऐसा आयोजन हो, तो लोगों पर पुलिसिया दमन के बदले, मौके पर सशुल्क आरटीपीसीआर जांच व मास्क दी जाए और आयोजन को रोका जाए।

केंद्र सरकार जन वितरण प्रणाली को तुरंत ग्रामीण क्षेत्रों व शहरी बस्तियों के लिए सार्वजानिक करे, ताकि सभी छूटे परिवारों को अनाज मिल सके। राज्य सरकार दाल-भात केन्द्रों को पूर्ण रूप से सुचारू करे। स्थानीय प्रशासन व राशन डीलरों को स्पष्ट निर्देश हों कि अगर कोई भी ज़रूरतमंद व्यक्ति अनाज मांगे (चाहे राशन कार्ड हो या नहीं), उन्हें निःशुल्क अनाज दिया जाए। आंगनवाड़ी केंद्रों को बंद न किया जाए। केंद्रो में आपसी दूरी व मास्क सुनिश्चित करते हुए बच्चों, गर्भवती महिलाओं व बुजुर्गों के लिए भोजन/सूखा अनाज की व्यवस्था की जाए।

राज्य सरकार दैनिक मज़दूरों, रिक्शा चालकों, घरेलू कामगारों, कचड़ा चुनने वालों व सफाई कर्मचारियों को महामारी के दौरान निःशुल्क अनाज व आय का सहयोग दें।

राज्य सरकार प्रवासी मज़दूरों से सम्बंधित जानकारी, जैसे- किस राज्य में कितने मज़दूर गए हैं, ज़िलावार सूची आदि को सार्वजानिक करे। दुःख की बात है कि अभी तक इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कर एक्ट में केवल लगभग 5800 मज़दूरों का ही पंजीकरण हुआ है (सरकारी आंकड़ों के अनुसार)। साथ ही प्रवासी झारखंडी मज़दूरों के हित को सुनिश्चित करने के लिए हेमंत सोरेन सरकार अन्य राज्यों को पत्र लिखे।

आपसी दूरी व मास्क सुनिश्चित करते हुए सार्वजानिक परिवहन व्यवस्था को पूर्ण रूप से चालू रखा जाए। ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जाए। बसों तथा ट्रेनों में नये यात्रियों के बैठने के पूर्व वाहनों को सेनेटाईज किया जाए। हर बस स्टैंड व स्टेशन पर जांच की व्यवस्था की जाए।

केंद्र सरकार PM Cares निधि का तुरंत सार्वजानिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए इस्तेमाल करें एवं उससे सम्बंधित जानकारी को सार्वजानिक करें। राज्य सरकार महामारी सम्बंधित एक वेबसाइट बनाए जिस पर महामारी से सम्बंधित सभी सरकारी आदेश, अधिसूचना, हेल्पलाइन, दैनिक टेस्टिंग व टीकाकरण रिपोर्ट, सरकारी व्यय आदि उपलब्ध हो।

राज्य में पर्याप्त आजीविका के साधन सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार लम्बी रणनीति बनाएं (ताकि रोज़गार की तलाश में लोगों को पलायन न करना पड़े)। लैंड बैंक की नीति को रद्द किया जाए, प्राकृतिक संसाधनों पर पूर्ण स्वामित्व मिले, वनाधिकार कानून के तहत सामुदायिक वन आधिकार और सामुदायिक वन संसधानों के अधिकार के दावों को अविलम्ब दिया जाए, लघु वनोपज आधारित आजीविका का संवर्धन हो और खेती, खास कर के सामूहिक खेती को प्रोत्साहन मिले।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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