महुआ मोइत्रा के खिलाफ सनसनीखेज आरोपों की झड़ी, लेकिन समस्या की जड़ तो कोई और ही है 

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नई दिल्ली। महुआ मोइत्रा (तृणमूल कांग्रेस सांसद) ने सोशल मीडिया साइट X पर अपने जवाब में लिखा है, “मैं सीबीआई और एथिक्स कमेटी (जिसमें भाजपा सदस्यों का पूर्ण बहुमत है) के द्वारा जब कभी भी मुझे बुलाया जाता है, तो उनके सवालों का उत्तर देने के लिए तैयार हूं। मेरे पास अडानी द्वारा निर्देशित मीडिया सर्कस ट्रायल चलाने या बीजेपी ट्रोल्स को जवाब देने का न तो समय है और न ही इसमें कोई रुचि है।

मैं नादिया में दुर्गा पूजा का आनंद ले रही हूं। शुभो षष्ठी।”

पूरी दुनिया पिछले दो सप्ताह से पश्चिम एशिया में इजराइल-फिलिस्तीन विवाद को लेकर फिर से इतिहास में जाकर यहूदियों, ईसाइयों और मुस्लिम दुनिया की पड़ताल के साथ धर्म-राजनीति-साम्राज्यवादी कुटिल चालों के बीच मानवता की हत्या को ढूंढने की कोशिश में जुटी है, वहीं पिछले कुछ दिनों से अचानक से देश की सबसे फायरब्रांड नेत्री महुआ मोइत्रा को लेकर सोशल मीडिया में अफवाहों का बाजार गर्म है।

भारतीय मीडिया, जिसने इजराइल-हमास के मिसाइल युद्ध में खुद को पूरी तरह से एक खेमे में डालकर, इस बात की उम्मीद पाल रखी थी कि अमेरिकी-इराक युद्ध के दौरान सीएनएन ने जिस तरह से लाइव युद्ध और इराक की तबाही को पश्चिमी देशों के ड्राइंगरूम में पहुंचाकर रातोंरात खुद को चोटी पर ला खड़ा कर दिया था, कुछ वैसा ही नजारा इजराइली ग्राउंड ऑपरेशन से उसे भी हासिल हो सकता है। रेटिंग की दौड़ में एक-दूसरे को पछाड़ने की खातिर भारतीय जांबाज गोदी मीडिया ने तेल अवीव से मोर्चा संभाल लिया था।

लेकिन पिछले 3 दिनों में हालात बड़ी तेजी से बदले हैं, और जितना ज्यादा वे इजराइल की धरती से गाजापट्टी की ओर मुंह कर युद्ध की विभीषिका और हमास के जेहाद को लेकर अपना पसंदीदा अभियान चलाने की कोशिश कर रहे हैं, सच्चाई उससे भी कई गुना इजराइल, यूरोप और अमेरिका से फिलस्तीनियों के साथ हो रही बर्बरता के खिलाफ उमड़ते जन-समुद्र के साथ इन चैनलों की रेटिंग को रसातल में ले जा रही है। इसे देखते हुए कुछ तो युद्ध के बीच में ही वापसी का टिकट कटा देश लौट आये हैं।

देश में 3 दिनों से एक स्टोरी तेजी से तूल पकड़ती जा रही है। ऐसा लगता है इसके लिए स्टेज भले ही काफी पहले से सेट नहीं किया गया था, लेकिन ऐसे इवेंट मैनेजमेंट को आयोजित करने का ही जिनके पास दशकों पुराना अनुभव रहा हो, उनके लिए परफेक्ट स्कीमिंग बायें हाथ का खेल है।

बता दें कि नवीनतम घेरेबंदी एक ऐसे लोकसभा सांसद की की गई है, जिसने बेहद कम समय के भीतर देश में अपने लिए अलग मुकाम बनाने में सफलता हासिल कर ली थी। 2019 में कृष्णानगर लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस की सांसद निर्वाचित होने से पहले महुआ मोइत्रा 2016 और 2019 में पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए भी निर्वाचित हुई थीं। अमेरिका से अर्थशास्त्र और गणित में स्नातक महुआ ने जेपी मॉर्गन चेस के लिए इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर वाईस प्रेसिडेंट पद से इस्तीफ़ा देकर भारत वापस लौटने का फैसला लिया।

पहले कांग्रेस और बाद में तृणमूल कांग्रेस में शामिल होकर, पिछले 4 वर्षों में भारतीय संसद में अपने संक्षिप्त लेकिन धारदार भाषणों से उन्होंने तहलका मचा रखा था। एक क्षेत्रीय दल की नवोदित नेता के लिए संसद में जितना समय आरक्षित किया जाता है, को ध्यान में रखते हुए उनके द्वारा अक्सर बाकी राजनीतिज्ञों की तुलना में तीन-चार गुना तेजी से अपनी बात कहने की कला इशारा करती थी कि वे बेहद तैयारी के साथ लोकसभा में आती थीं।

आज महुआ मोइत्रा को लेकर सोशल मीडिया पर एक से एक मीम बन रहे हैं। एक कथित वीडियो में छिछोरे गाने के साथ उनकी तस्वीरों को चस्पा कर बैकग्राउंड में डॉलर की बौछार के साथ ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश की जा रही है कि महुआ मोइत्रा ने धन-दौलत-साड़ियां-पर्स इत्यादि के लिए ही सांसद बनने की राह चुनी थी। भाजपा के बहु-चर्चित सांसद निशिकांत दुबे द्वारा महुआ मोइत्रा के एक्स-बॉयफ्रेंड और सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्रई की सीबीआई के समक्ष प्राथमिकी को सार्वजनिक संज्ञान में लाने के साथ यह शुरू हुआ। रातों-रात यह खबर देश में आग की तरह फ़ैल चुकी है।

चटखारे लेते हुए सोशल मीडिया पर आईटी सेल और संस्कारी भक्तों के द्वारा महुआ मोइत्रा से जुड़े निजी और सार्वजनिक जीवन के हर पहलुओं को चटखारे लेते हुए बताया जा रहा है। महुआ की अंग्रेजीदां जुबान की तेजी और तीखे प्रश्नों ने लगता है देश के जमे-जमाए राजनीतिज्ञों को ही अस्थिर नहीं किया था, बल्कि इसकी चपेट में बहुसंख्यक मध्य वर्ग का पुंसत्व भी आ चुका था, जिसे समझ ही नहीं आता था कि ऐसे अकाट्य एवं त्रुटिहीन भाषण में पेश किये गये तथ्यों से घायल अपनी विचारधारा और नेतृत्व की रक्षा कैसे हो?

लेकिन महुआ मोइत्रा के निजी जीवन, विदेश में रहते हुए एक फिरंगी से विवाह और तलाक, संसद के भीतर सवाल पूछने के बदले पैसे या उपहार लेने के आरोप (वकील जय अनंत देहाद्रई द्वारा लिखित आरोप), 60 से अधिक सवालों में 50 से अधिक बार अडानी समूह के बारे में सवाल खड़े कर भारत के प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने को कठघरे में खड़ा करने की साजिश, शराब और सिगार पीने की तस्वीरें, अपने एक्स-बॉयफ्रेंड के साथ अपने पालतू कुत्ते के स्वामित्व को लेकर कलह और प्राथमिकी के बाद उसे हथियाने की कहानियां जमकर साझा की जा रही हैं।

कुछ के द्वारा तो इसमें कांग्रेस सांसद शशि थरूर तक को घसीटा जा रहा है। महुआ मोइत्रा और शशि थरूर, दोनों ही सभ्रांत अंग्रेजीदां पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं, जैसा भारतीय मध्यवर्ग खुद दिखना चाहता है, लेकिन वैरभाव भी रखता है। हालांकि दोनों के दृष्टिकोण और वक्तृत्व शैली में काफी अंतर है।

उनके लिए, जिन्हें इस स्टोरी की जानकारी नहीं है, उनके लिए संक्षेप में बता दें कि सांसद महुआ मोइत्रा के ऊपर क्या आरोप लगाये गये हैं और इसमें कौन-कौन लोग सीधे तौर पर जुड़े हैं?

भाजपा सांसद निशिकांत दूबे ने सबसे पहले आरोप लगाया था कि मोइत्रा ने संसद में अडानी समूह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में सवाल पूछने के बदले में रियल एस्टेट कारोबारी दर्शन हीरानंदानी से धन और उपहार लिए हैं।

इतना ही नहीं दुबे ने दावा किया कि हीरानंदानी ने मोइत्रा को चुनाव लड़ने के लिए 2 करोड़ रुपये, आईफोन जैसे महंगे उपहार और 75 लाख रुपये दिए थे। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, दुबे ने वकील जय अनंत देहाद्राई द्वारा पेश दस्तावेजों के सुबूत अपने कब्जे में होने का दावा किया था, जिसमें मोइत्रा और एक व्यवसायी के बीच “संसद में प्रश्न पूछने के बदलने में” रिश्वत लेने के अकाट्य साक्ष्य साझा किए गए हैं।

दुबे ने यह भी दावा किया कि मोइत्रा द्वारा हालिया 61 सवालों में से 50 में से दर्शन हीरानंदानी की कंपनी के व्यावसायिक हितों की रक्षा करने के इरादे से चौंकाने वाली जानकारी मांगी गई है।’ इसके साथ ही भाजपा सांसद द्वारा लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से महुआ मोइत्रा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए एक ‘जांच समिति’ बनाने का आग्रह किया गया था।

दुबे के आरोपों पर पलटवार करते हुए तब मोइत्रा ने एक्स पर लिखा था, “मैं एक कॉलेज/विश्वविद्यालय खरीदने के लिए अपनी सारी गलत कमाई और उपहारों का उपयोग कर रही हूं, जिसमें डिग्री दुबे अंततः एक वास्तविक डिग्री खरीद सकते हैं।” मोइत्रा ने लोकसभा अध्यक्ष को टैग करते हुए लिखा था, “झूठे हलफनामे के लिए उनके (दुबे) खिलाफ जांच पहले पूरी करें, इसके बाद मेरे ऊपर जांच समिति का गठन करें।”

एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा “फर्जी डिग्री वाले एवं अन्य भाजपा दिग्गजों के खिलाफ विशेषाधिकारों के कई उल्लंघन के मामले लंबित हैं। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उन पर कार्यवाही पूरी करने के फौरन बाद मेरे विरुद्ध किसी भी प्रस्ताव का स्वागत है। मेरे दरवाजे पर आने से पहले अडानी कोयला घोटाले में ईडी एवं अन्य द्वारा एफआईआर दर्ज करने का भी मुझे इंतजार रहेगा।”

टीएमसी सांसद द्वारा एक और ट्वीट के द्वारा अडानी समूह को खुली चेतावनी देते हुए कहा गया था “अगर अडानी समूह मुझे चुप कराने या नीचा दिखाने के लिए संदिग्ध संघियों और फर्जी डिग्रीधारियों द्वारा तैयार किये गये संदिग्ध डोजियर पर भरोसा कर रहा है तो मैं उन्हें सलाह दूंगी कि वे अपना समय बर्बाद न करें। अपने वकीलों का बुद्धिमानी से उपयोग करें।”

एक अन्य पोस्ट में, मोइत्रा ने कहा, “अडानी के ऑफशोर मनी ट्रेल, इनवॉइसिंग, बेनामी खातों की जांच पूरी होने के तुरंत बाद मेरे कथित मनी लॉन्ड्रिंग की सीबीआई जांच का भी स्वागत है। अडानी प्रतिस्पर्धा को मात देने और हवाई अड्डे खरीदने के लिए भाजपा एजेंसियों का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन मेरे साथ ऐसा करके तो दिखाएं।”

लेकिन वकील अनंत देहाद्रई के आरोपों का हवाला देते हुए 15 अक्टूबर को इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना तकनीक मंत्री अश्विनी वैष्णव कुमार को लिखे पत्र में सांसद निशिकांत दुबे ने महुआ मोइत्रा पर अपने संसद के लॉग इन आईडी और पासवर्ड को बिजनेस टायकून दर्शन हीरानंदानी के साथ साझा करने का गंभीर आरोप लगाकर इस मामले की जांच करने की मांग की थी। यदि इस बात में सच्चाई पाई जाती है तो इसे वास्तव में गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए।

इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को टैग करते हुए महुआ मोइत्रा ने X पर लिखा, “सांसदों के सभी संसदीय कामों को उनके पीए, सहायकों, प्रशिक्षुओं, बड़ी टीमों द्वारा किया जाता है। आदरणीय @अश्विनीवैष्णव

कृपया सीडीआर के साथ सभी सांसदों के स्थान और लॉगिन विवरण जारी करें। कृपया लॉगिन करने के लिए कर्मचारियों को दिए गए प्रशिक्षण की जानकारी जारी करें।”

अडानी समूह ने भी 16 अक्टूबर को बयान जारी कर इस पूरे मामले में एक बार फिर से खुद को पाक-साफ़ और महुआ मोइत्रा सहित बिजनेस राइवल के द्वारा उनकी कंपनियों को निशाना बनाने की साजिश करार दिया और दावा किया गया कि ये घटनाएं हमारे पिछले बयान की पुष्टि करती हैं कि कुछ समूह और व्यक्ति हमारे नाम और मार्केट में रेपुटेशन को नुकसान पहुंचाने के लिए दिन रात काम कर रहे हैं।

जबकि महुआ मोइत्रा को यकीन था कि उनके जोरदार जवाब से भाजपा सांसदों और ट्रोल गैंग की बोलती कुछ समय के लिए बंद हो जायेगी। लेकिन उनका यह अनुमान तब धरा का धरा रह गया जब कल दर्शन हीरानंदानी की ओर से एक-एक कर वकील अनंत देहाद्रई के द्वारा लगाये गये आरोपों की पुष्टि करते हुए दर्शन हीरानंदानी की ओर से लिखित बयान जारी किया गया।

दर्शन हीरानंदानी के बयान में महुआ मोइत्रा से 2017 से मित्रता, उनके स्वभाव, आकांक्षाओं, देश-विदेश में मुलकात का जिक्र, ईमेल आईडी और पासवर्ड देने, पत्रकार सुचेता दलाल, शार्दुल श्रॉफ और पल्लवी श्रॉफ जैसे नामों को शामिल किया गया। इतना ही नहीं हीरानंदानी ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं राहुल गांधी, शशि थरूर और पिनाकी मिश्रा के साथ महुआ मोइत्रा की दोस्ती सहित विदेशी समाचार पत्रों में फाईनेंशियल टाइम्स, न्यूयॉर्क टाइम्स, बीबीसी और देशी मीडिया आउटलेट्स तक के साथ उनके संबंधों का इस पत्र में जिक्र किया है। 

इस कथित पत्र में दर्शन हीरानंदानी स्वीकार कर रहे हैं कि उन्होंने महुआ मोइत्रा को महंगे तोहफे दिए, सरकारी बंगले की मरम्मत कराई और विपक्षी पार्टियों द्वारा शासित राज्यों में लाभ हासिल करने के लिए देश-विदेश में उनकी छुट्टियों का खर्च वहन किया।

यह स्वीकारोक्ति तो अनंत देहाद्रई और भाजपा सांसद द्वारा लगाये गये आरोपों को न सिर्फ पूरी तरह स्वीकार करने वाले थे, बल्कि हीरानंदानी द्वारा कई नये खुलासे किये गये, जिसमें साफ़-साफ़ इंगित किया गया है कि अडानी समूह के खिलाफ आरोप लगाकर, असल में महुआ मोइत्रा ने पीएम नरेंद्र मोदी को निशाने पर रखा था, क्योंकि पीएम को निशाना बनाने से वे सुर्ख़ियों में बनी रह सकती हैं जो उनके एजेंडे को सूट करता है।

रातों-रात यह खबर वायरल हो गई। एक-एक कर सारे तार जुड़ गये। देर रात महुआ मोइत्रा की ओर से इस पत्र के जवाब में जय दुर्गा लिखते हुए दो पेज का जवाब आया, जिसमें इस पत्र को फर्जी बताते हुए सवाल खड़ा किया गया कि 3 दिन पहले ही हीरानंदानी समूह की ओर से प्रेस को अधिकारिक बयान जारी किया गया था कि उनके खिलाफ लगाये गये सभी आरोप निराधार हैं, जबकि आज 19 अक्टूबर को प्रेस को अप्प्रूवर के तौर पर एफिडेविट जारी किया जाता है, जिसे सादे कागज पर बिना लेटर हेड के ही जारी किया गया है। 

उनका तर्क है कि अनंत हीरानंदानी को न तो सीबीआई और न ही एथिक्स कमेटी ने हाजिर होने को कहा है, न ही अभी तक जांच शुरू हुई है। न ही इस पत्र को लेटर हेड या नोटरी किया गया है। जब तक सिर पर बंदूक न तानी गई तो देश के प्रतिष्ठित व्यावसायिक घराने से जुड़े शिक्षित व्यक्ति के द्वारा सादे कागज पर हस्ताक्षर संभव नहीं है। पत्र में लिखी इबारत पूरी तरह से मजाक है, जिसे ऐसा लगता है कि पीएमओ में से किसी ने ड्राफ्ट किया गया है।

उन्होंने कहा कि पीएमओ द्वारा इस पत्र का मजमून ड्राफ्ट किया गया लगता है, और उन्हें हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया है। फिर इसे जल्दबाजी में प्रेस को जारी कर दिया गया है। मैं समझ सकती हूं कि दर्शन हीरानंदानी, जिनके परिवार ने कितने दशकों की मेहनत से एक साम्राज्य को खड़ा किया है, जिसमें कंपनी सहित हजारों कर्मचारियों का भविष्य दांव पर लगा हुआ था, जिन्होंने दबाव में आकर हस्ताक्षर कर दिया। मैं उनके दबाव को समझ सकती हूं।

इस भाजपा सरकार या कहें गौतम अडानी की सरकार जिसे भाजपा द्वारा संचालित किया जा रहा है, का आमतौर पर काम करने का तरीका रहा है। मेरी प्रतिष्ठा को धूमिल करने और मेरे प्रियजनों को आतंकित करने का हरसंभव प्रयास किया गया है। अगले कुछ दिनों में मेरे बेहद करीबियों को ईडी और सीबीआई की मदद से धमकाया जायेगा। अडानी भ्रष्टाचार का कच्चा-चिट्ठा खुले में आ जाने से भाजपा और मोदी बुरी तरह से बौखला गये हैं, जिसके कारण ही सेलेक्टिव तरीके से सौदेबाजी की जा रही है। बीजेपी और अडानी के खिलाफ खड़े होने के लिए यह कीमत तो चुकानी ही होगी, और जिसने भी अडानी के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत की है उसे सत्ता-प्रतिष्ठान के द्वारा प्रताड़ित किया गया है।

पत्र का अंत करते हुए मोइत्रा ने लिखा है कि वे अडानी का तब तक मुकाबला करती रहने वाली हैं, जब तक वे इस महान देश की जनता के प्रति जवाबदेह नहीं बन जाते। इन अपराधियों से अपने देश की रक्षा करने के लिए मैं किसी भी कीमत को चुकाने के लिए तत्पर हूं।

यह समूचा घटनाक्रम हमारे सिस्टम में पैदा हो चुके सड़ांध के कुछ अंश को सार्वजनिक कर रहा है। लोगबाग अब बता रहे हैं कि कॉर्पोरेट और नीति-निर्माताओं का चोली-दामन का रिश्ता स्थापित हो चुका है। 75 वर्षों में समाजवाद और पूंजीवाद की जुगलबंदी के साथ जो शुरुआत हुई थी, उसे 80 के दशक की शुरुआत के साथ ही विदाई दी जा चुकी थी। 90 के दशक के बाद तो एक जानेमाने कॉर्पोरेट घराने के मुखिया ने दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के बारे में साफ़ कह दिया था कि एक मेरी इस पॉकेट में और दूसरी इस पॉकेट में है।

2010 आते-आते देश का नक्शा ही पूरी तरह से बदल गया। अब तो सवाल यह खड़ा हो गया है कि चंद क्रोनी कैपिटलिस्ट ही सारी मलाई चट कर रहे हैं, और बाकियों को एक-एक कर आत्मसमर्पण की मुद्रा में डाल दिया गया है। यही वजह है कि बड़ी संख्या में भारत से हाई नेट वर्थ आबादी यूरोप और अमेरिका में पलायन कर रही है। शिक्षित युवाओं के लिए भी विदेशी भूमि और ग्रीन कार्ड ही एकमात्र लक्ष्य रह गया है।

राजनीतिक पार्टियों के बीच भी धन का असमान वितरण उसी प्रकार से बढ़ता जा रहा है, जैसे गरीब और अमीर की खाई 80 के दशक के बाद दिन-रात चौड़ी होती जा रही है। इलेक्टोरल बांड के अवतरण ने समूची राजनीति को ही अपारदर्शी बना डाला है। राजनीतिक पार्टी और पूंजीपति की मैच-फिक्सिंग पर कोई सवाल नहीं खड़ा कर सकता, मुकदमेबाजी का तो सवाल ही नहीं उठता, लेकिन आज देश का प्रत्येक आयकर दाता सवालों के घेरे में खड़ा है। आयकर रिटर्न फाइल करने के बावजूद उसे कभी भी दोबारा रिटर्न दाखिल करने के लिए कहा जा सकता है, जबकि उसकी समूची कमाई पैन कार्ड और आधार कार्ड को नत्थी करा देने के बाद सरकारी एजेंसियों के राडार पर निर्वस्त्र है।

जवाबदेही उसकी होती है जो राज करता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से जो राज कर रहे हैं वे पाक-साफ़ घोषित किये जा चुके हैं। ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग के अधिकारी चुनाव की पूर्व-संध्या पर देश भर में रोज नए-नए छापेमारी के कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। लेकिन देश की सभी विपक्षी पार्टियों, शेष कॉर्पोरेट, हिंडनबर्ग, फाइनेंशियल टाइम्स सहित तमाम अंतर्राष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स और विदेशी निवेशकों द्वारा भारत में क्रोनी पूंजीवाद एवं उसी से जुड़े सेबी की निष्पक्षता पर सवालिया निशान का जवाब देने के लिए एक व्यावसायिक समूह के मामले की ईडी, सीबीआई द्वारा जांच से लगातार परहेज क्यों किया जा रहा है, यह सवाल अब आम भारतीय को परेशान करने लगा है।

(रविंद्र पटवाल ‘जनचौक’ की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

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