महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय नहीं मान रहा बॉम्बे उच्च न्यायालय का आदेश

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वर्धा (महाराष्ट्र)। बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच के द्वारा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पीएचडी शोधार्थी निरंजन ओबेरॉय के निष्कासन पर रोक लगाने के बावजूद, विश्वविद्यालय ने उन्हें प्रवेश से वंचित कर दिया है।

बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने ओबेरॉय के 27 जनवरी, 2024 को बिना पक्ष सुने विश्वविद्यालय अधिनियम के विरुद्ध जाकर शोधार्थी के निष्कासन से संबंधित विश्वविद्यालय के फैसले पर रोक लगा दी है। किन्तु विश्वविद्यालय प्रशासन उच्च न्यायालय के आदेश को मानने को तैयार नहीं है।

निरंजन का इस विषय पर कहना है कि “मैं शनिवार (17 फरवरी 2024) को, मैंने अदालत के आदेश के साथ परिसर में प्रवेश करने की कोशिश की थी, लेकिन विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने अंदर नहीं जाने दिया। उन्हें विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर ही रोक दिया गया और प्रशासनिक अधिकारियों ने उनसे मिलने की जहमत तक नहीं उठाई। उच्च न्यायालय के आदेश की एक प्रति विवि को ईमेल के माध्यम से कुलसचिव और अन्य सम्बंधित अधिकारीयों को भेजा था तथा रजिस्ट्रार के कार्यालय में आदेश की कॉपी प्रत्यक्ष रूप से दे, उसकी पावती प्राप्त की थी। बावजूद इसके प्रवेश नहीं दिया गया।

बता दें कि अधिवक्ता निहाल सिंह राठौर के माध्यम से 16 फरवरी को निरंजन की याचिका पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई करते हुए कहा, “उनके अनुसार, बिना कारण बताओ नोटिस और मामले में सुनवाई का अवसर दिए बिना ही विवादित आदेश पारित किया गया है। याचिका में दी गई दलीलों को प्रतिवादियों द्वारा मामले में उपस्थित होकर और अपना जवाब दाखिल करके खंडित नहीं किया गया है।” कोर्ट ने निष्कासन ऑर्डर पर तत्काल स्टे लगा दिया है और 27 मार्च को विवि प्रशासन से जवाब भी मांगा है।

क्या है पूरा विवाद

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के कुलपति के पद पर कार्यरत रजनीश कुमार शुक्ल का कार्यकाल विवादों में रहा था। अप्रैल 2019 से अगस्त 2023 तक कुल 50 से ज्यादा शिक्षकों की नियुक्ति का विवाद, दिल्ली की महिला शिक्षिका के साथ अश्लील संवाद और नौकरी का प्रलोभन दे यौन शोषण का आरोप, महिला शिक्षिका को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने व विश्वविद्यालय की एक अन्य महिला शिक्षिका के साथ मच्छर मारने की दवा पी कुलपति द्वारा आत्महत्या का प्रयास करना और विवाद बढ़ते देख 14 अगस्त, 2023 को कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया।

जिसके बाद विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत वरिष्ठता के आधार पर दलित प्रोफ़ेसर लेला कारुन्यकरा को कुलपति का कार्यभार दिए गया। लेकिन 2 माह बीतते ही विश्वविद्यालय अधिनियम के विरुद्ध जाकर केंद्र सरकार ने आईआईएम के निदेशक भीमराय मेत्री को कुलपति का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है। केंद्र के इस फैसले के विरुद्ध प्रोफ़ेसर लेला कारुन्यकरा ने बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर बेंच में केंद्र सरकार के आदेश के खिलाफ याचिका डाल रखी है और सुनवाई के दौरान ‘केंद्र सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एड. नंदेश देशपांडे ने कोर्ट को बताया था कि हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति ‘टिकने’ योग्य नहीं है।’

इस पूरे प्रकरण को विश्वविद्यालय के प्रगतिशील छात्र संगठनों ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), सम्यक विद्यार्थी आन्दोलन और अम्बेडकर स्टूडेंट फोरम ने जिलाधिकारी के माध्यम से अवैध नियुक्त कुलपति के प्रकरण को महामहिम राष्ट्रपति महोदया को अवगत करवाया था। इस अवैध कुलपति पर किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही न होता देख गणतंत्र दिवस के दिन अवैध कुलपति द्वारा ध्वजारोहण किये जाने पर तिरंगे का अपमान होने के संदर्भ में फिर से एक बार जिलाधिकारी के माध्यम से महामहिम राष्ट्रपति महोदया को अवगत करवाया गया था, कुलसचिव को अवैध कुलपति द्वारा ध्वजारोहण ना किये जाने की अपील की गई थी और प्रगतिशील छात्रसंगठन के प्रतिनिधियों द्वारा कुलपति का विरोध किये जाने की बात कही गई थी।

26 जनवरी के दिन कुलपति के अभिभाषण के दौरान विश्वविद्यालय के दो छात्र राजेश कुमार यादव व डॉ. रजनीश कुमार अम्बेडकर के द्वारा काले कपड़े पर लिखे “इललीगल वीसी गो बैक” (ILLEGAL VC GO BACK) दिखया था जिसके बाद विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों के द्वारा दोनों छात्रों को पकड़कर स्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने स्थानीय थाने रामनगर ले जाकर पूछताछ-बयान लेकर विश्वविद्यालय छोड़ गई थी।

उसके बाद से ही विश्वविद्यालय प्रशासन नियम विरुद्ध जा दोनों छात्रों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया। और इस प्रकरण को सोशल मीडिया पर रिपोर्टिंग करने को लेकर और अगले ही दिन दिनांक 27 जनवरी 2024 को बिना छात्रों का पक्ष जाने 5 छात्रों (राजेश कुमार यादव, निरंजन कुमार, विवेक मिश्र, रामचंद्र और डॉ. रजनीश कुमार अम्बेडकर) का निष्कासन/ निलंबन कर दिया गया। एक अन्य छात्र जतिन चौधरी का निष्कासन मात्र इस मिथ्या आरोप के आधार पर किया गया कि वह निष्कासित छात्रों के समर्थन और विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ बोल रहा था। वहीं छात्रों के सत्याग्रह का दमन करने के उद्देश्य से 8 छात्रों को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया है। छात्र इस तानाशाही व्यवहार के खिलाफ विश्वविद्यालय के द्वार के पास 1 फरवरी से सत्याग्रह पर बैठे हुए हैं। इस दौरान भूख हड़ताल पर बैठे छात्र विवेक की तबियत बिगड़ने पर भी विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों की सुध लेने नहीं आया। छात्रों का सत्याग्रह अब भी जारी है

(राजेश सारथी स्वत्रंत पत्रकार और हिंदी विश्वविद्यालय के पीएचडी शोधार्थी हैं।)

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